समस्याएं कम नहीं हैं और उनसे हार मानने वाले भी। देश में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और आत्महत्

समस्याएं कम नहीं हैं और उनसे हार मानने वाले भी। देश में दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और आत्महत्याओं के 2011 के आंकड़ों की मानें, तो हर चार मिनट में एक व्यक्ति यहां अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेता है और आत्महत्या करने वाले पांच लोगों में से एक गृहिणी होती है।

सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2011 में इससे पिछले साल के मुकाबले 0.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2010 में जहां देश में एक लाख 34,599 लोगों ने अपनी जान दी थी, वहीं 2011 में यह संख्या बढ़ कर एक लाख 35,585 हो गई। सबसे ज्यादा आत्महत्याएं पश्चिम बंगाल (16,492) में हुईं। इसके बाद तमिलनाडु (15,963), महाराष्ट्र (15,947), आंध्रप्रदेश (15,077) और कर्नाटक (12,622) का नंबर है। कुल आत्महत्याओं में से 56.2 फीसदी इन पांच राज्यों में हुईं।

शहरों के हिसाब से देखें तो 53 शहरों में से मात्र बंगलूरू (1,717), चेन्नई (2,438), दिल्ली (1385) और मुंबई (1,162) में ही 36.7 प्रतिशत आत्महत्याएं हुईं। आत्महत्याओं के मामले में पुरुष-महिला अनुपात 65:35 का रहा। वहीं लड़के-लड़कियों (14 वर्ष की उम्र तक) में यह अनुपात 52:48 रहा। आत्महत्या करने वालों में 71.1 प्रतिशत पुरुष शादीशुदा थे और 68.2 प्रतिशत महिलाएं विवाहित थीं।

आंकड़ों के अनुसार अपनी जान लेने वालों में 38.3 प्रतिशत स्व-रोजगार में लगे थे, जबकि 7.7 प्रतिशत बेरोजगार थे। मात्र 1.2 लोग ही ऐसे थे, जिन्होंने सरकारी नौकरी में होते हुए आत्महत्या की। आत्महत्या करने के तरीकों में सबसे ज्यादा फांसी पर लटक कर (33.2 प्रतिशत) लोगों ने अपने प्राण दिए जबकि दूसरे नंबर पर जहर खाना (32 प्रतिशत) रहा। 8.8 प्रतिशत लोग जल कर मरे, जबकि 5.9 ने पानी में डूब कर जान दी।

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