अम्बाला। तब उसकी उम्र करीब छह साल थी। मां का साया सिर से उठ
चुका था। पिता की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। उस समय उसे जरूरत थी कि कोई मदद
के लिए आगे आए, सहारा बने, ताकि बच्ची का भविष्य बन जाए। ऐसे में पिता का
एक जानकार आगे आया, लेकिन बच्ची का भविष्य बनाने नहीं, बल्कि बच्ची को
‘काम’ दिलाने के लिए। भरोसा यह दिलाया कि बच्ची से छोटे मोटे काम ही कराए
जाएंगे। मगर यहां तो हालात कुछ और ही थे। बच्ची को घरेलू नौकरानी बना दिया
गया और चार साल गुजर गए।
यही दर्द भरी कहानी है लुधियाना में रहने वाली अनीता की। चाइल्डलाइन
अम्बाला के निदेशक परमजीत सिंह बड़ौला के मुताबिक बच्ची ने बताया कि चार
साल पहले उसे यह कहकर लुधियाना से अम्बाला लाया गया था कि घर में सिर्फ
पानी पिलाने का काम करना है, लेकिन यहां तो उससे दिनभर काम कराया जाता था।
यही नहीं मालिक ने घर की दूसरी नौकरानी की छुट्टी करके उसका काम भी अनीता
के ऊपर थोप दिया था। बड़ौला के मुताबिक यह सीधे-सीधे बाल श्रम का मामला है।
नियमानुसार तो 14 साल तक के बच्चों को स्कूल भेजना अनिवार्य होता है। ऐसे
में यहां तो दोहरा अपराध हुआ है। चाइल्ड लाइन ने इस संबंध में फाइल तैयार
कर ली है जो सोमवार को बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के चेयरमैन डीसी
शेखर विद्यार्थी को सौंपी जाएगी। साथ ही डीसीपी (शहरी) से मिलकर बच्ची को
नौकरानी बनाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जाएगी।
अब बच्ची का भविष्य क्या होगा
बच्ची को घर पर रखने वाले एडवोकेट का कहना है कि उन्होंने बच्ची को
परिवार के सदस्य के तौर पर रखा और घर में उसे पढ़ाते भी थे। दूसरी तरफ
बच्ची का कहना है कि वह तो नौकरानी थी और उसे पढ़ाया भी नहीं गया। सबसे अहम
सवाल यह है कि अब 10 साल की हो चुकी इस बच्ची का भविष्य क्या होगा। सिर्फ
आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज करने से मामला खत्म नहीं हो जाता, बल्कि आगे
बच्ची कहां रहेगी, कौन उसे पढ़ाएगा और कौन उसका खर्च उठाएगा? इन सवालों का
जवाब ढूंढना सबसे ज्यादा जरूरी है।
कानून भी हो गया सख्त
कुछ समय पहले ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बाल श्रम कानून में संशोधन करते
हुए इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में ला दिया था। इसके तहत तीन साल तक की
कैद और 50 हजार रुपए तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है। पुलिस कार्रवाई
के लिए बाध्य होती है। पहले कानूनी कार्रवाई सीधे श्रम निरीक्षकों तक सीमित
थी। इस संशोधन के बाद भारत में 14 वर्ष की आयु तक के बच्चे किसी भी धंधे
में नहीं लगाए जा सकते। 2010 से लागू शिक्षा अधिकार अधिनियम 14 वर्ष तक के
हर बच्चे को अनिवार्य रूप से मुफ्त शिक्षा की गारंटी देता है।
ये पता चला बच्ची के बारे में
चाइल्ड लाइन लुधियाना ने खोजबीन कर पता लगाया कि अनीता के पिता का नाम
राम पारस हैऔर वह लुधियाना में चौकीदारी करते हैं। मां जल रानी की सात-आठ
साल पहले मौत हो गई थी। पांच भाई-बहनों में अनीता सबसे छोटी है। उसकी बहन
सुनीता की इस साल ही अप्रैल में शादी हुई है। उसके तीन भाइयों में से दो
राज मिस्त्री के पास मजदूरी करते हैं और एक भाई कपड़े की दुकान पर काम करता
है।
कई और धाराएं लग सकती हैं
चाइल्डलाइन के मुताबिक जेजे एक्ट-2000 की धारा-23 के हिसाब से बच्ची पर
अत्याचार करने का मामला भी बन सकता है। इसमें छह माह की सजा व जुर्माने का
प्रावधान है। इसमें बाउंडिड लेबर एक्ट के तहत भी केस दर्ज किया जा सकता है।
इस एक्ट के तहत बच्ची को उसके घर भेजा जाएगा तो पुनर्वास के लिए एक हजार
रुपए हरियाणा सरकार और 19 हजार पंजाब सरकार देगी।