क्या आप कभी यह सोच भी सकते हैं कि रसोईघर में बनाया जानेवाला भोजन अब
लैब में भी बन सकता है? पर ऐसा संभव है. बानगी देखिए, लंदन में कुछ महीने
पहले एक ऐसे बर्गर का प्रदर्शन प्रेस कांफ्रेंस के दौरान किया गया, जो लैब
में तैयार किये गये मांस (मीट) से बना था.
नीदरलैंड के वैज्ञानिकों का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिक मार्क पोस्ट ने
गाय की स्टेम कोशिकाओं की मदद से लैब में मीट तैयार किया, और फिर उससे
बर्गर बना दिया.
स्मार्ट फूड हमारे भविष्य में तकनीक की मदद से असंभव को संभव बनाने का
मार्ग खोलता है. तकनीक के विकास ने हमें दशकों आगे सोचने के रास्ते को खोला
है. इस रास्ते में हमारा भारत भी है. भारत 2025 में कई क्षेत्रों में
अविश्वसनीय उदाहरण पेश करने वाला है. कृषि भी उनमें एक है.
इस प्रयास के साथ ही हमने भी कई ऐसी चीजों को लैब में विकसित किया है.
कुछ वर्षो में हमारे पास वैसे फल होंगे, जो पेड़ों में नहीं बल्कि लैब में
विकसित किये गये होंगे. हैदराबाद के बाहरी इलाकों में वैसी जमीन है, जहां
लंबे समय से पानी की कोई उपलब्धता नहीं थी. वहां बीज उत्पादन करने वाली
कंपनी ‘डीएससीएल’ ने चावल के ऐसे बीज लगा कर जांच कर रहे हैं, जिसे पानी की
बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है. आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि चावल की खेती
में पानी की सबसे अधिक आवश्यकता होती है. वहीं वैज्ञानिक ऐसी जमीन में भी
धान के बीज लगा कर जांच कर रहे हैं, जहां पानी तो है लेकिन खारा है.
स्मार्ट फसलों का होगा भविष्य: आज जमीन का कम होता जाना, मौसम में
लगातार हो रहा परिवर्तन, ऐसी कई बातें हैं, जो किसानों को इस क्षेत्र में
टिकाये रखने में असफल साबित हो रही हैं. आनेवाले समय में कृषि का भविष्य
स्मार्ट फसल में ही होगा.
महाराष्ट्र के जालना में स्थित माइक्रो बीज लेबोरेटरी के वैज्ञानिक चावल
के ऐसी बीज को बनाने में लगे हैं, जो मिट्टी से नाइट्रोजन को स्वत: लेने
में बेहतर साबित हो सकें. साथ ही भिंडी की ऐसी प्रजाति विकसित की जा रही
है, जिस पर किसी तरह के कीटाणु का कोई असर नहीं हो.
जालना स्थिति लेबोरेटरी के बायोटेक्नोलॉजी के हेड भारत चार कहते हैं कि
आनेवाले दिनों में हम दो फसलों की जड़ों को आपस में मिला कर ऐसे पौधे
विकसित कर रहे हैं, जो खर-पतवार नियंत्रित होंगे. यह किसानों को खेती के
दौरान उग आये खर-पतवार की समस्या से बचायेगा. बीटी बैगन के स्थगन के बावजूद
भी कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास का काम द्रुत गति से जारी है.
अनुसंधान के दौर में गेहूं और चावल जैसे मोटे अनाजों के अनुसंधान और
विकास पर जोर-शोर से काम किया जा रहा है. वहीं भिंडी, बैगन, तुरई, काली
मिर्च, गाजर और गोभी जैसी फसलों पर प्रमुखता से काम किया जा रहा है.
सोयाबीन, ईख व आलू की फसलों को भी प्राथमिकता दी जा रही है. गोल्डेन राइस
प्रोजेक्ट की मदद से विटामिन-ए की कमी को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय
स्तर पर प्रयास किये जा रह हैं.
आलोचक भी रखते हैं उम्मीद : वैज्ञानिकों द्वाराकिये जा रह इन प्रयासों पर आलोचकों की भी नजरें हैं.
कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र शर्मा का कहना है कि-’हम आनेवाले समय में भोजन
की पूर्ति भोजन कैप्सूल से करने की उम्मीद रखते हैं’. अभी वैज्ञानिक
प्लेटिनम चावल के विकास पर काम कर रह हैं, जिसके पैकेट में आइरन, कैल्सियम
के अतिरिक्त मोलिबेडिनम जैसी अन्य जरूरी चीजें भी होंगी. वैज्ञानिक भारत
चार अपनी बातों पर जोर देते हुए बताते हैं कि आनेवाले समय में किसानों को
कृषि के परंपरागत तरीकों में भी बदलाव देखने को मिलेगा.
अब तो वैज्ञानिक कृषि ही नहीं मछली पालन के क्षेत्र में भी तकनीक को
आजमाने का प्रयास कर रहे हैं. बढ़ती जनसंख्या और भोजन की मांग को पूरा करने
में यह तकनीक भविष्य में काफी मददगार साबित होगी.
(प्रस्तुति: राहुल गुरु)