शिमला.
प्रदेश के करीब एक लाख लोगों को को आईपीएच विभाग ‘जहरीला’ पानी पिला रहा
है। राजधानी शिमला में भी करीब ८ हजार लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं।
सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग की 155 पेयजल स्कीमों में वाटर ट्रीटमेंट
प्लांट नहीं है।
इन पेयजल स्कीमों से करीब 350 बस्तियों को पानी की सप्लाई की जाती है।
राज्य की मौजूदा कैबिनेट में तीन-तीन मंत्री देने वाले मंडी जिले में सबसे
अधिक 61 पेयजल योजनाएं ऐसी हैं जिनमें अभी तक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं
हैं।
प्रदेश को पांच बार मुख्यमंत्री देने वाले रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र की 16
पेयजल स्कीमें भी बिना ट्रीटमेंट प्लांट के हैं। विभाग की ये पेयजल स्कीमें
वर्षो से काम कर रही हैं।
इसलिए जरूरी है वाटर ट्रीटमेंट प्लांट
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी को साफ (ट्रीट) किया जाता है। प्लांट में
तीन-चार चेंबर होते हैं। नदी या खड्ड से लाए गए पानी को पहले चेंबर में
डाला जाता है। इस चेंबर में मोटी रेत और रोड़ी भरी रहती है। इससे पानी के
साथ आने वाली गंदगी यहीं रुक जाती। फिर यह पानी दूसरे चेंबर में डाला जाता
है जो पतली रेत से भरा रहता है। यहां भी पानी को साफ किया जाता है। तीसरे
चेंबर में पानी में क्लोरीन डालकर साफ किया जाता है। फिर इसे मेन टैंक में
डालकर मेन सप्लाई से लोगों के घरों तक पहुंचाया जाता है।
घातक रोग हो सकते हैं
बिना ट्रीटमेंट वाला पानी पीने से कई तरह के घातक रोग हो सकते हैं। ऐसे
पानी में कई बैक्टिरिया होते हैं। यह पानी पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाता
है। इससे हैजा, डायरिया, हैपेटाइटस-ए और ई हो सकता है। इलाज में देरी पर ये
जानलेवा बन जाते हैं। – डॉ. राजेश कश्यप, एसोसिएट प्रोफेसर (मेडिसन विभाग) आईजीएमसी
बनाए जा रहे हैं प्लांट
जिन पेयजल स्कीमों में ट्रीटमेंट प्लांट नहीं हैं वहां बनाए जा रहे हैं।
विभाग के पास फंड की कोई कमी नहीं है। इन स्कीमों से गंदा पानी सप्लाई नहीं
होता। बरसात में जरूर लोगों को मटमैला पानी पीने को मिलता है। -आरके शर्मा, आईपीएच विभाग के इंजीनियर इन चीफ