ज्ञात हो कि जिलेभर के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में यह बीमारी कई ग्रामीण इलाकों में अपने पैर पसारे हुए हैं। अकेले बाग विकासखंड में 20 से अधिक गांव इस बीमारी से प्रभावित है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से पता चला कि हर एक गांव में 8 से 10 मरीज है। जबकि कुछ तो ऐसे परिवार हैं, जहां मां के साथ बेटी को भी इस बीमारी ने अपने शिकंजे में ले लिया है।
पता चला कि बदनावर और धार क्षेत्र को छोड़कर आदिवासी बहुल कुक्षी, गंधवानी, सरदारपुर, धरमपुरी, मनावर में इस बीमारी से सैकड़ों मरीज पीड़ित है। मोटे अनुमान के अनुसार जिलेभर में 1500 से अधिक मरीज होंगे। जापान के क्यूटो विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री की पहल पर स्टेन सेल के निदेशक एस. यामनका ने भारत के साथ मिलकर सिकल सेल एनीमिया बीमारी पर शोध करने की सहमति जताई।
प्रभावित गांव
बाग सहित क्षेत्र के ग्राम आगर, नाहवेल, जामला, कुडूझेता, बांकी, पीपरी, बंधानिया, घटबोरी, वेकलिया, जामनियापुरा, बरखेड़ा, अखाड़ा, टकारी, घुड़दलिया, देवधा, वाणदा, खारपुरा, देवझिरी, कांकड़वां, महाकालपुरा आदि में इस बीमारी के मरीज अधिक संख्या में हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं मौतें
स्वास्थ्य केंद्र पर जांच के लिए महंगा कीट उपलब्ध नहीं होने से कई गरीबों को बीमारी का पता नहीं चल पाता है। बावजूद खून की जांच से बीमारी का पता लगा है। आगर, जामला, कुडूझेता, पीपरी, बंधानिया, घटबोरी, जामनियापुरा ऐसे गांव हैं, जहां स्कूली बच्चों सहित कई युवक-युवतियां काल का शिकार हुए।
क्या है सिकल सेल एनीमिया
पिछड़े व गरीब क्षेत्रों में पाई जाने वाली सिकल सेल एनीमिया लाइलाज वंशानुगत बीमारी है। बीमारी में सामान्य लाल रक्त कोशिकाओं का आकार प्रभावित होकर हासिए (अर्द्धचंद्राकार) हो जाता है। मरीजों को बुखार के साथ हड्डियों में दर्द की शिकायत रहती है। खून की कमी हो जाती है।
कम उम्र में मौत के मामले आए
बाग क्षेत्र के भीलाला समाज में आपसी रिश्तेदारी की वजह से इस बीमारी का संवहन तेजी से हुआ। सिकल सेल एनीमिया से ग्रसित माता-पिता के जीन से बच्चों में यह बीमारी फैली। घातक बीमारी से 18 से 25 वर्ष की कम उम्र में मौतें प्रकाश में आई। गतवर्ष बीमारी के जांच के लिए निशुल्क शिविर में 200 में से 70 मरीज इस बीमारी से ग्रसित पाए गए।
डॉ. आरके शिंदे, बीएमओ, बाग