मनोज मिश्र, नई दिल्ली। दिल्ली सरकार और दिल्ली की अन्य सरकारी एजंसियां अगर केवल इसी वायदे को अमल में लाए कि अब गंदगी और कचरा यमुना नदी में नहीं जाने देंगे तब वास्तव में सकारात्मक पहल हो पाएगी। ऐसा हो जाए तो एक निश्चित समय के बाद सरकारी योजना वाली यमुना एक्शन प्लान से भी यमुना को साफ करने की समय सीमा तय की जा सकेगी। जिस दिल्ली के 48 किलो मीटर में से महज 22 किलो मीटर में यमुना 70 फीसद गंदी की जाती है, उसी की विधानसभा में बताया गया कि 2014 तक इंटरसेप्टर लगने का काम पूरा होने तक तो यमुना पूरी तरह से साफ हो जाएगी। इसके साथ ही पुराने काम भी जारी रहने चाहिए यानी किसी भी औद्योगिक इकाई को अपना कचरा सीधे यमुना में डालने पर सख्ती से रोक लगाई जाए। साथ ही तीनों नगर निगम भी यह सुनिश्चित करें की नालों के मलवे, जानवरों के मल व गोबर और मांस -मछली आदि के अवशेष, सीधे यमुना में न जा पाएं।
विधानसभा के बजट सत्र में यमुना की सफाई पर दिए जबाब में बताया गया है कि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की ओर से राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय से अनुमोदित योजना के तहत डेयरी फार्म अपविष्ट प्रबंधन, धोबी घाट सुधार योजना, अंतिम निवास सुधार योजना(अंतिम संस्कार के अवशेष) इत्यादि योजनाएं चलाई जा रही है। इसकी कुल लागत 49 करोड़ 80 लाख रुपए आएंगे। उसमें से 11 करोड़ 31 लाख 16 हजार रुपए अब तक खर्च हो चुके हैं। भारत सरकार के यमुना एक्शन प्लान के तहत मिले पैसों में से 2005 से अब तक 656 करोड़ दो लाख 49 हजार रुपए अब तक खर्च हो चुके हैं। यमुना में सीधे गिरने वाले मुख्य नालों से कचरा फेंकने से रोकने के लिए दीवार बनाने, नालों को ढकने, पुलों और मुहाने नालों पर जाली लगाने के लिए दिल्ली नगर निगम ने 39 लाख 90 हजार रुपए खर्च किए हैं।
औद्योगिक इकाइयों के कचरे को सीधे यमुना में जाने से रोकने के लिए सालों पहले 286 करोड़ की लागत से 13 संयुक्त अवजल शोधन संयंत्र(सीईटीपी) लगाए गए हैं। इसके अलावा लंबी तौयारी के बाद दिल्ली जल बोर्ड 59 किलो मीटर लंबाई का इंटरसेप्टर सीवर डालना शुरू कर दिया है। 1963 करोड़ की लागत से यह सीवर उन क्षेत्रों में डलेगा, जहां पहले से यह नहीं डला है। यह शाहदरा, नजफगढ़ और सपलीमेंट्री ड्रेन के समांतर डलेगा, जिसे पास के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट में ले जाकर साफ करने के बाद इसे यमुना में डाला जाएगा। दावा किया गया है कि इस परियोजना में उन 1500 अनधिकृत कालोनियों, झुग्गी-झोपड़ी बस्तियां और सीवर रहित गांवों से निकलने वाले सीवर को यमुना में जाने से पहले साफ करके उसे यमुना में डाला जाएगा। यह काम 2014 तक पूरा हो जाएगा। इसके साथ ही यमुना एक्शन -तीन के कुल 1682.6 करोड़ रुपए में तीनों पुराने संयुक्त अवजल शोधन संयंत्र(एसटीपी) जो दिल्ली का 64 फीसद गंदा पानी ले जाता है, का फिर से उत्थान और अपग्रेडेशन करना शामिल है।
विधानसभा में दिए गए जबाब में यह भी कहा गया है कि 1400 सेअधिक जल प्रदूषित औद्योगिक इकाइयों से अवजल शोधन संयंत्र(ईटीपी) और मल शोधन संयंत्र(एसटीपी) लगवाया गया है। ऐसा न करने वाले संयंत्रों के खिलाफ कारवाई की गई है। जल-स्त्रोत को बचाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। दुर्गा पूजा के अवसर पर मूर्ति विसर्जन के लिए समांतर बाड़ों के निर्माण के लिए संबंधित एजंसियों से समन्वय किया गया है। लगातार पानी की गुणवत्ता की जांच विभिन्न सरकारी एजंसियों से करवाई जाती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से आबादी और ननफर्मिंग इलाकों में चल रहे औद्योगिक इकाइयों को बंद करवाया गया। वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण क्लब स्थापित किए गए। सभी बड़े होटलों, अस्पतालों और निर्माण कार्यों को ईटीपी और एसटीपी लगवाना अनिवार्य किया गया है। इसके साथ-साथ विभिन्न स्तर पर पानी बचाने और पर्यावरण सुधारने के अभियान चलाए गए और चलाए जा रहे हैं। इनमें भू-जल के दोहन पर अनेक इलाकों में रोक आदि शामिल हैं।
इन उपायों के बावजूद यमुना लगातार गंदी होती जा रही है। दिल्ली सरकार और यहां की सरकारी एजंसियां शुरुआत यमुना में जाने वाली गंदगी को रोकने के लिए एक समांतर नहर दिल्ली के आबादी वाले इलाके में बनाने से करे। नदी का प्रवाह चलता रहे और इसके लिए न्यूनतम पानी यमुना में छोड़ना सुनिशिचत किया जाए। दूसरे चरण में यमुना से स्थाई मलवे को निकालने का काम हो और बगल में बनाए गए नहर(चैनल) के पानी को साफ करके यमुना में साफ पानी डाला जाए तो भले यमुना का पुराना स्वरूप नहीं लौटे लेकिन उसकी भूमिका बन जाएगी जिसपर आगे काम करना आसान होगा। सरकारी दावों की सच्चाई भी तभी दिखेगी।