अम्बाला। एक तरफ उपजाऊ जमीन से जुड़े रहने का किसानों का जज्बा है वहीं दूसरी तरफ यही जमीन लेने की विधायक विनोद शर्मा की जिद।
अम्बाला में इंडस्ट्रियल मॉडल टाउनशिप (आईएमटी) का मामला अब किसान बनाम
विधायक बन गया है। विधायक ने आईएमटी के पक्ष में हस्ताक्षरों का गत्था
सौंपा लेकिन अम्बाला रैली में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस पर
कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं की।
शायद इसके पीछे एक वजह यह थी कि भट्टा पारसौल का मामला अभी गर्म है।
जमीन बचाओ किसान संघर्ष समिति के प्रधान बलवंत सिंह ने कहा कि विधायक
आईएमटी के लिए इन गांवों की उपजाऊ जमीन ही लेने की जिद क्यों कर रहे हैं?
जबकि जिले में बंजर जमीन भी है। इससे कई अंदेशे पैदा होते हैं क्योंकि जिस
जमीन में आईएमटी प्रस्तावित है उसके आसपास कई प्रभावशाली लोगों ने काफी
जमीनें खरीद रखी हैं।
किसानों को ‘विस्थापित’ कर इन लोगों की जमीनों के दाम बढ़ाने की कोशिश की
जा रही है। यही नहीं इन गांवों की सारी जमीन पर कुछ लोगों की ‘गिद्ध
दृष्टि’ लगी है। किसान अपनी जमीन नहीं देंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।
किसानों को कहां-कहां से उम्मीद
केंद्रीय मंत्री एवं अम्बाला की सांसद कुमारी सैलजा से बहुत उम्मीदें हैं
क्योंकि वो किसानों के आंदोलन का खुलकर समर्थन कर चुकी हैं। मुख्यमंत्री को
पत्र भी लिखा था कि उपजाऊ जमीन की बजाय शिवालिक के बंजर इलाकों में आईएमटी
लगाएं। इस मुद्दे के साथ अब सैलजा की साख भी जुड़ी है।
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी बहुत उम्मीदें हैं। खासकर ग्रेटर नोएडा
मामले में किसानों पर हुए अत्याचार के बाद जिस तरह राहुल खुलकर मैदान में
आए हैं। वैसे भी अम्बाला में उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण रुकवाने के लिए यूथ
कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल पहले राहुल गांधी से मिला भी था।
यूथ कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष चिरंजीव यादव ने किसानों की महापंचायत में
ऐलान किया था कि यदि सरकार ने उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण न टाला तो यूथ
कांग्रेस किसानों के साथ मिलकर धरने पर बैठेगी। ग्रेटर नोएडा मामले में यूथ
कांग्रेसियों ने मायावती का पुतला भी फूंका था।
भाजपा व इनेलो तो पहले ही किसानों के समर्थन में हैं। इनेलो प्रमुख ओम
प्रकाश चौटाला ने तो पंजोखरा में किसान महापंचायत में पहुंचकर ऐलान किया था
कि हर स्थिति में किसानों का साथ देंगे। भाजपा विधायक दल के नेता एवं कैंट
विधायक अनिल विज शुरू से ही किसानों के साथ हैं।
किसानों को जिले के उन किसानों से मदद की उम्मीद है जो पहले अधिग्रहण की
/>
मार झेल चुके हैं। खासकर कांवला व जंडली क्षेत्र में किसानों के साथ ऐसा ही
हुआ था। जहां पहले धारा 4 लगाकर किसानों को डराया गया और फिर डवलपर्स ने
किसानों से भूमि के सौदे किए।