सूचना का अधिकार बना हथियार- अशीष कुमार अंशु

कमलेश कामत अमही प्रखंड मधुबनी, बिहार के रहने वाले हैं. सूचना के अधिकार से उनका परिचय अभी नया-नया है. वे समझ नहीं पा रहे हैं कि हाल में जब प्रखंड कार्यालय से उन्होंने पंचायत में होनेवाले विकास संबंधी कायरें में हो रहे व्यय का ब्योरा मांगा तो क्यों पंचायत से लेकर ब्लॉक तक में उनकी इज्जत पहले से कई गुना बढ़ गयी. पहले जो बीडीओ उन्हें अपने आस-पास भी फ़टकने नहीं देते थे, आजकल दफ्तर में ना सिर्फ़ बिठाते हैं बल्कि चाय भी पूछते हैं.

कमलेश के घर से ब्लॉक ऑफ़िस की दूरी तीन घंटे की है.डेढ़-दो घंटे पैदल चलना पड़ता है क्योंकि उस रास्ते में सवारी नहीं मिलती. इतनी दूर से ब्लॉक आने के बाद बाबू से लेकर साहब तक उसे दुत्कार देते थे तो आप समझ सकते हैं, उसपर क्या बीतती होगी? कमलेश को कोई बड़ी जीत हासिल हुई है ऐसा नहीं है, लेकिन ब्लॉक के बाबू और अफ़सर से मिले प्यार के दो बोल ही उसके लिए अमृत के बराबर हैं. कमलेश इस बदलाव की वजह से सूचना के अधिकार को सिर्फ़ अधिकार नहीं बल्कि चमत्कार समझता है.

गांव के आदमी को और क्या चाहिए? वह अपने साहब से मिले. इस अप्रत्याशित प्रेम की वजह से आरटीआइ की बात पूरी तरह भूल चुका है. दूसरी कहानी है, बिहार के ही दरभंगा के एक सज्जन की. वह एक प्रखंड विकास पदाधिकारी के खिलाफ़ सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत कुछ ऐसी जानकारी पा गये, जिससे प्रखंड में पैसों की गड़बड़ी का खुलासा हो रहा था. उस व्यक्ति के घर एक दिन बीडीओ खुद आ गये.  इस बात से वह ग्रामीण इतना भाव-विभोर हो गया कि उनके खिलाफ़ अपील में नहीं गया.

इन दो कहानियों में जो एक बात समान थी, वह यह कि इन दो कहानियों के मुख्य पात्र इस बात से ही खुश हो गये कि सरकारी अधिकारी ने उन्हें थोड़ी तवज्जो दे दी. अब इससे एक कदम आगे बढ़ते हैं, मतलब जिन्होंने इतने पर राजी होना स्वीकार नहीं किया.अपनी कार्यवाही को अंजाम तक पहुंचाने का निर्णय लिया, उनका अंजाम क्या हुआ? सारण के रहने वाले विरेंद्र कुमार को देख लीजिए. वे पांव से विकलांग हैं.

उन पर हत्या का मुकदमा चलाया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने पंचायत शिक्षकों की नयुक्ति में हुई अनियमितता पर सूचना मांगी थी. पुनपुन के कुणाल मोची और पिंकी देवी ने अपने-अपने पंचायत में हो रही गड़बड़ियों के खिलाफ़ आवाज बुलंद की तो उन पर अशांति फ़ैलाने का मुकदमा बहाल है. यह सूची बहुत लंबी है. रामबालक शर्मा पर एसपी लखीसराय ने धारा 302 का मुकदमा लगाया है, युगल किशोर प्रसाद को सूचना मांगने पर सूचना के बदले बीडीओ नालंदा की प्रताड़ना मिली.

हाल में ही गुजरात के रहने वाले तैंतीस वर्षीय अमित जेठवा की मौत की वजह भी आरटीआई बनी. उन्होंने गिर के जंगल में हो रहे अवैध खनन के खिलाफ़ मोर्चा खोला था. बीस अक्टूबर को अहमदाबाद उच्च न्यायालय के परिसर में उनकी गोली मारकर हत्या की गयी. आरटीआइ की वजह से शहीद होनेवाले जेठवा इकलौते नहीं हैं, 31 मई को दत्ता पाटिल (कोल्हापुर), 21 अप्रैल विठ्ठल गीते (बिड), 11 अप्रैल सोला रंगाराव(आंध्र प्रदेश), 26 फ़रवरी अरुण सावंत (महाराष्ट्र), 14 फ़रवरी शशिधर मिश्र बेगुसराय), 11 फ़रवरी विश्राम लक्ष्मण (गुजरात) और तीन जनवरी सतीश शेट्टी की हत्या की वजह उनका आरटीआइ आवेदन बना.

इन कहानियों को बताने के पिछे सीधी-सी बात यह है कि भले ही सूचना के अधिकार को आम आदमी के लिए बना कानून कह कर प्रचारित किया जाये लेकिन यह कानून उन लोगों के लिए है जो प्रशासन की प्रताड़ना सहने और उससे लड़ने का साहस रखते हों. इसी वजह से सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमाल कर, सूचना निकालना मानों जंग जीतने के बराबर है. ऐसी ही एक जंग हाल में बक्सर के भाई शिवप्रकाश राय हाल में ही जीतकर आये हैं.

उन्होंने जिले के करीब 70 बैंकों से प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अंतर्गत कृषि उपकरणों पर अनुदान संबंधी सूचना मांगी थी. बदले में जिलाधिकारी ने उन पर झूठा मुकदमा चलाया. इसकी पुष्टि एसपी, बक्सर की जांच रिपोर्ट से होती है. इसमें उन्होंने राय को बेकसूर पाया. श्री राय कहते हैं, सूचना आयोग से मिले न्याय की वजह से मेरा हौंसला बढ़ गया है और मैं आगे भी समाज हित में सूचना के अधिकार को एक अहिंसक हथियार बनाकर लड़ता रहूंगा.

हो सकता है, राय की जीत को आम आदमी की जीत कह कर प्रचारित करें लेकिन राय आम आदमी नहीं हैं. इस देश का आम आदमी लड़ना-भिड़ना नहीं जानता. हर चुनाव में राजनीतिक नेता उन्हें प्यार के दो बोल बोलकर, झूठे वादों के सहारे सुनहरे सपने दिखा कर, चुनाव जीतने के बाद पांच साल के लिए नर्क में छोड़ जाते हैं. ऐसा आम आदमी शिवप्रकाश राय नहीं हो सकता. ऐसी स्थिति में सूचना का अधिकार आम आदमी का कानून बने, इसकी राह अभी मुश्किल दिखाई पड़ती है.(लेखक युवा पत्रकार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *