संवाद सूत्र, पुरोला: बीते चार वर्षो में रवांई घाटी में बाढ़ व भूस्खलन
ने खेती की जमीन को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। फल और नकदी फसल उत्पादकों की
12 सौ नाली कृषि भूमि को कुदरत का कहर लील गया। इससे प्रभावित काश्तकार अब
बची हुई जमीन पर ही खेती करने को मजबूर हैं।
क्षेत्र में हर साल बरसात के दौरान करीब बारह छोटी बड़ी नदियां विकराल
रूप ले लेती हैं। बीते चार वर्षो में ये नदियां उफनाकर अपने पुराने तटबंधों
को तोड़ते हुए खेती की जमीन को बहा ले जा रही हैं। नदियों के कटाव से
भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ी हैं। इसकी चपेट में आने से खेती की जमीन फसल
समेत पूरी तरह तबाह हो जाती है। बीते चार सालों में पुरोला व मोरी में 107
सेब के बगीचों को भूस्खलन व भूकटाव से भारी नुकसान पहुंचा है। इसके चलते
क्षेत्र के 7,273 किसान परिवार प्रभावित हुए हैं। वर्ष 2010 से 2013 की
आपदा व बाढ़ से जहां पुरोला प्रखंड की कमल नदी, मालगाड़, घुतुगाड़, कुमोला,
छाड़ा खड्, विणगदेरा, स्यालुकागाड़, सुकडाला खड् व अन्य छोटे गदेरों के उफान
से होने वाले कटाव के चलते टमाटर, मटर, आलू, फ्र ासबीन आदि नकदी फसल
उगाने वाली 10.745 हैक्टेयर कृषि भूमि बह गई। वहीं मोरी में टौंस नदी,
रुपीन, सुपीन, बनुगाड, पावर नदी व अन्य गदेरों के उफान ने 14.747 हेक्टेयर
कृषि भूमि तबाह कर दी। जबकि नदियों के कटाव से पैदा होने वाले भूस्खलन से
भूस्खलन से 1.353 हेक्टेयर सेब के बगीचों को भी भारी नुकसान पहुंचा है। अब
भी नदियों का रुख ऐसा है कि बड़े पैमाने पर खेती की जमीन खतरे के कगार पर
है। इसके बावजूद कृषि भूमि सुधार व सुरक्षा का कोई इंतजाम नजर नहीं आ रहा
है। रवांई घाटी की उपजाऊ कृषि भूमि के कटाव व भूस्खलन को रोकने की दिशा में
समय रहते ठोस कदम नहीं उठाये गये तो नगदी फसलों के उत्पादक क्षेत्र पर
संकट के बादल मंडराने लगेंगे।
‘पुरोला व मोरी में कृषि भूमि, सेब बागानों को भूस्खलन, कटाव से भारी
नुकसान हुआ है, नुकसान के बाद शासन को रिपोर्ट भेजी जाती है, भूमि के
नुकसान का आपदा मद से भुगतान करने का प्रावधान है।
दिनेश कुमार, मुख्य कृषि अधिकारी।