नयी दिल्ली, 16 अक्तूबर (एजेंसी) उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि भ्रष्टाचार
सिर्फ एक अपराध ही नहीं है बल्कि यह अन्य मानवाधिकारों को भी कमजोर बनाकर
सुनियोजित आर्थिक अपराध का मार्ग प्रशस्त करता है।
न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति एफ एम आई कलीफुल्ला ने आय से
अधिक संपत्ति अर्जित करने के जुर्म में आबकारी विभाग के अधिकारी बालकृष्ण
दत्तात्रेय कुम्भार को दोषी ठहराने पर बंबई उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने
का आदेश निरस्त करते हुये यह टिप्पणी की। न्यायाधीशों ने कहा कि
भ्रष्टाचार के लिए दोषी पाये गए लोकसेवक को उच्च अदालत से बरी होने तक
भ्रष्ट ही मानना चाहिए।
न्यायाधीशों ने कहा कि भ्रष्टाचार सिर्फ
दंडनीय अपराध ही नहीं है बल्कि यह अप्रत्यक्ष रूप से हनन करके मानवाधिकारों
को भी कमजोर करता है और सुनियोजित भ्रष्टाचार अपने आप में मानवाधिकार का
उल्लंघन है क्योंकि यह सुनियोजित आर्थिक अपराध का मार्ग प्रशस्त करता है।
निचली अदालत ने इस अधिकारी को आय के ज्ञात स्रोत से करीब साढ़े सात लाख रुपए की अधिक
संपत्ति अर्जित करने के जुर्म में दो साल की कैद और एक लाख रुपए जुर्माने
की सजा सुनायी गयी थी।
न्यायालय ने इस अधिकारी की इस दलील को ठुकरा
दिया कि यदि उसकी सजा पर रोक नहीं लगायी गयी तो इस अपील पर सुनवाई के दौरान
उसकी नौकरी जा सकती है। न्यायलय ने कहा कि इस आधार पर उसे सजा देने के
आदेश पर रोक नहीं लगायी जा सकती है।
निचली अदालत से सजा होने के बाद इस
अधिकारी को निलंबित करके उसे कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा गया था कि उसे
नौकरी से बर्खास्त क्यों नहीं कर दिया जाये।
बंबई उच्च न्यायालय ने इस
अधिकारी को दोषी ठहराने के फैसले पर रोक लगा दी थी। केन्द्रीय जांच ब्यूरो
ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
सिर्फ एक अपराध ही नहीं है बल्कि यह अन्य मानवाधिकारों को भी कमजोर बनाकर
सुनियोजित आर्थिक अपराध का मार्ग प्रशस्त करता है।
न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति एफ एम आई कलीफुल्ला ने आय से
अधिक संपत्ति अर्जित करने के जुर्म में आबकारी विभाग के अधिकारी बालकृष्ण
दत्तात्रेय कुम्भार को दोषी ठहराने पर बंबई उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने
का आदेश निरस्त करते हुये यह टिप्पणी की। न्यायाधीशों ने कहा कि
भ्रष्टाचार के लिए दोषी पाये गए लोकसेवक को उच्च अदालत से बरी होने तक
भ्रष्ट ही मानना चाहिए।
न्यायाधीशों ने कहा कि भ्रष्टाचार सिर्फ
दंडनीय अपराध ही नहीं है बल्कि यह अप्रत्यक्ष रूप से हनन करके मानवाधिकारों
को भी कमजोर करता है और सुनियोजित भ्रष्टाचार अपने आप में मानवाधिकार का
उल्लंघन है क्योंकि यह सुनियोजित आर्थिक अपराध का मार्ग प्रशस्त करता है।
निचली अदालत ने इस अधिकारी को आय के ज्ञात स्रोत से करीब साढ़े सात लाख रुपए की अधिक
संपत्ति अर्जित करने के जुर्म में दो साल की कैद और एक लाख रुपए जुर्माने
की सजा सुनायी गयी थी।
न्यायालय ने इस अधिकारी की इस दलील को ठुकरा
दिया कि यदि उसकी सजा पर रोक नहीं लगायी गयी तो इस अपील पर सुनवाई के दौरान
उसकी नौकरी जा सकती है। न्यायलय ने कहा कि इस आधार पर उसे सजा देने के
आदेश पर रोक नहीं लगायी जा सकती है।
निचली अदालत से सजा होने के बाद इस
अधिकारी को निलंबित करके उसे कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा गया था कि उसे
नौकरी से बर्खास्त क्यों नहीं कर दिया जाये।
बंबई उच्च न्यायालय ने इस
अधिकारी को दोषी ठहराने के फैसले पर रोक लगा दी थी। केन्द्रीय जांच ब्यूरो
ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।