अब परतें खुल रही हैं, क्यों हुई मप्र में गेहूं की बंपर खरीद

जागरण ब्यूरो, भोपाल। इस बार मध्यप्रदेश में समर्थन मूल्य पर गेहूं की
बंपर खरीद कैसे हुई, यह अब धीरे-धीरे सामने आने लगा है। एक किसान के पास
दस एकड़ से भी कम रकबा है पर उससे सरकार ने 800 क्िवटल गेहूं खरीद लिया।
जाहिर है सरकारी मशीनरी की मिलीभगत से व्यापारी अपना काम निकालने में सफल
हो गए।

हरदा जिले का मामला यह बताने के लिए पर्याप्त है कि बंपर खरीदी किस
अंदाज में हुई। जानकारी के अनुसार जिले की कृषि उपज मंडी में कैंटीन चलाने
वाला गोविंद मूलाजी करीब दस एकड़ रकबे का किसान भी है। इस बार उसने समर्थन
मूल्य पर दस लाख रुपये का 800 क्विंटल से अधिक गेहूं बेचा। गेहूं की
पैदावार के लिए देश में अपनी पहचान बनाने वाले इस जिले में एक एकड़ में
अधिकतम 20 क्विंटल गेहूं पैदा होता है। इस हिसाब से 800 क्विंटल गेहूं के
लिए कम से कम 40 एकड़ जमीन चाहिए। साफ है कि कहीं न कहीं घपला हुआ है और
सबकी मिलीभगत से कई लोग पैसा बनाने में कामयाब हो गए हैं।

सूत्रों का कहना है कि यह तो एक उदाहरण मात्र है। अकेले हरदा जिले के
कड़ौला खरीदी केन्द्र में ही सात लोग ऐसे हैं जिनके पास दस एकड़ से कम जमीन
है लेकिन उन्हें 10 लाख से अधिक का भुगतान हुआ है। इनमें समिति प्रबंधक
हरिप्रसाद का पुत्र मनोज भी शामिल है। इसके अलावा अनिल राठौर, राजेंद्र
रामविलास, अशोक मेघराज, मदन हरिराम और सोहन हेमराज के नाम पर भी इतनी ही
राशि का भुगतान हुआ है। यह खुलासा मंडी के अधिकारियों ने किया है।

ग्रामीण क्षेत्रों की सहकारी समितियों से जुड़े लोग बताते हैं कि खरीदी
शुरू होने पर जब मंडियों और खरीदी केन्द्रों के बाहर ट्रैक्टरों की लंबी
कतारें लग गईं तो दलाल सक्रिय हो गए। इन लोगों ने किसानों से समर्थन मूल्य
से कम कीमत पर गेहूं खरीदा और सरकार को बेच दिया। समिति पदाधिकारियों की
मिलीभगत से की गई इस गड़बड़ी को छुपाने के लिए किसानों की ऋण पुस्तिकाओं की
फोटो कॉपी जमा नहीं कराई गई ताकि उनके नाम से वास्तविक उत्पादन से अधिक
गेहूं खरीदा जा सके। बताते हैं कि प्रभावशाली व्यापारी किसानों की ऋण
पुस्तिका अपने पास रख लेते हैं और अपने नाम से भुगतान लेने के लिए फर्जी
बटाया नामा भी तैयार करवा लेते हैं। जानकार बताते हैं कि ज्यादातर किसान इन
व्यापारियों के कर्जदार होते हैं, इसलिए झांसे में आने के सिवाए उनके पास
कोई दूसरा चारा भी नहीं रहता। सूत्रों ने कहा कि जांच दलों ने राजधानी से
सटे औबेदुल्लागंज और मंडीदीप में भी इसी तरह के मामले पकड़े थे।

पीडीएस का गेहूं भी जमकर बिका

गुना जिले की मुंगावली तहसील की सेवा सहकारी समिति डोंगर में 500
क्िवटल पुराना और सड़ा हुआ गेहूं पकड़ा गया। जिस बारदाने में गेहूं भरा हुआ
था उस पर हरियाणा का पता लिखा था। जिला स्तरीय जाच दल ने पहले गेहूं को नया
बता दिया। बाद में मामला खुलने पर दोबारा जांच में गेहूं पुराना होने की
तस्दीक हुई। फिलहाल गेहूं गोदाम में रखा हुआ है।

सड़ने भी लगा है

जानकारों के मुताबिक करीब दस लाख मीट्रिक टन गेहूं ऐसा है, जो सुरक्षित
ठिकानों पर नहीं पहुंच पाया है। सरकार ने कैप स्टोरेज के जरिए समस्या पर
काबू करने की कोशिश जरूर की पर सभी जगह ऐसा नहीं हो पाया। होशंगाबाद में ही
दस हजार मीट्रिक टन गेहूं खुले में पड़ा है, जबकि पिछले दिनों झमाझम बारिश
हो चुकी है। ट्रकों में लदे गेहूं का भंडारण न होने से गेहूं पानी लगने से
सड़ने लगा है, बल्कि वह अब अंकुरित होने लगा है। पिछले पन्द्रह दिनों से कई
ट्रक बाबई में लदे खड़े हैं पर इंतजाम नहीं है। जिले में लगभग एक हजार करोड़
रुपये की लागत से 7 लाख 32 हजार मीट्रिक टन गेहूं की खरीदी की गई है।
हालांकि टारगेट छह लाख मीट्रिक टन का था। उल्लेखनीय है कि मप्र में गेहूं
की सरकारी खरीदी ने इस बार सारे रिकार्ड तोड़े हैं। किसानों से कोई 50 लाख
मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया। यह अलग बात है कि कई स्थानों पर सुरक्षित
स्टोरेज के अभाव में गेहूं सड़ रहा है।

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