नई दिल्ली। दिल्ली में पिछले साल 16 दिसंबर को हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद आलोचनाओं के घेरे में आई पुलिस ने महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हेल्पलाइन नंबर शुरू करने समेत कई कदम उठाए हैं लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कमी आने के बजाए इनमें बढोतरी देखने को मिली है।
पिछले 13 वर्षों में इस वर्ष बलात्कार के मामले सर्वाधिक हुए , लेकिन दिल्ली पुलिस का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग अब जागरूक हो गए और मामले दर्ज कराने लगे हैं जबकि पहले ऐसे मामले दर्ज ही नहीं कराए जाते थे।
दिल्ली पुलिस के आंकड़े के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी में 30 नवंबर तक बलात्कार के कुल 1,493 मामले दर्ज किए गए जो कि 2012 में इसी अवधि में दर्ज मामलों की तुलना में दोगुने से अधिक हैं।
सबसे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ उत्पीड़न के मामलों में पांच गुना बढोतरी दर्ज की गई है। नवंबर 2013 तक पिछले वर्ष के 625 मामलों की तुलना में 3237 मामले दर्ज किए गए।
महिलाओं का शीलभंग करने संबंधी मामलों में भी बढोतरी हुई है। पिछले वर्ष के 165 मामलों की तुलना में इस वर्ष 852 मामले दर्ज किए गए।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2012 में बलात्कार के 706, 2011 में 572 और 2010 में 507 मामले दर्ज किए गए थे।
हालांकि दिल्ली पुलिस इसे अच्छा संकेत मानती है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘‘दर्ज मामलों की संख्या में वृद्धि होने का मतलब है कि अब महिलाएं आगे आ रही हैं और इस प्रकार के मामले दर्ज करा रही हैं। इससे पहले कई मामले दर्ज नहीं कराए जाते थे क्योंकि महिलाओं को पुलिस से संपर्क करने और इससे जुड़ी सामाजिक परेशानियों का भय होता था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अब शिकायतें शब्दश: दर्ज की जाती हैं और बिना कोई मुद्दा उठाए महिलाओं की शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज कर ली जाती है। इससे दर्ज मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है।’’
हालांकि पुलिस ने महिलाओं के लिए असुरक्षित मानी जाने वाली दिल्ली को उनके लिए सुरक्षित बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। पुलिस थानों में महिला सुरक्षा डेस्क गठित की गई है। महिलाएं राजधानी में कहीं भी मामला दर्ज करा सकती हैं। एक ‘क्राइम अगेंन्स्ट विमेन’ शाखा का गठन किया गया है। इसके अलावा महिलाओं के लिए इस समय चार हेल्पलाइन नंबर चालू है। शहर में गश्त बढा दी गई है।
पुलिस के इन सब कदमों के बावजूद दिल्ली महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं कही जा सकती। आंकड़े भी कहते हैं कि यहां 10 में से केवल एक महिला काम के लिए बाहर जाती है। प्राइमरी सेंसस एब्स्ट्रेक्ट 2011 के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कामकाजी महिलाएं केवल 10.58 प्रतिशत हैं जो कि झारखंड और बिहार से भी कम है।
(भाषा)