नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। विशेष आर्थिक क्षेत्र [एसईजेड] की तर्ज पर
स्पेशल रेजिडेंशियल जोन यानी एसआरजेड बनाने के प्रस्ताव को सरकार ने नकार
दिया है। सरकार ने साफ कर दिया है कि एसआरजेड से निर्यात को तो कोई बढ़ावा
मिलेगा ही नहीं, वहीं निर्माण सामग्रियों के गलत उपयोग का खतरा भी बढ़
जाएगा। इसे घातक मानते हुए सरकार ने खारिज कर दिया है।
पिछले दिनों रीयल एस्टेट डेवलपर्स ने एसआरजेड का सुझाव दिया तो संसदीय
स्थायी समिति को भी यह बहुत भाया था। स्थायी समिति ने केंद्रीय शहरी विकास
मंत्रालय को सुझाव दिया था कि इस प्रस्ताव को परखना चाहिए। इस प्रस्ताव के
अनुसार एसआरजेड में सस्ते और अच्छे आवास मुहैया कराए जाने थे। एसईजेड की
तर्ज पर एसआरजेड के निर्माण, संचालन और प्रबंधन को टैक्स फ्री करने का
सुझाव दिया गया था। दावा किया गया था कि इससे जहां एक समान और सुव्यवस्थित
ढांचा तैयार होगा, वहीं उस क्षेत्र का आर्थिक विकास भी होगा। साथ ही झुग्गी
बस्तियों का फैलाव रुकेगा और आवास की समस्या भी खत्म होगी।
शहरी मंत्रालय ने इस सुझाव को खारिज कर दिया है। मंत्रालय का कहना है
कि एसईजेड से इसकी तुलना ही नहीं की जानी चाहिए। दरअसल एसईजेड में कारोबार
को इसलिए टैक्स से मुक्त किया गया था, क्योंकि उसके जरिए निर्यात को बढ़ावा
मिल सकता था। एसआरजेड से बढ़ना तो दूर, उल्टे भ्रष्टाचार को बढ़ावा
मिलेगा। दरअसल प्रस्ताव के मुताबिक एसआरजेड में निर्माण सामग्री टैक्स से
मुक्त होगी। खुले बाजार में उसके दुरुपयोग पर निगरानी रखना मुश्किल होगा।
मंत्रालय ने कहा है कि इसके बदले वह इंटीग्रेटेड टाउनशिप के पक्ष में है,
जहां हर सार्वजनिक-निजी आवास परियोजना में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के
लिए 15-20 फीसदी जमीन आरक्षित हो। आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए सरकार
ने वैसे भी आरक्षण का प्रावधान किया है, लेकिन फिलहाल उसका पालन नहीं के
बराबर हो रहा है।