बिजनौर [विनोद भारती]। सूखे की मार झेलने वाले वेस्ट यूपी के किसानों के
लिए खुशखबरी। अब पानी की कमी से धान की फसल बर्बाद नहीं होगी। साथ ही
रोपाई के लिए खेतों में पानी भी नहीं भरना पड़ेगा। वैज्ञानिकों का दावा है
कि इस नई विधि से पैदावार भी अपेक्षाकृत अधिक होगी।
दरअसल, वैज्ञानिकों नेधान को गेहूं की तर्ज पर पंडलिंग विधि से उगाने
में सफलता हासिल कर ली है। अभी तक धान की फसल को ट्रांसप्लांटेशन विधि
[रोपाई] से उगाया जाता है। इसके तहत खेतों को पानी से भरकर पौध लगाई जाती
है। इसमें पानी की बहुत अधिक खपत होती है। इसके लिए किसान मानसून के अलावा
नहर, राजवाहों और नलकूपों पर पूरी तरह आश्रित हैं। यदि मानसून धोखा दे जाए
या नहर और राजवाहों में समय से पानी न छोड़ा जाए तो फसल बर्बाद होना तय है।
खासतौर से खरीफ की फसलों के समय किसानों को सिंचाई की समस्या से जूझना
पड़ता है। जून में तो सूखे के हालात पैदा हो जाते हैं। बिजली की कमी के चलते
नलकूपों से भी सिंचाई नहीं हो पाती।
बुलंदशहर स्थित सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि अनुसंधान केंद्र में पिछले
तीन साल से धान को गेहूं की तर्ज पर पंडलिंग विधि से उगाने पर चल रहे शोध
के सकारात्मक परिणाम निकले हैं।
सरकार को सौंपा प्रोजेक्ट:-
अनुसंधान केंद्र प्रभारी कृषि वैज्ञानिक डा.एमके कौशिक ने बताया कि सफल
प्रोजेक्ट को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान
परिषद भेजा गया है। इन नए प्रोजक्ट में वैज्ञानिक सलाहकार परिषद की सलाह पर
कई मोडिफिकेशन भी किए गए हैं।
पंडलिंग विधि के फायदे:-
वैज्ञानिक डा.एमके कौशिक ने बताया कि अभी तक एक किलोग्राम चावल पैदा
करने में 250 से 300 लीटर पानी की जरूरत होती है। इस विधि से पानी की 30 से
40 फीसदी बचत होगी। बीजों की बुवाई के चलते अब रोपाई को मजदूरों पर निर्भर
नहीं रहना पड़ेगा। यानि लेबर कम लगेगी। बरसात के बाद फसल में कीट और रोग
लगने की आशंका कम हो जाएगी। सबसे बड़ी बात यह कि पंडलिंग विधि से धान की
पैदावार काफी बढ़ जाएगी।