अहमदाबाद। औद्योगिक विकास के रूप में गुजरात एक ओर देश के समक्ष मॉडल राज्य के रूप में उभर रहा है वहीं, दूसरी ओर खुद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के धालेरा स्थित ड्रीम प्रोजेक्ट स्पेशियल इन्वेस्टमेंट रिजन के खिलाफ 44 गांवों के किसान लामबद्ध हो गए हैं। किसान कहते हैं जान दे देंगे लेकिन जमीन नहीं, पुरखों की जमीन में से एक इंच जमीन सरकार को नहीं देंगे, सरकार ने अपनी नीति नहीं बदली तो गांधीनगर को ट्रेक्टरों से घेराव करेंगे।
उत्तर गुजरात के बहुचराजी, मांडल, देत्रोज व पाटड़ी समेत करीब 44 गांवों के दो हजार से अधिक किसान व महिलाओं ने राज्य सरकार की जमीन अधिग्रहण नीति का विरोध करते हुए सरकार को चेताया है कि धोलेरा सर परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण का परिपत्र तुरंत रद्द कर दें। सितंबर 2012 में मोदी सरकार इन गांवों की करीब 51 हजार एकड़ जमीन के अधिग्रहण का परिपत्र जारी किया था। मशहूर कार कंपनी मारुति सुजूकी इंडिया लिमिटेड का प्लांट भी इसी बहुचराजी गांव के पास लगना है, किसान आंदोलन के चलते अब मारुति का प्लांट भी खटाई में पड़ सकता है।
वाईब्रेंट गुजरात की सफलता के बाद मुख्यमंत्री मोदी ने विशेष निवेश की खातिर चार साल पहले साइन्स सिटी में हुए वाईब्रेंट महोत्सव में धोलेरा में स्पेशियल इन्वेटमेंट रिजन बनाने की घोषणा की थी।
महुवा से निरमा समूह के सैकड़ों करोड़ के सीमेंट प्लांट को खदेड़ने के बाद गांधीवादी नेता व जमीन अधिकार आंदोलन के अगुवा चीनूभाई वैद्य, भाजपा के पूर्व विधायक डॉ कनुभाई कलसरिया, स्थानीय विधायक तेजश्री पटेल, व पूर्व वित्तमंत्री सनत मेहता ने आजाद विकास संगठन के बैनर तले एक बार फिर धोलेरा सर के खिलाफ एकजुट हुए हैं।
बहुचराजी, मांडल, देत्रोज व पाटड़ी समेत कई गांवों के बार नोटिस बोर्ड लगाकर सरकार व प्रशासन को चेताया है कि गांव की जमीन के अधिग्रहण अथवा खरीदने को लेकर कोई गांव के भीतर भी नहीं आए। डॉ कलसरिया का आरोप है कि मोदी सरकार किसान विरोधी है, उद्योगपतियों को मालामाल करने के लिए यह सरकार किसानों से उनके खेत खलिहान छीनना चाहती है। स्थानीय कांग्रेस विधायक तेजश्री पटेल का कहना है कि मुख्यमंत्री मोदी अपनी महत्वाकांक्षा के लिए गुजरात व यहां के किसानों को कंगाल करने पर आमादा है। किसानों के पास खेत व खलिहान नहीं होंगे तो उनके परिवार को गुजारा कैसे चलेगा। अब तक कई गांवों के लिए मोदी सरकार का विरोध कर रहे थे लेकिन जब धोलेरा प्रोजेक्ट के कारण उत्तर गुजरात के गांवों के किसानों की जमीन छिनने का मौका आया तब उन्हें सरकार के विकास की असलियत का पता चला है।
जबकि पूर्व मंत्री सनत मेहता का कहना है कि मोदी सरकार की नीतियां उद्यमियों के लिए हितकारी है आम आदमी व किसानों के लिए नहीं। आंदोलनकरियों ने गुजरात सरकार के नए सिंचाई बिल का का विरोध जताया जिसमें नहरों से पानी लेने पर किसानों पर पानी चोरी का आरोप लगा सजा व जुर्माने का प्रावधान किया गया है, जिसके बाद आंदोलन कारियों ने नए सिंचाई बिल की प्रतियों को जलाकर अपना विरोध जताया।