नहीं बसा कलाम के सपनों का गांव

पटना ग्रामीण क्षेत्र में शहरी सुविधा
प्रदान करने की जिस ‘पूरा’ योजना (प्रोविजन आफ अर्बन फैसलिटी इन रूरल
एरिया) की परिकल्पना राष्ट्रपति एपीजे अबुल कलाम ने की थी, वह सात साल बाद
भी अधूरी है। इस योजना के क्लस्टर के रूप में केंद्र सरकार ने मोतीपुर का
चयन किया था। यहां फल-सब्जी के लिए कोल्ड स्टोरेज बनाने, गांव में विद्युत
आपूर्ति करने के साथ ही वे सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने की योजना बनी थी,
जो शहरी क्षेत्र में होती हैं। लेकिन, सिवाय सड़क बनने के कोई भी काम
मोतीपुर में न हुआ।

‘पूरा’ योजना का आकार बहुत बड़ा है। ग्रामीण विकास विभाग की हाल की
रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 34 जिलों में ग्राम समूहों का चयन इस योजना के
लिए हुआ है। पटना, अरवल, भभुआ और दरभंगा को छोड़ शेष जिले इसमें शामिल हैं।
लेकिन, वित्तीय वर्ष 2008-09 तक उपलब्ध राशि 389400 लाख के विरुद्ध मात्र
283.60 लाख रुपये खर्च कर सिर्फ 12 योजनाएं पूरी की गयी हैं। पांच योजनाओं
पर काम चल रहा है।

इस योजना की कुछ विशिष्टता भी थी। सबसे बड़ी बात यह कि योजना का डीपीआर
बनाने के लिए विश्वविद्यालय- महाविद्यालय की सेवा लेने की छूट दी गयी थी।
जिलाधिकारी को नोडल पदाधिकारी बनाया गया था और डीपीआर बनाने के लिए जिला
ग्रामीण विकास अभिकरण की ओर से दो लाख रुपये तक व्यय करने की छूट दी गयी
थी।

मगर सूत्र बताते हैं कि अधिकांश जगहों पर केवल डीपीआर बना है। योजना
आयोग ने यह निर्देश दिया था कि ‘क्लस्टर विलेज’ उन्हीं छोटे शहरों के पास
होंगे, जिसकी आबादी दस हजार से बीस हजार के बीच होगी। पिछड़े राज्यों के
साथ विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्यों में इस योजना के क्रियान्वयन
पर आयोग का जोर था। लेकिन, यह महत्वाकांक्षी योजना अभी ‘तारणहार’ की तलाश
कर रही है। बिहार की माटी पर कलाम के सपनों का गांव बसना अभी बाकी है।

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