विश्व में राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। संसद में अन्य देशों में काफी बड़ी संख्या में महिलाएं पहुंच रही हैं और कानूनों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। भारत इसमें काफी पीछे है। भारत में विधानसभाओं व संसद में इस संख्या में वृद्धि नहीं हो रही है। 1995 से 2012 के बीच राजनीति में महिलाओं की संख्या 75 प्रतिशत बढ़ी है परंतु भारत में सिथति में बदलाव नहीं आया है। हमारे पुरुष सांसद 18 साल से महिला आरक्षण विधेयक को पास नहीं होने दे रहे हैं। 1991 से 2012 के बीच महिला प्रतिनिधियों की संख्या 9.7 प्रतिशत से 10.96 प्रतिशत हुर्इ जो न के बराबर है।
सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य की रिपोर्ट 2012 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने जारी की जिसमें दर्शाया कि 1996 में यह संख्या 11. 3 प्रतिशत थी जो 2012 में 19.7 प्रतिशत हो गर्इ है। भारत की संसद में यह संख्या काफी कम है। अभी लोकसभा में 60 व राज्य सभा में 26 महिला सांसद हैं। जिन 59 देशों में 2011 में चुनाव हुए उनमें से 26 देशों ने महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान किए। 17 देशों ने अलग कोटा निर्धारित किया और उससे महिलाओं को 27.4 प्रतिशत सीटें मिलीं।
भारत की संसद में जो सिथति है उसमें बदलाव करने की जरूरत है। 60-65 सालों से महिला प्रतिनिधियों की संख्या में जो ठहराव है उससे यह स्पष्ट है कि आवश्यकता है। राजनीतिक दल यह कहते हैं कि वे महिलाओं को चुनाव में खड़ा नहीं करते हैं क्योंकि उनके जीतने की संभावनाएं कम होती हैं। अगर यह सिथति है तो फिर हर हालत में आरक्षण की जरूरत है ताकि 33 प्रतिशत महिलाएं तो संसद व विधानसभाओं में पहुंच सके परंतु राज्यसभा में 10 प्रतिशत महिलाएं हैं। इसमें तो वोट विधान सभा सदस्य डालते हैं फिर दल महिलाओं को खड़ा क्यों नहीं करते हैं। इसका कोर्इ जवाब नहीं है। असल में पुरुष प्रधान संस्थाएं
नहीं चाहती हैं कि उनका स्थान महिलाएं ले लें। संसद में महिला प्रतिनिधियों की संख्या के संदर्भ में भारत का 98वां स्थान है। सबसे अच्छी सिथति नार्वे स्वीडन, डेनमार्क, फिनलेंड आदि देशों की है। यहां का औसत 23 प्रतिशत है। दूसरे स्थान पर अफ्रीका के देश हैं जहां का प्रतिशत 20 है। एशिया में सिर्फ थार्इलैंड में बदलाव आया है। यह निकलकर आया कि पहली बार महिलाओं का बाहर आना मुशिकल है परंतु एक बार वे चुनाव लड़ लेती हैं तो फिर निरंतर आगे बढ़ती रहती है।
भारत जैसे सामंतवादी, पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों ने राजनीति को अपना पक्का व्यवसाय बना लिया है। इस कारण वे आरक्षण का कानून पारित नहीं करना चाहते हैं। यह तय है कि एक बार महिला सीटें आरक्षित हो गइर्ं तो वे पीछे नहीं हटेंगी। पंचायती राज व्यवस्था में 33 प्रतिशत आरक्षण ने इस बात को अच्छी तरह स्थापित किया है। अब यह आवश्यक हो गया है कि महिलाआ ें के आरक्षण का बिल लाके सभा म ें शीघ्र पारित हा।े (विविधा फीचर्स)