नई दिल्ली। जेल में बंद विचाराधीन नेताओं के चुनाव लड़ने का चलन खत्म करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई व्यक्ति जो जेल में या पुलिस हिरासत में है, वह विधायी निकायों का चुनाव नहीं लड़ सकता। आपराधिक तत्त्वों को संसद या विधानसभाओं में प्रवेश करने से रोकने वाले एक अन्य अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ निर्वाचक ही चुनाव लड़ सकता है और जेल में होने या पुलिस हिरासत में होने के आधार पर उसका मत देने का अधिकार खत्म हो जाता है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि अयोग्य ठहराए जाने की बात उन लोगों पर लागू नहीं होगी जो किसी कानून के तहत एहतियातन हिरासत में लिए गए हों। जनप्रतिनिधित्व कानून का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय ने कहा कि कानून की धारा 4 और 5 में संसद व विधानसभाओं की सदस्यता के लिए योग्यताओं का वर्णन किया गया है। इसमें एक योग्यता यह भी बताई गई है कि सदस्य को अनिवार्य रूप से निर्वाचक होना चाहिए।
पीठ ने कहा कि कानून की धारा 62 (5) में कहा गया है कि ऐसा व्यक्ति किसी चुनाव में मतदान नहीं कर सकता जो किसी जेल में है या पुलिस की वैध हिरासत में है। धारा 4, 5 और 62 (5) का जिक्र करते हुए पीठ इस नतीजे पर पहुंची कि कोई व्यक्ति जो जेल या पुलिस हिरासत में है, वह चुनाव नहीं लड़ सकता।
अदालत ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य की उस अपील पर यह आदेश दिया जिसमें पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। पटना हाई कोर्ट ने पुलिस हिरासत में बंद लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी। पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले में उसे कोई कमी नजर नहीं दिखती। 1951 के कानून की धारा 62 (5) के प्रावधानों के तहत जिस व्यक्ति को मत देने का अधिकार नहीं है, वह निर्वाचक नहीं है। ऐसे में वह लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं है।
बुधवार को इसी पीठ ने जन प्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था जो दोषी ठहराए गए जन प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित होने के आधार पर अयोग्यता से संरक्षण प्रदान करता था। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जनप्रतिनिधि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्य होंगे। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत के इन दो फैसलों से राजनीतिक पार्टियां यह तय करने के लिए मजबूर होंगी कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा जाए।
अदालत ने स्पष्ट किया कि अयोग्य ठहराए जाने की बात उन लोगों पर लागू नहीं होगी जो किसी कानून के तहत एहतियातन हिरासत में लिए गए हों। जनप्रतिनिधित्व कानून का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय ने कहा कि कानून की धारा 4 और 5 में संसद व विधानसभाओं की सदस्यता के लिए योग्यताओं का वर्णन किया गया है। इसमें एक योग्यता यह भी बताई गई है कि सदस्य को अनिवार्य रूप से निर्वाचक होना चाहिए।
पीठ ने कहा कि कानून की धारा 62 (5) में कहा गया है कि ऐसा व्यक्ति किसी चुनाव में मतदान नहीं कर सकता जो किसी जेल में है या पुलिस की वैध हिरासत में है। धारा 4, 5 और 62 (5) का जिक्र करते हुए पीठ इस नतीजे पर पहुंची कि कोई व्यक्ति जो जेल या पुलिस हिरासत में है, वह चुनाव नहीं लड़ सकता।
अदालत ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य की उस अपील पर यह आदेश दिया जिसमें पटना हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। पटना हाई कोर्ट ने पुलिस हिरासत में बंद लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी। पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट के फैसले में उसे कोई कमी नजर नहीं दिखती। 1951 के कानून की धारा 62 (5) के प्रावधानों के तहत जिस व्यक्ति को मत देने का अधिकार नहीं है, वह निर्वाचक नहीं है। ऐसे में वह लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं है।
बुधवार को इसी पीठ ने जन प्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था जो दोषी ठहराए गए जन प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लंबित होने के आधार पर अयोग्यता से संरक्षण प्रदान करता था। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जनप्रतिनिधि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्य होंगे। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत के इन दो फैसलों से राजनीतिक पार्टियां यह तय करने के लिए मजबूर होंगी कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा जाए।
पटना हाई कोर्ट का फैसला कायम रखा सुप्रीम कोर्ट ने
’सिर्फ निर्वाचक ही चुनाव लड़ सकता है और जेल में होने या पुलिस हिरासत में होने के आधार पर उसका मत देने का अधिकार खत्म हो जाता है।
’अदालत ने स्पष्ट किया कि अयोग्य ठहराए जाने की बात उन लोगों पर लागू नहीं होगी जो किसी कानून के तहत एहतियातन हिरासत में लिए गए हों।