आदिवासियों की जमीन पर कब्जा

भोपाल.
कानूनन आदिवासियों की भूमि खरीदी बेची नहीं जा सकती। इसके बावजूद प्रदेश
में आदिवासियों की जमीन खरीदने और कब्जे करने के मामले सामने आ रहे हैं।




मप्र राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग में दो साल में ऐसी 50 शिकायतें दर्ज हुई
हैं। आयोग ऐसे मामले राजस्व विभाग को भेजने के अलावा कोई कार्रवाई नहीं कर
पाता।




आदिवासियों की जमीन उद्योग को: बीते माह पन्ना जिले के गांव
बीजाखेड़ा में 50 आदिवासियों की 184 एकड़ जमीन एक उद्योग समूह द्वारा
खरीदने का मामला सामने आया था। यह जमीन जीएसग्रीन एग्रोटेक समूह ने वर्ष
2008 में खरीदी और जून 2010 में उस पर कब्जा कर फसल बो दी।




समूह के प्रतिनिधि प्रेम सिंह चौहान और संबंधित पटवारी सहित शासकीय अमले
के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज हुआ है। यह जमीन भूमिहीन आदिवासियों को नौ
साल पहले आवंटित की गई थी।




आयोग में 50 शिकायतें लंबित




आयोग में वर्ष 2008 से 2010 के बीच कब्जे और जमीन बिक्री की 50 शिकायतें
दर्ज हुई हैं। आयोग ने यह मामले राजस्व मंडल भेजे हैं। आयोग को वनाधिकार
पट्टा नहीं मिलने और अत्याचार की औसतन 60 शिकायतें हर महीने मिल रही है।




आयोग को मिल रहीं शिकायतें




आदिवासियों की जमीन बेचने एवं कब्जे करने की शिकायतें मिल रही है। हम मामले
की तफ्तीश कर अपनी सिफारिशें राजस्व मंडल को भेज देते हैं।




जेपी पोरवाल,सचिव अजजा आयोग




कब्जा दिलाने की प्रक्रिया लंबी




आयोग को जमीन पर कब्जे एवं दूसरे नामों से जमीन खरीदने के मामले आ रहे है
पर कब्जा वापस दिलाने की प्रक्रिया लंबी है। आयोग की अनुशंसा के बाद राजस्व
मंडल में मामला चलता है। यहां से निपट जाने के बाद अदालत में प्रकरण पहुंच
जाता है।




आयोग के पास ऐसे दो मामले है जो 50 सालों से चल रहे हैं। इनमें बैतूल जिले
के ग्राम जामठी में वर्ष 1960 में एक स्कूल ने आदिवासी से 3 हजार रुपए में
जमीन खरीदी। इसके विरोध में मामला राजस्व बोर्ड गया।




अब कलेक्टर कार्यालय में लंबित है। अनूपपुर जिले के ग्राम खेरी में आदिवासी
रामलाल कोल की जमीन 3 हेक्टेयर गयाप्रसाद जायसवाल ने खरीद ली। वर्ष 2002
से कलेक्टर कोर्ट से चलकर अदालत में प्रकरण चला गया। कलेक्टर निर्देश दे
चुके कि आदिवासी को जमीन दी जाए। यह प्रकरण वर्ष 1959 का है।

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