नई दिल्ली।
हजारों करोड़ के उत्तर प्रदेश खाद्यान्न घोटाले की जांच के सिलसिले में
सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई का अहम दिन है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और
राज्य सरकार दोनों को खाद्यान्न घोटाले की जांच की बाबत पक्ष रखने की खातिर
नोटिस दी थी। इस मामले के याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने शीर्ष अदालत
से गुहार की है कि घोटाले की जद में आने वाले आला अफसरों के खिलाफ सीबीआई
को बगैर किसी मंजूरी के कार्रवाई करने की इजाजत दी जाए। इसके साथ ही यूपी
के फूड एवं सिविल सप्लाई मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैय्या के इस
घोटाले में रोल की बाबत उनके पूर्व सहयोगी राजीव यादव का दिया गया हलफनामा
भी सुप्रीम कोर्ट के आगे है।
विश्वनाथ चतुर्वेदी की दलील है कि इस जांच को अदालत खुद मानीटर करे क्योंकि
इसमें कई आला अफसरों समेत कई पार्टियों के कद्दावर नेताओं का भी रोल है।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर 2010 के आदेश में सीबीआई को
अभियोजन से पहले वैधानिक मंजूरी लेने की कानूनी वैधता से छूट दे दी थी।
कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को तीन महीनों के भीतर जरूरी मंजूरी देने को
कहा था। ऐसा न किए जाने की सूरत में मंजूरी दे दी गई मानी जाएगी।
साथ ही एजेंसी को हर दो महीने के भीतर स्टेट्स रिपोर्ट देने और छह महीने
में जांच पूरी करने को कहा गया था। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने
सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने 18 अप्रैल 2011 को
इस आदेश के एक बड़े हिस्से के अनुपालन पर रोक लगा दी थी। इसमें सीबीआई का
बगैर वैधानिक मंजूरी के अफसरों के खिलाफ कार्यवाही करना और मुख्य सचिव के
लिए मंजूरी देने की खातिर तीन महीने की समय सीमा शामिल थी।
विश्वनाथ चतुर्वेदी ने इस स्टे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका की थी
जिस पर शीर्ष अदालत ने सीबीआई और राज्य सरकार से जवाब मांगा था। राज्य
सरकार ने जवाब में कोर्ट की मानिटरिंग का विरोध किया है। एक अनुमान के
मुताबिक यह घोटाला 2 लाख करोड़ के करीब का है जिसमें यूपी के तमाम जिलों
में गरीबों के लिए आवंटित अनाज की जमकर कालाबाजारी की गई और बांग्लादेश,
नेपाल तक अनाज की तस्करी की गई।
हजारों करोड़ के उत्तर प्रदेश खाद्यान्न घोटाले की जांच के सिलसिले में
सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई का अहम दिन है। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और
राज्य सरकार दोनों को खाद्यान्न घोटाले की जांच की बाबत पक्ष रखने की खातिर
नोटिस दी थी। इस मामले के याचिकाकर्ता विश्वनाथ चतुर्वेदी ने शीर्ष अदालत
से गुहार की है कि घोटाले की जद में आने वाले आला अफसरों के खिलाफ सीबीआई
को बगैर किसी मंजूरी के कार्रवाई करने की इजाजत दी जाए। इसके साथ ही यूपी
के फूड एवं सिविल सप्लाई मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैय्या के इस
घोटाले में रोल की बाबत उनके पूर्व सहयोगी राजीव यादव का दिया गया हलफनामा
भी सुप्रीम कोर्ट के आगे है।
विश्वनाथ चतुर्वेदी की दलील है कि इस जांच को अदालत खुद मानीटर करे क्योंकि
इसमें कई आला अफसरों समेत कई पार्टियों के कद्दावर नेताओं का भी रोल है।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर 2010 के आदेश में सीबीआई को
अभियोजन से पहले वैधानिक मंजूरी लेने की कानूनी वैधता से छूट दे दी थी।
कोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को तीन महीनों के भीतर जरूरी मंजूरी देने को
कहा था। ऐसा न किए जाने की सूरत में मंजूरी दे दी गई मानी जाएगी।
साथ ही एजेंसी को हर दो महीने के भीतर स्टेट्स रिपोर्ट देने और छह महीने
में जांच पूरी करने को कहा गया था। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने
सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने 18 अप्रैल 2011 को
इस आदेश के एक बड़े हिस्से के अनुपालन पर रोक लगा दी थी। इसमें सीबीआई का
बगैर वैधानिक मंजूरी के अफसरों के खिलाफ कार्यवाही करना और मुख्य सचिव के
लिए मंजूरी देने की खातिर तीन महीने की समय सीमा शामिल थी।
विश्वनाथ चतुर्वेदी ने इस स्टे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका की थी
जिस पर शीर्ष अदालत ने सीबीआई और राज्य सरकार से जवाब मांगा था। राज्य
सरकार ने जवाब में कोर्ट की मानिटरिंग का विरोध किया है। एक अनुमान के
मुताबिक यह घोटाला 2 लाख करोड़ के करीब का है जिसमें यूपी के तमाम जिलों
में गरीबों के लिए आवंटित अनाज की जमकर कालाबाजारी की गई और बांग्लादेश,
नेपाल तक अनाज की तस्करी की गई।