‘भूखे मरने से अच्छा है कीड़े-मकोड़े खाएं’

नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र ने भुखमरी से निपटने के लिए कुछ नए विकल्प पेश किए हैं। ये पौष्टिक भी हैं और पर्यावरण संरक्षण में मददगार भी। हो सकता है कि ये आपके इर्द-गिर्द रेंग या उड़ रहे हों। बात कीड़े-मकोड़ों की ही हो रही है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने सोमवार को जारी एक शोध रपट में कहा है कि चीटियां, टिड्डे और अन्य कीड़े-मकोड़े ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिनका समुचित उपयोग नहीं किया गया है।

खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने रोम स्थित अपने मुख्यालय में एक प्रेस कांफ्रेंस में 200 पेज की रपट जारी करते हुए कहा है कि दुनिया भर में करीब 2 अरब लोग कीड़ो-मकोड़ों की 19 सौ प्रजातियों का सेवन कर रहे हैं। अफ्रीका और एशिया में तो इनका सेवन किया जा रहा है। लेकिन पश्चिम में टिड्डा और दीमक जैसे कीड़े-मकोड़ो को देखकर लोग नाक-मुंह सिकोड़ने लगते हैं। वे मानते हैं कि चूंकि ये कीड़े विकासशील देशों से आते हैं इसलिए ये अच्छे नहीं हो सकते।

रपट के मुताबिक कीड़े-मकोड़ों में प्रोटीन, वसा, कैल्शियम, आयरन और जिंक भरपूर मात्र में हैं। साथ ही ये पर्यावरण के लिहाज से भी उपयोगी हैं। कीड़े-मकोड़े चारे को मांस में तब्दील करने में पशुओं से बेहतर हैं। ये औसतन 2 किलो चारा खाकर एक किलो मांस उपलब्ध करा देते हैं। उनकी तुलना में पशु जब आठ किलो चारा खाते हैं तब एक किलो मांस उपलब्ध करा पाते हैं। वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा भौंरा (31 फीसद) का सेवन किया जा रहा है। इसके बाद झींगा (18 फीसद), मधुमक्खी, ततैया और चींटी (14 फीसद), टिड्डा और झींगुर (13 प्रतिशत) को लोग अपने भोजन में शामिल कर रहे हैं। कीड़े मकोड़े ग्रीनहाउस गैसों के साथ अमोनिया और मीथेन आदि का उत्सर्जन करते हैं जो कि पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है।

रपट के लेखकों में एक पॉल वंटोमे का कहना है कि कीड़ा पालन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र निवेश के लिए तैयार है। यह हमारे समक्ष बड़ा अवसर है। लेकिन इस नए क्षेत्र में कानूनी प्रक्रियाओं में अस्पष्टता के अभाव में कोई भी बड़ा व्यवसाय शुरू नहीं हो सकता।

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