सिरसा, संवाद सहयोगी : नहरी पानी की कमी ने कपास की खेती करने वाले
किसानों के पसीने छुड़ा दिए है। जिले के किसानों ने डीजल के ट्यूबवेलों के
सहारे कपास की बिजाई तो कर ली लेकिन नहरी पानी की उपलब्धता न होने के कारण
अब ये फसल जल रही है। अगर स्थिति यही रही तो कृषि विभाग द्वारा बिजाई का
लक्ष्य भी ओझल हो जाएगा। पिछले एक साल से बारिश की कमी के साथ-साथ नहरी
पानी की कमी भी जिले के किसानों को खूब खल रही है। जिला में अब तक लगभग
सवा तीन लाख एकड़ में कपास की बिजाई हो चुकी है जिसमें से अधिकतर बिजाई
बीटी काटन की हुई है। बीटी काटन के नव अंकुरित पौधे बरसते अंगारे में दम
तोड़ते नजर आ रहे है। कैरांवाली गांव के किसान सतीश सिद्धू, पन्नीवालामोटा
के किसान कृपा राम कस्वां व बनसुधार गांव के किसान सुभाष कस्वां ने बताया
कि उन्होंने बिजली व पानी की कमी के चलते डीजल संचालित ट्यूबवेलों से कपास
की बिजाई तो कर ली लेकिन अब नहरी पानी की कमी के चलते कपास के पौधे जल रहे
है। किसानों का कहना है कि 20 से 30 प्रतिशत कपास की फसल अब तक गर्मी व
पानी की कमी की वजह से नष्ट हो चुकी है। किसानों ने कहा कि यदि जून में
दो-तीन बारिश हो जाएं तो बिजाई की गई फसल का 70 प्रतिशत क्षेत्रफल बचाया
जा सकता है। कुछ किसानों ने बताया कि ट्यूबवेलों का पानी खराब होने के
कारण भी कपास के पौधे जल रहे है। किसानों का कहना है कि नहर का पानी इस
फसल के लिए घी काम करता है लेकिन नहरें सूखी पड़ी है। किसानों ने बताया कि
काटन बिजाई का समय लगभग बीत चुका है लेकिन यदि अब भी सप्ताह दस दिन में
पानी की व्यवस्था हो जाए तो काटन की देरी से बीजी जाने वाली किस्में बोई
जा सकती है। अच्छे पानी के ट्यूबवेलों पर बिजली की मोटरे लगी है लेकिन
बिजली किल्लत के कारण ये ट्यूबवेल कपास की फसल को पर्याप्त पानी नहीं दे
पा रहे। पानी की कमी के चलते किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरे साफ नजर
आ रही है। किसानों का मानना है कि नहरी पानी की कमी से जहां उनकी कपास की
फसल को नहीं बचा पा रही वहीं ग्वार, बाजरा व अन्य फसलों की बिजाई होने के
भी आसार नजर नहीं आ रहे। पर्याप्त मात्रा में नहरी पानी देने से सिंचाई
विभाग के हाथ खड़े हो जाने के बाद अब किसानों को इंद्र देव पर भी भरोसा है।
किसानों के पसीने छुड़ा दिए है। जिले के किसानों ने डीजल के ट्यूबवेलों के
सहारे कपास की बिजाई तो कर ली लेकिन नहरी पानी की उपलब्धता न होने के कारण
अब ये फसल जल रही है। अगर स्थिति यही रही तो कृषि विभाग द्वारा बिजाई का
लक्ष्य भी ओझल हो जाएगा। पिछले एक साल से बारिश की कमी के साथ-साथ नहरी
पानी की कमी भी जिले के किसानों को खूब खल रही है। जिला में अब तक लगभग
सवा तीन लाख एकड़ में कपास की बिजाई हो चुकी है जिसमें से अधिकतर बिजाई
बीटी काटन की हुई है। बीटी काटन के नव अंकुरित पौधे बरसते अंगारे में दम
तोड़ते नजर आ रहे है। कैरांवाली गांव के किसान सतीश सिद्धू, पन्नीवालामोटा
के किसान कृपा राम कस्वां व बनसुधार गांव के किसान सुभाष कस्वां ने बताया
कि उन्होंने बिजली व पानी की कमी के चलते डीजल संचालित ट्यूबवेलों से कपास
की बिजाई तो कर ली लेकिन अब नहरी पानी की कमी के चलते कपास के पौधे जल रहे
है। किसानों का कहना है कि 20 से 30 प्रतिशत कपास की फसल अब तक गर्मी व
पानी की कमी की वजह से नष्ट हो चुकी है। किसानों ने कहा कि यदि जून में
दो-तीन बारिश हो जाएं तो बिजाई की गई फसल का 70 प्रतिशत क्षेत्रफल बचाया
जा सकता है। कुछ किसानों ने बताया कि ट्यूबवेलों का पानी खराब होने के
कारण भी कपास के पौधे जल रहे है। किसानों का कहना है कि नहर का पानी इस
फसल के लिए घी काम करता है लेकिन नहरें सूखी पड़ी है। किसानों ने बताया कि
काटन बिजाई का समय लगभग बीत चुका है लेकिन यदि अब भी सप्ताह दस दिन में
पानी की व्यवस्था हो जाए तो काटन की देरी से बीजी जाने वाली किस्में बोई
जा सकती है। अच्छे पानी के ट्यूबवेलों पर बिजली की मोटरे लगी है लेकिन
बिजली किल्लत के कारण ये ट्यूबवेल कपास की फसल को पर्याप्त पानी नहीं दे
पा रहे। पानी की कमी के चलते किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरे साफ नजर
आ रही है। किसानों का मानना है कि नहरी पानी की कमी से जहां उनकी कपास की
फसल को नहीं बचा पा रही वहीं ग्वार, बाजरा व अन्य फसलों की बिजाई होने के
भी आसार नजर नहीं आ रहे। पर्याप्त मात्रा में नहरी पानी देने से सिंचाई
विभाग के हाथ खड़े हो जाने के बाद अब किसानों को इंद्र देव पर भी भरोसा है।