नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। नक्सल प्रभावित जिलों के विकास कार्यो में
बड़ी सहूलियत देते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पांच हेक्टेयर तक की
वन भूमि के इस्तेमाल को मंजूरी का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया है।
पर्यावरण मंत्रालय ने यह फैसला केंद्रीय गृह मंत्रालय, योजना आयोग और राज्य
सरकारों के काफी समय से चले आ रहे आग्रह के बाद लिया है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के मुताबिक राज्यों में शिक्षा,
स्वास्थ्य, पेयजल, सिंचाई, संचार, ग्रामीण सड़क, पुलिस थाना निर्माण जैसी
जनहित योजनाओं के लिए वन भूमि के इस्तेमाल की मौजूदा सीमा को दो हेक्टेयर
से बढ़ाकर पांच हेक्टेयर किया जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस बाबत
राज्य सरकारों को प्रत्येक छह माह में इस तरह की परियोजनाओं के लिए वन भूमि
के उपयोग परिवर्तन का ब्योरा देना होगा।
पर्यांवरण मंत्रालय ने देश के साठ नक्सल प्रभावित इलाकों को दी इस
रियायत के लिए 13 क्षेत्र भी चिन्हित किए हैं जिनके तहत वन भूमि के उपयोग
परिवर्तन की इजाजत होगी। इस श्रेणी में विद्यालय निर्माण, दवाखाना/अस्पताल,
बिजली व संचार लाइनें, पेयजल, पानी व वर्षा जल संचय, छोटी सिंचाई नहर, गैर
पारंपरिक ऊर्जा परियोजना, दक्षता विकास, बिजली सब स्टेशन, ऑप्टिकल फाइबर
लाइन बिछाने जैसे कामों को रखा गया है।
देश के नक्सल प्रभावित नौ सूबों में इस समस्या के पीड़ित जिलों का
अधिकतर हिस्सा वन भूमि के तहत आता है। वहीं विकास परियोजनाओं के लिए वन
मंजूरी लेने को विकास कार्यो में देरी की भी वजह माना जाता है। नक्सल
प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने गृह मंत्रालय और योजना आयोग की
बैठकों में भी कई बार इस मुद्दे को उठाया।