कोलकाता
: नया भूमि अधिग्रहण कानून किसानों व आदिवासियों की चिंताओं को दूर करने
में ज्यादा प्रभावी होगा. भूमि अधिग्रहण कानून 1984 की तुलना में नये कानून
में पुनर्वास के लिए एक नया उपबंध भी शामिल किया गया है. कानून के तहत यह
सुनिश्चित है कि किसानों की जमीन जबरन नहीं ली जायेगी. ये बातें केंद्रीय
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने मंगलवार को कहीं. वह महानगर स्थित
प्रदेश कांग्रेस के मुख्यालय विधान भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन को
संबोधित कर रहे थे. मौके पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य,
देवव्रत बसु, कृष्णा देवनाथ, मनोज कुमार पांडेय व अन्य मौजूद थे.
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि नया भूमि अधिग्रहण कानून व राष्ट्रीय खाद्य
सुरक्षा अधिनियम एक जनवरी या एक अप्रैल, 2014 से लागू होगा. संसद के
मानसूत्र सत्र में भूमि अजर्न, पुनर्वासन में उचित पारदर्शिता का अधिकार
विधेयक पारित हुआ था, जिसे विगत महीने राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी.
श्री रमेश ने कहा कि पुराना भूमि अधिग्रहण कानून में लोकतंत्र विरोधी
बातें थीं. देशभर में अनुचित भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ आवाज बुलंद हो
रही थी. राज्य सरकारें अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने के लिए स्वतंत्र हैं
, लेकिन वे केंद्र सरकार के बनाये कानून को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं. 1984
के कानून में पुनर्वास का प्रवधान नहीं होने के कारण झारखंड, बिहार, ओड़िशा
और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के करीब तीन से चार करोड़ आदिवासियों को खनिज
बहुल क्षेत्रों से विस्थापित होना पड़ा था. यही वजह है कि माओवादी
विचारधारा के प्रसार को बढ़ावा मिला. श्री रमेश ने कहा कि किसी भी भूमि का
जबरन अधिग्रहण नहीं होगा. अगर निजी कंपनियों के लिए भूमि अधिग्रहण किया
जाना है तो 80 प्रतिशत किसानों की सहमति आवश्यक होगी. पीपीपी परियोजनाओं के
लिए 70 प्रतिशत किसानों से सहमति जरूरी होगी. अत: यह किसानों और
आदिवासियों के लिए ज्यादा हितकर साबित होगा.