मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य मंडला
ज़िले में एक चैरिटेबल अस्पताल में आंख के ऑपरेशन के बाद एक साथ 29 लोगों
की आंखें ख़राब होने का मामला सामने आया है.
इनमें से 25 लोगों को बाद में नक़ली आंखें लगाई गई. योगीराज
चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा संचालित इस अस्पताल में इसी साल 11 सितंबर को
दूरदराज के गांवों से लाए गए 30 लोगों के मोतियाबिंद के ऑपरेशन किए गए थे.
ये सारे ही ऑपरेशन एक निशुल्क कैंप में किए गए थे. ऑपरेशन के दो दिन बाद ही इन्हें आंखों की पट्टियां खोलकर वापिस गांव भेज दिया गया.
लेकिन एक सप्ताह में ही इनकी उस आंख से आंसू और मवाद (पस)
निकलने लगा जिसका ऑपरेशन किया गया था. फिर सारे ही लोगों को अस्पताल में
वापिस बुलाया गया और दोबारा ऑपरेशन किया गया लेकिन तब तक संक्रमण इतना बढ़
चुका था कि उनकी आंख निकालना डॉक्टरों के लिए ज़रूरी हो गया था.
डॉक्टरों का कहना है कि अगर वो इनकी संक्रमित आंख नहीं
निकालते तो ये संक्रमण दूसरी आंख में भी हो जाता और अच्छी आंख भी ख़राब हो
जाती.
अपनी आंख गंवा चुके एक मरीज़ गेंदा लाल गोंड का कहना है,
“गांव में मुनादी कराई गई थी कि स्वास्थ्य शिविर लगना है लेकिन मरीज़ ढूंढे
गए सिर्फ आंख वाले. 11 सितंबर को ऑपरेशन हुआ, फिर दोबारा जांच के लिए
बुलाया और पता नहीं क्या किया, क्या नहीं, वो ही जानें. तकलीफ़ तो हो रही
थी, डॉक्टर साहब बोले – अब आपको तकलीफ़ नहीं होगी, गोलियां-वोलियां दीं,
जबकि आंख तो कब की निकाल दी गई थी.”
अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर परवेज़ ख़ान का कहना है कि संक्रमण रोकने के लिए आंख निकालना ज़रूरी हो गया था.
जब डॉक्टरों ने इन 30 मरीज़ों की जांच की तो पता चला कि
इनमें से 25 मरीज़ों की आंख निकालना ज़रूरी हो गया था. जबकि डॉक्टरों की
सलाह पर 5 मरीज़ों को नागपुर भिजवाया गया जहां पर चार मरीज़ों की आंख का
संक्रमण दूर हो गया और इनकी आंख भी नहीं निकालनी पड़ी.
हालांकि ये चारों ही मरीज़ अब इस आंख से देख नहीं सकते.
इन मरीज़ों की शिकायत है कि उन्हें पता ही नहीं था कि उनकी
एक असली आंख की जगह नक़ली आंख लगा दी गई है. अब ये सारे ही मरीज़ पत्थर की
आंख अपने हाथों में लिए घूम रहे हैं.
योगीराज चैरिटेबल ट्रस्ट के ट्रस्टी टीएस मिश्रा का कहना है
कि 2004 लेकर अब तक 4000 अधिक ऑपरेशन हुए हैं, इस अस्पताल में अब तक
सिर्फ़ यही तीस ऑपरेशन नाकाम हुए हैं, जो सरकार की मान्य 4 प्रतिशत नाकाम
मानक से बहुत कम हैं.
टीएस मिश्रा यह भी मानते हैं कि कहीं लापरवाही तो हुई है
जिसकी जांच अस्पताल प्रबंधन और ज़िला कलेक्टर द्वारा गठित चार विशेषज्ञ
डॉक्टरों की टीम करेगी और किसी दोषी को बख़्शा नहीं जाएगा.
चुप है प्रशासन
इस पूरे मामले में सबसे ख़ास बात ये है कि ग़रीबी और बेहाली
के शिकार इन 29 लोगों की सुध न तो प्रशासन ने ली और न ही अस्पताल प्रबंधन
ने दोबारा इनसे इनका हाल पूछा.
मंडलाके मुख्य चिकित्सा अधिकारी आर
के श्रीवास्तव का इस मामले में कहना है कि योगीराज अस्पताल ने स्वास्थ्य
विभाग से मोतियाबिंद का ऑपरेशन करने के लिए लगाए गए शिविर की इजाज़त ही
नहीं ली थी.
कई मरीज़ तो अब पछता रहे हैं कि वो इस शिविर में शामिल ही
क्यों हुए. आंख गंवा चुके कई मरीज़ बताते हैं कि उन्हें ज़बरदस्ती बस में
बैठा कर इस मोतियाबिंद शिविर में लाया गया था और वो इसमें आना ही नहीं
चाहते थे.
इन्हीं में से एक हैं रासू बाई. रासू बाई आदिवासी गोंड जाति
की हैं. वो भी अपनी एक आंख गंवा चुकी हैं. योगीराज अस्पताल ने तो उन्हें
सिर्फ़ उनके हाल पर छोड़ा था, उनके बहू और बेटे ने तो उन्हें घर से ही
निकाल दिया है.
रासू बाई का कहना है, “बेटे और बहू कहते हैं, जाओ जिस अस्पताल में ऑपरेशन करवाया है वहीं जाकर रहो, वही तुम्हें खाने को देंगे.”
60 साल की महिला नींदा बाई का कहना है कि वो तो अपने बेटे
से ये भी कह चुकी हैं कि वो उन्हें गंगा में जाकर बहा दे क्योंकि उसकी आंख
ख़राब हो चुकी है और उससे उसे कुछ दिखता नहीं.
ठगे गए कई लोगों को तो अब ये समझ में नहीं आ रहा है कि वो
किस तरह से अपना जीवन गुज़ारेंगे. कई तो ऐसे हैं जिनका मौजूदा रोज़गार तक
उनसे छिन गया है.
हर छोटी बड़ी बात पर राजनीति करने वाले राजनेताओं को तो
इतनी बड़ी घटना की जानकारी ही नहीं है. जब उनसे इस मामले में पूछा गया तो
कहते हैं कि ये तो आपसे ही मालूम हुआ है कि ऐसा भी कुछ हुआ है.
मध्य प्रदेश के अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के अध्यक्ष
और मंत्री का दर्जा प्राप्त रामलाल रोथेल कहते हैं, “ये एक निजी ट्रस्ट है
जिसने ये आयोजन किया था, मैं कलेक्टर से इस मामले में जानकारी हासिल
करूँगा. दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी.”
इस मामले में जब ज़िला कलेक्टर के के खरे से बात करने की
कोशिश की गई तो उन्होंने इस मुद्दे पर बात करना ही उचित नहीं समझा और कह
दिया कि जो भी जानकारी चाहिए वो ज़िले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ही देंगे.
वहीं, मुख्य चिकित्सा अधिकारी आर के श्रीवास्तव ने पहले तो
मामले को टालना चाहा लेकिन जब उनसे दबाव देकर पूछा गया तो उनका कहना था कि
आप सूचना के अधिकार के तहत ये सारी जानकारी ले लें, वो इस बारे में कुछ
नहीं कह पाएंगे.
जो भी, हो इन तीस ग़रीबों की आँखे तो चली गईं, अधिकारियों ने भी अपनी आंखे बंद कर ली है, कैसे चलेगी इनकी ज़िंदगी, कोई नहीं जानता.