रिसर्च संस्थानों में शामिल फिलीपींस स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च
इंस्टीट्यूट यानी ईरी के उप महानिदेशक ऑपरेशंस डॉ. विलियम जी पैडोलिना से
संजय मिश्र की बातचीत:
-उत्पादन बढ़ने के बावजूद विश्व में
खाद्यान्न एक बड़ी समस्या बन गया है। आखिर भविष्य में इसकी पर्याप्त
उपलब्धता को लेकर गंभीर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं?
यह सवाल उठना
लाजिमी है, क्योंकि आबादी जिस रफ्तार से बढ़ रही है, खेती का क्षेत्रफल उस
अनुपात में नहीं बढ़ सकता। उलटे शहरीकरण-औद्योगिकीकरण के कारण खेती का आकार
कम हो रहा। भविष्य में अनाज का यह संकट बेशक दुनिया भर की समस्या है।
एशियाई देशों के लिए यह चुनौती ज्यादा गंभीर है, क्योंकि विश्व की आधी से
ज्यादा आबादी यहीं है। हमारे लोगों की थाली का मुख्य आधार ही चावल, रोटी या
अन्य अनाज है। यही स्थिति अफ्रीकी देशों की भी है। इसीलिए अब खाद्यान्नों
विशेषकर चावल, गेहूं, मक्के आदि का उत्पादन ही नहीं, इसकी पोषकता भी बढ़ानी
होगी। ईरी ने इसी चुनौती को देखते हुए चावल की नई ट्रांसजेनिक किस्म
गोल्डन राइस की खोज की है। फिलीपींस समेत कई देशों में गोल्डन राइस का
फील्ड ट्रायल चल रहा है और भारत इसमें हमारा अहम भागीदार देश है।
-गोल्डन राइस चावल की मौजूदा प्रजातियों से अलग कैसे है और इसकी उपज कैसी है?
इस
चावल का रंग सुनहरा होने की वजह से इसका नाम गोल्डन राइस दिया गया है। इस
चावल को ट्रांसजेनिक तकनीक से विकसित किया गया है, जिसमें विटामिन ए का एक
खास जीन ट्रांसप्लांट किया गया है। दुनिया की करीब तीन अरब की आबादी केवल
चावल और गेहूं से ही पेट भरती है, उसके पास पौष्टिकता के दूसरे स्रोत
जुटाने के आर्थिक साधन नहीं हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए विटामिन ए
आधारित इस चावल को विकसित किया जा रहा है। फील्ड ट्रायल में जो नतीजे आए
हैं, उसमें इसकी उपज भी धान की मौजूदा किस्मों के मुकाबले प्रति एकड़ दस
प्रतिशत तक ज्यादा आंकी जा रही है।
-इस ट्रांसजेनिक चावल से खाद्य संकट में कितनी मदद मिलेगी और क्या स्वास्थ्य के लिहाज से इसको लेकर सवाल नहीं उठेंगे?
यह
जीन ट्रांसप्लांट पर आधारित चावल है। इसमें चावल के स्वरूप के साथ कोई
छेड़छाड़ नहीं की गई है। बस केवल इसकी पोषकता बढ़ाने के लिए जीन
ट्रांसप्लांट किया गया है और यह स्वास्थ्य के लिहाज से पूरी तरह सुरक्षित
है। मैं यह दावा नहीं कर रहा कि केवल गोल्डन राइस या ट्रांसजेनिक तकनीक ही
दुनिया की खाद्य संकट का हल है, बल्कि बॉयोटेक आधारित खेती पर भी गंभीरता
से सोचना होगा। चीन इसको लेकर लेकर काफी सजग है और अपने स्तर पर फील्ड
ट्रायल कर रहा है।
-जब बॉयोटेक मक्के और बैगन को लेकर ही तमाम सवाल कई देशों में उठाए जा रहे हैं, ऐसे में बीटी विकसित चावल कितना स्वीकार्य होगा?
ईरी
का तो काम ही है नई किस्मों और तकनीकों को विकसित करना, वह भी जो पूरी तरह
दुनिया के स्वास्थ्य मानकों पर खरा उतरे। बीटी आधारित अभी तक सामने आई
फसलें चाहे मक्का हो याटमाटर, स्वास्थ्य मानकों पर खरी उतरी हैं। चावल पर
यह शोध अभी बहुत शुरुआती चरण में है।