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भीलवाड़ा जिले में मनरेगा के तहत स्वीकृत हुए श्रेणी-4 के
कार्य पूर्ण नहीं हो पाए हैं। 14,663 व्यक्तिगत कार्य स्वीकृत
हुए थे जिनमें से केवल 5,825 पर ही कार्य
पूर्ण हुए हैं। जून माह तक 39 प्रतिशत कार्यों के लिए मस्टररोल जारी हो पाए हैं।
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style="font-size: 10pt; line-height: 115%; font-family: Mangal">शेष अधरझूल में हैं। प्रशासन का कहना है कि
मजदूर नहीं मिल रहे हैं। ये प्रशासन का अपनी नाकामयाबी को छिपाने के लिए
दिया गया बयान है।
काम पूरे नहीं हो पाने में मजदूरों की कमी को सबसे बड़ा कारण
बताया जा रहा है जबकि स्थिति विपरीत है। मजदूर काम की मांग कर रहे हैं लेकिन उन्हें काम नहीं दिया जा रहा
है। कहीं मजदूरों को आवेदन की रसीद नहीं दी जा रही है तो कहीं उनके काम का भुगतान समय पर नहीं हो रहा है। जिले की
सहाड़ा पंचायत समिति के उलाई गांव के लोगों ने मनरेगा में काम के लिए आवेदन किए। वे बताए अनुसार मनरेगा कार्यस्थल
पर पहुंच गए लेकिन वहां पता चला कि उनके नाम मस्टररोल में थे ही नहीं। उनके लिए मस्टररोल ही जारी नहीं किए गए।
अधिकतर महिला मजदूर थीं। वे धूप में पैदल कार्यस्थल पर गईं
और अगले दिन काम मिल जाने के आश्वासन पर पुनः घर को लौट आईं।
रायपुर पंचायत समिति के रामा गांव में तो मज़दूरों के नाम ही पंचायत समिति के कंप्यूटरों से हटा दिए गए। उन
मजदूरों को मनरेगा में काम नहीं दिया जा रहा है। पूर्व सरपंच नगजीराम सालवी ने पंचायत समिति के अधिकारियों व कर्मचारियों
से कई बार शिकायत की लेकिन मजदूरों के नाम वापस नहीं जोड़े गए। नगजीराम सालवी ने बताया कि जिन मजदूरों के नाम हटाए
हुए हैं उनमें अधिकतर अनुसूचित जनजाति के लोग हैं, जिनकी आजीविका मनरेगा ही है। काम नहीं मिलने से उन्हें भारी
समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने इस मामले में मजदूर किसान शक्ति संगठन के कार्यकर्ताओं को अवगत करवाया।
एमकेएसएस से जुड़े कमल टांक ने बताया कि विभाग के कार्यक्रम निदेशक से वे मिले, उन्होंने आश्वासन दिया कि वो जल्दी ही मजदूरों के नाम पुनः जुड़वाएंगे।
बहरहाल, रामा गांव के
अनुसूचित जनजाति के मजदूरों को करीबन दो माह से काम नहीं मिला है, उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। महुआ खुर्द गांव में कुछ सवर्ण
जातियों के लोगों को तो श्रेणी-4 कांटे की तरह चुभ रहा है। वे इस
कांटे को निकाल फेंकना चाह रहे हैं। सरकार
भले ही महुआ खुर्द के अनुसूचित जाति एवं जनजाति व बीपीएल परिवारों को
प्राथमिकता देते हुए उनके खेतों में
श्रेणी-4 के माध्यम से विकास करवाना चाह रही है, लेकिन यहां की कथित ऊंची जातियों के लोगों को यह मंजूर नहीं है। वे अनुसूचित जाति एवं जनजाति
के लोगों के खेतों में मनरेगा के तहत काम करने नहीं जा रहे हंै, यही नहीं वे अन्य
मजदूरों को भी काम पर नहीं जाने के लिए भड़का रहे हैं। एससी/एसटी के खेतों पर
कार्य करने के लिए मस्टररोल जारी
होने पर वे कार्य का ही बहिष्कार कर रहे हैं। जहाजपुर पंचायत समिति के पण्डेर
ग्राम पंचायत की सहायक सचिव तो पंचायत
में अपनी मनमर्जी चला रही है। वह न तो मजदूरों के आवेदन प्रपत्र-6 भरती है और न ही
उन्हें पावती रसीद देती है। मजदूर आवेदन
की ‘‘रसीद मांगते हैं तो कहती है रसीद दूं या न
दूं मेरी मर्जी। तुम्हें तो काम मिल जाएगा।’’
25 जून को कुछ महिला मनरेगा मजदूर राजीव गांधी सेवा केंद्र
में काम के लिए आवेदन करने गई। महिलाओं ने रोजगार सहायक रुकमणी लखारा को आवेदन पत्र भरने को कहा लेकिन रुकमणी
ने आवेदन पत्र भरने से इनकार कर दिया। महिला मजदूरों ने हंगामा किया। वहां मौजूद कांग्रेस के युवा
कार्यकर्ताओं ने पंचायत समिति के विकास अधिकारी को अवगत कराया।
विकास अधिकारी कन्हैया लाल वर्मा ने सहायक सचिव को फोन कर
आवेदन पत्र भरने के निर्देश दिए। सहायक सचिव रुकमणी लखारा ने विकास अधिकारी के निर्देश की पालना नहीं करते हुए एक
कागज पर सभी मजदूरों के नाम नोट कर उन्हें जाने को कह दिया। महिलाओं ने पावती रसीद की मांग करते हुए फिर से
हंगामा किया। महिला मजदूरों एवं सहायक सचिव के बीच काफी देर तक बहस होती रही। वहांमौजू़द सरपंचपति ने महिला
मजदूरों को शांत कर घर भेजा। एक रोजगार
सहायक की इस प्रकार की कत्र्तव्य विमुखता व अधिकारी के निर्देश को हवा कर देने के
रवैये से साफ जाहिर है कि
ग्राम पंचायतों में मनरेगा श्रमिकों के अधिकारों का हृास किया जा रहा है। फिर ऐसे
रवैये से गरीब मजदूरों को रोजगार
गारंटी योजना से मोह भंग नहीं होगा तो क्या होगा? राजनीतिक लोगों की भी ये मंशा नहीं है कि श्रेणी-4 के काम
हो। कार्य संपादित करवाने वाली स्थानीय
एजेंसी ग्राम पंचायतें भी श्रेणी-4 के कामों से मुंह फेरे बैठी है। सरपंचों को
श्रेणी-4 के काम करवाने में कोई खास रुचि नहीं
है। उन्हें रुचि है पक्के काम करवाने में। सरकार अगर पक्के कामों को स्वीकृति दे
दें फिर तो उन्हें मजदूर भी मिल जाएंगे
और वो कार्य भी नियत तिथि पूर्व ही पूर्ण करवा देंगे। प्रशासनिक अधिकारी भी बिना
कमीशन के कार्यों में कोई खास रुचि नहीं
लेते। ऐसी स्थिति में श्रेणी-4 के काम पूरे हो तो कैसे? सरकार व प्रशासन मनरेगा के नाम पर कितना ही भुनाने की कोशिश करे लेकिन हकीकत तो यही है कि इस
प्रकार की घटनाओं से मजदूरों का मनरेगा के प्रति माहे निरतं र कम हाते ा जा रहा है। (लेखर खबरकोश् डॉट कॉम सहसंपादक
है)ं (विविधा फीचर्स क् सौजन्य से)