नई दिल्ली [नीलू रंजन], राहुल गांधी भले ही सरकारी योजनाओं में
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाकर एक रुपये में 85 पैसा आम जनता तक पहुंचाने का
मंसूबा पाले हों, लेकिन उनकी ही सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं है। सच्चाई यह
है कि सरकारी संरक्षण में भ्रष्टाचार की राह चलने वाले अफसरों की संख्या
बढ़ती ही जा रही है। पिछले साल नौ महीने में ऐसे अधिकारियों की संख्या तीन
गुना से भी ज्यादा बढ़ गई है। ये वे भ्रष्ट अधिकारी हैं जिनके खिलाफ जांच
पूरी कर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो [सीबीआई] आरोप पत्र दाखिल करना चाहती है,
लेकिन केंद्र सरकार इसके लिए जरूरी अनुमति नहीं दे रही है।
लगभग चार साल के अंतराल के बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग [सीवीसी] ने
पिछले साल 31 अगस्त तक ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची जारी की थी, जिनके
खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति सरकार नहीं दे रही है। उस समय ऐसे
अधिकारियों की संख्या 51 थी।
इसके बाद सीबीआई ने 31 दिसंबर को ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की सूची जारी
की, जिनमें उनकी संख्या बढ़कर 99 हो गई। ये सभी अधिकारी कुल 117 मामलों में
फंसे हुए थे। यानी 2009 के अंतिम चार महीनों में ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की
संख्या लगभग दोगुनी हो गई। लेकिन सीवीसी या सीबीआई द्वारा सूची जारी कर
देने भर से भ्रष्ट अधिकारियों को मिल रहा सरकारी संरक्षण कम नहीं हुआ।
सीबीआई की ताजा सूची में ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की संख्या बढ़कर 165 हो गई
है। यानी नौ महीनों में तीन गुना से भी ज्यादा। इन 165 अधिकारियों के खिलाफ
कुल 331 केस दर्ज हैं, जिनकी जांच पूरी हो चुकी है।
यदि भ्रष्ट अधिकारियों और उनके खिलाफ दर्ज मामलों का अनुपात निकाला जाए
तो एक भ्रष्ट अधिकारी औसतन भ्रष्टाचार के दो मामलों में लिप्त है। जांच
एजेंसी को ठेंगा दिखाने वाले भ्रष्ट अधिकारियों में कस्टम व एक्साइज विभाग
के अधिकारी अव्वल हैं। 165 अधिकारियों की सूची में अकेले कस्टम व एक्साइज
विभाग के 70 अधिकारी हैं।