बावजूद भी चुनाव आयोग पेड न्यूज से पूरी तरह अनजान बना हुआ है। आयोग को
अभी तक यह मालूम नहीं पड़ पाया है कि आखिर पेड न्यूज किस खेत की मूली है।
सबसे मजेदार बात यह है कि आरटीआई के अंतर्गत चुनाव आयोग ने भारतीय प्रेस
परिषद को बकायदा एक लेटर लिखकर पेड न्यूज के बारे में सारी जानकारी मांगी
है। यह कोई मजाक नहीं है बल्कि आरटीआई के तहत चुनाव आयोग का जवाब है।
मीडिया स्टडीज ग्रूप के अनिल चमड़िया ने आरटीआई कानून के तहत चुनाव आयोग
से पैसे लेकर विज्ञापन को खबर की तरह छापने से संबंधित अब तक प्राप्त
शिकायतों और उस पर की गई कार्रवाई का पूरा ब्यौरा मांगा था।
आयोग के अवर सचिव वरिन्द्र कुमार ने कहा कि आयोग ने प्रेस पेड न्यूज को
परिभाषित करने और कथित पेड न्यूज की पहचान के लिए दिशा निर्देश जारी करने
का आग्रह किया है। यह जवाब एक मई 2010 की तारीख वाले पत्र के जरिए हाल ही
में चमड़िया को भेजा गया। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव को
साल भर से ज्यादा समय हो गया और उस समय की पेड न्यूज संबंधी शिकायतें अब
भी आयोग के समक्ष विचाराधीन है।