ब्रदर्स और एआइजी जैसे बड़े नामों को ढहने के साथ ही वैश्विक आर्थिक मंदी
की शुरुआत हो गयी थी. यूरोप की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और अमेरिका आर्थिक
मंदी के भंवर से आज तक नहीं निकल पाये हैं, वहीं भारत मंदी के बाद भी आठ
फ़ीसदी की विकास दर बरकरार रखने में कामयाब रहा था.
यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के कहर के चलते मंदी से बेहतर रिकवरी के बाद
भी हमारी अर्थव्यवस्था विकास के रास्ते से फ़िसल गयी. इस बजट से राहत की
उम्मीद की जा रही थी, लेकिन प्रणब दा के पिटारे से इंडिया इंक के लिए कुछ
खास नहीं निकला है. इस ढुलमुल बजट से निवेशकों का भारतीय बाजार में विश्वास
बहाल हो पायेगा, इसमें संदेह है. हालांकि बजट की तात्कालिक प्रतिक्रिया के
रूप में शेयर बाजार ने थोड़ा उछाल दिखाया है, मगर लंबे समय में बाजार के
फ़ंडामेंटल कमजोर हैं.
पेंशन, बीमा, भूमि अधिग्रहण, डीजल विनियंत्रण और रिटेल सेक्टर जैसे
दूसरी पीढ़ी के सुधारों पर बजट में कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया है और
इसी कारण यह बजट उद्योग जगत की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है. विमानन
क्षेत्र में विदेशी निवेश पर सरकार ने आगे बढ़ने का वादा किया और इस मसले
पर सहयोगी दलों में भी मतभेद नहीं है, लिहाजा संकट में फ़ंसे विमानन के लिए
यह राहत की खबर है.
शेयर बाजार में सुधार और छोटे निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के लिहाज से
कुछ उत्साहजनक कदम उठाने की घोषणा की गयी है. वित्तमंत्री ने कहा है कि नये
निवेशकों को कर में राहत दी जायेगी और इससे आइपीओ का दायरा बढ़ाने में मदद
मिलेगी. गौरतलब है कि जब कोई कंपनी पहली बार शेयर बाजार में सूचीबद्ध होकर
जनता के लिए आइपीओ जारी करती है. दो राय नहीं है कि कर में राहत मिलने से
छोटे शहरों के निवेश भी आइपीओ के जरिये शेयर बाजार तक अपनी पहुंच बना
पायेंगे.
एक शंका यह भी है कि जब तक निवेशकों को बिना किसी बाधा के पेंशन और बीमा
फ़ंडों को शेयर बाजार में लगाने की अनुमति नहीं दी जायेगी, ऐसे छोटे
फ़ैसलों से कोई खास फ़र्क नहीं पड़ने वाला है. बजट के मुताबिक सरकार राजीव
गांधी इक्विटी योजना की शुरूआत करेगी और इसमें निवेश करने पर सालाना दस लाख
से कम आमदनी वाले लोगों को कर में राहत मिलेगी. बचत खाते पर मिलने वाले दस
हजार रुपये तक के ब्याज को भी कर मुक्त कर दिया गया है.
यह दोनों ही योजनाएं छोटी आमदनी वाले निवेशकों के लिए फ़ायदेमंद होंगी.
निवेशकों के लिए एक और सौगात के रूप में प्रणब दा ने 60,000 करोड़ रुपये के
कर मुक्त बांड जारी करने का ऐलान किया है. गिरावट के इस दौर में निवेशकों
के लिए यह राहत का काम करेगा.बजट में पीएसयू के विनिवेश से 30,000 करोड़
रुपये उगाहने की बात कही गयी है, लेकिन इस वादे पर शायद ही किसी निवेशक को
ऐतबार हो. पिछले बजट में भी सरकार ने विनिवेश से 40,000 करोड़ रुपये जुटाने
की बात कही थी, लेकिन यह आंकड़ा 1,100करोड़ का दायरा भी पार नहीं कर पाया
है.
फ़िलहाल निवेशकों के सामने महंगी ब्याज दरें सबसे बड़ी समस्या है. बजट
में इस मोर्च पर राहत मिलती नहीं दिख रही. 2010 के आखिर में आपूर्ति तंत्र
की गड़बड़ियों के चलते खाद्य वस्तुओं की चढ़ती कीमतों से महंगाई को हवा
मिली और मांग घटाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने कर्ज महंगा करना शुरू कर
दिया. महंगाई भी कम नहीं हुई और महंगे कर्ज के कारण निवेश का टोटा पड़
गया, वहीं दूसरी ओर एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले उजागर होने से सरकार
नीतिगत अक्षमता का शिकार हो गयी. 22,000 हजार अंकों की उंचाई छूने वाला
सेंसेक्स 16,000 अंकों पर झूल रहा है, लेकिन बजट में महंगे कर्ज पर कुछ
नहीं कहा गया है.
रियल स्टेट भी महंगे कर्ज, अधिक उत्पादन और घटती मांग के दुष्चक्र से
जूझ रहा है.पिछली दो तिमाहियों से मांग में कमी का सामना कर रहे ऑटोमोबाइल
सेक्टर के लिए बजट में बुरी खबर है. सरकार ने बड़ी कारों पर एक्साइज डयूटी
20 फ़ीसदी से बढ़ाकर 22 फ़ीसदी कर दी है और ऑटोमोबाइल सेक्टर इस फ़ैसले का
कड़ा विरोध कर रहा है. डीजल का विनियंत्रण करने की बजाय सरकार कार निर्माता
कंपनियों पर कर लगाकर तेल सब्सिडी बिल की भरपाई करना चाहती, मगर यह कवायद
देश के उभरते वाहन उद्योग की कमर तोड़ सकती है.
यूरोप और अमेरिका में छायी मंदी के बादलों से हलकान आइटी व
फ़ार्मासूटिक्यूल सेक्टर लंबे समय से राहत पैकेज की मांग कर रहे थे, लेकिन
बजट से दोनों सेक्टरों को निराशा हाथ लगी है. आर्थिक सुधारों की नींव रखने
वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास अपनी अगुवाई में दूसरी पीढ़ी के
सुधार लागू करने का स्वर्णिम अवसर था, मगर यह बजट सुधारों को धार देने में
कामयाब नहीं हो पाया.
(लेखक अर्थशास्त्री व ऑक्सस इनवेस्टमेंट के अध्यक्ष)