आवेश तिवारी ,नई दिल्ली ।छत्तीसगढ़ में माओवादियों से मुकाबले के लिए सेना के रिटायर्ड अधिकारियों की तैनाती को केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने नीतिगत तौर पर मंजूरी दे दी है ।गौरतलब है कि नईदुनिया ने छत्तीसगढ़ में इस किस्म की भर्ती किये जाने के प्रस्ताव का पिछले वर्ष ही खुलासा कर दिया था।जानकारी मिली है कि सेना के रिटायर्ड अधिकारियों की तैनाती के मामले को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से हाल में हुई मुलाक़ात के दौरान फिर से उठाया थाअब जल्द से जल्द राज्य में सूबेदार मेजर से ब्रिगेडियर रैंक तक के सेवानिवृत अधिकारियों की तैनाती की जायेगी।
संविदा के आधार पर तैनात किये जाने वाले इन अधिकारियों की तैनाती का मुख्य प्रयोजन माओवादी आपरेशन में लगे अर्धसैनिक बलों और राज्य पुलिस के जवानो को प्रशिक्षण देना होगा।पता चला है कि राज्य पुलिस ने इस हेतु गृह मंत्रालय से सेना के उन अधिकारियों का नाम माँगा है जिन्होंने आतंकरोधी कारवाईयों में हिस्सा लिया हो और जिनके पास छत्तीसगढ़ जैसी भौगोलिक परिस्थितियों में काम करने का अनुभव रखते हो ।
दरअसल छत्तीसगढ़ सरकार ने इस किस्म की नियुक्तियों की मांग पिछले वर्ष जीरम हमले के तत्काल बाद की थी ।उस वक्त तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे भी इस प्रस्ताव पर राजी थे और पिछले साल ही अगस्त माह तक इन नियुक्तियों को पूरा किया जाना था , लेकिन राज्य सरकार के बार बार अनुरोध के बावजूद गृह मंत्रालय ने रिटायर्ड अधिकारियों के नामों की सूची राज्य सरकार को नहीं सौंपी ।
गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव (नक्सल) एम ए गणपति ने नई दुनिया को बताया कि राज्य सरकार चाहे तो ऐसी नियुक्तियां सीधे भी कर सकती है ,हमारे द्वारा उन्हें कहा गया है कि ऐसी तैनातियों से पहले नियुक्तियों की शर्तों को सेना के अनुकूल कर लें ।नईदुनिया को पता चला है कि राज्य पुलिस को प्रशिक्षण देने के लिए जिन अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी उन्हें प्रतिमाह 85 हजार रूपए मिलेंगे और उनका कार्यकाल तीन वर्षों का होगा ।
जहाँ तक माओवादी आपरेशन में सेना को सीधे शामिल किये जाने का मामला है ।इस बात की प-ी खबर है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गृह मंत्रालय से राज्य में मेजर जनरल रैंक के एक अधिकारी के तैनाती की मांग की गई थी,हांलाकि राज्य सरकार के इस प्रस्ताव को अब तक मंजूरी नहीं मिली है ।
गृह मंत्रालय के एक अधिकारी कहते हैं कि अगर राज्य सरकार सीधे आपरेशन में शामिल करने के लिए सेना के कुछ अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर लेना भी चाहे तो बिना सेना की मंजूरी कुछ भी संभव नहीं है।वो कहते हैं "सेना के अधिकारी अपनी मूल नियुक्ति को छोड़ कर प्रतिनियुक्ति में राज्य सरकार की सेवा करना चाहेंगे इसकी सम्भावना कम है "।
जानकारी यह भी है कि गृह मंत्रालय ,छत्तीसगढ़ समेत अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों में आईपीएस अधिकारियों की कमी को देखते हुए ,नवचयनित आईपीएस अधिकारियों को प्रशिक्षण के बाद ऐच्छिक तौर तीन वर्ष इन क्षेत्रों में बिताने का भी विकल्प दे सकती है ।इन क्षेत्रों में कार्य करने के बाद वो अपने मूल कैडर में लौट सकते हैं ।