कागजों में पक रहे पोषाहार के दाने

जोधपुर. राज्य सरकार ने भले ही गर्मी की छुट्टियों में ग्रामीण
क्षेत्रों की स्कूलों में बच्चों को मिड डे मील योजना के तहत पोषाहार
खिलाने का आदेश कर दिया हो, लेकिन हकीकत में बच्चे पोषाहार खाने आ ही नहीं
रहे हैं, जबकि शिक्षक कागजों में विद्यार्थियों की 50 से 80 फीसदी
उपस्थिति बताकर स्कूलों में खाना बना रहे हैं।

अकाल की स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने शिक्षा विभाग को सभी सरकारी
विद्यालयों में ग्रीष्मावकाश के दौरान बच्चों को पोषाहार पकाकर खिलाने के
आदेश दिए। इस व्यवस्था का जायजा लेने के जब दैनिक भास्कर संवाददाता ने
जिले की विभिन्न स्कूलों का दौरा किया तो कहीं पर सारे ही बच्चे गायब थे,
तो कहीं पर इक्का—दुक्का बच्चे ही मिले।

कहीं औसत से भी कम उपस्थिति नहीं रह जाए और इसकी गाज स्कूल या संबंधित
शिक्षक पर ना पड़ जाए, इसलिए शिक्षक भी कागजों में बच्चों की उपस्थिति 50
से 80 प्रतिशत बताकर पोषाहार पकाने का दावा कर रहे थे।

केस 1
स्थान: राउप्रावि चौखा (शहर से 14 किलोमीटर दूर)
समय: सुबह 8.40 बजे
स्थिति:—कुल दस में से दो टीचर अनिता शर्मा व बैजू परिहार उपस्थित मिलीं।
स्कूल में कुल 70 बच्चे हैं। मौके पर एक भी नहीं मिला। यहां पर बच्चे नहीं
आए तो टीचर ने छह बच्चों का खाना स्कूल में पानी भरने आए बच्चों को खिला
दिया।

केस 2
स्थान: राउप्रावि मध्यपूर्व गंगाणा (शहर से 17 किलोमीटर दूर)
समय: सुबह 9.10 बजे
स्थिति: यहां पर संस्था प्रधान नरेन्द्रसिंह व शिक्षिका संध्या शर्मा
उपस्थित मिलीं। स्कूल में कुल 114 बच्चे हैं, जबकि उपस्थित महज 11 मिले।
यहां खाना 20 बच्चों का बनवाया हुआ था।

केस 3
स्थान: राउप्रावि दंडनाडी (शहर से 19 किलोमीटर दूर)
समय: 9.40 बजे।
स्थिति: यहां पर कुल चार टीचर में से एक टीचर प्रतिभा कड़ेला मौजूद मिली,
जबकि दो अन्य टीचर जनगणना संबंधी कार्य निपटाकर आए थे। स्कूल में 62 बच्चे
नामांकित हैं। रजिस्टर में 30 बच्चों की उपस्थिति दर्ज की गई, जबकि मौजूद
केवल आठ ही थे। खाना बनाने वाली नहीं आई थी। पूछने पर फोन करके उसे बुलाया
गया।

केस 4
स्थान : राउप्रावि झंवर (शहर से 23 किलोमीटर दूर)
समय: सुबह 10 बजे
स्थिति: यहां पर कुल आठ टीचर में से दो शमीम बानो व कांता व्यास मौजूद
मिलीं। इस स्कूल में कुल 131 बच्चे नामांकित हैं, जिनमें से 8 मौजूद मिले।
रजिस्टर में दस की उपस्थिति बताई गई। यहां पर दाल—ढोकली पक रही थी।

केस 5
स्थान: राउप्रावि कंडूम्बानाडा (शहर से 35 किलोमीटर दूर)
समय: सुबह 10.40 बजे।
स्थिति: यहां पर कुल चार टीचर में से जनगणना में लगे प्रेमाराम व ढगलाराम
सहित एक महिला टीचर उपस्थित मिलीं। यहां पर कुल 151 बच्चे नामांकित हैं,
सिर्फ 38 ही मौजूद मिले। यहां पर दाल—रोटी बन रही थी। बच्चे खेल रहे थे।
जब टीचर्स को भास्कर संवाददाता के आने का पता चला तो उन्होंने बच्चों को
लाइन में बिठाया और खाना खिलाया।

बच्चे नहीं आते तो क्या करें

मेरी स्कूल में पिछले तीन दिन से बच्चों की उपस्थिति शून्य है। फिर भी
औसतन 6—7 बच्चों का खाना मंगवाना पड़ रहा है। सेंट्री किचन को लिखित में
दे दिया, लेकिनकोई कार्रवाई नहीं हुई। – अनिता शर्मा, राउप्रावि चौखा

आखिर क्या-क्या काम करें

मैं स्कूल में अकेली हूं। बाकी स्टाफ की ड्यूटी जनगणन में लगी है। बच्चों
को खाना खिलाएं, अनामांकित बच्चों को जोड़ने के लिए घूमें या स्कूल की
रखवाली करें। – संध्या शर्मा, राउप्रावि मध्यपूर्व गंगाणा

बच्चों को बुलाना पड़ता है

खाना खिलाने के लिए गांव से बच्चों को बुलाना पड़ता है। इसके बावजूद बच्चे आते ही नहीं हैं। – प्रतिभा, राउप्रावि दंडनाडी।

गर्मी की वजह से नहीं आते

गर्मी इतनी है कि बच्चे स्कूल नहीं आ पा रहे हैं, फिर भी उनको बुलाकर लाते
हैं। कई बच्चे बाहर घूमने गए हुए हैं। – शमीम बानो, राउप्रावि झंवर

जो आ रहे हैं, उन्हें खिला रहे हैं

बच्चे आते तो हैं, लेकिन पूरे नहीं। जो भी बच्चे आ रहे हैं, उनको खाना खिला रहे हैं। – प्रेमाराम, राउप्रावि कडूम्बानाडा

शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को स्कूलों में पोषाहार पकाने के निर्देश तो दे
दिए, लेकिन जब बच्चे आएंगे तो खाना बनेगा। शिक्षक इस डर से स्कूल में खाना
बना रहे हैं कि कहीं उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई न हो जाए। –
शंभूसिंह मेड़तिया, जिलाध्यक्ष, राजस्थान पंचायतीराज कर्मचारी संघ

सभी संबंधित ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपने
ब्लॉक की स्कूलों में गर्मियों क छुट्टियों के दौरान पोषाहार पकाने के साथ
बच्चों की उपस्थिति पर भी ध्यान दें। – अरविंदकुमार व्यास, शैक्षिक
प्रकोष्ठ अधिकारी (प्रारंभिक शिक्षा)

खाना खाने के लिए दूर ढाणियों से पैदल आना अच्छा नहीं लगता। इसलिए
कभी—कभार खाना खाने आती हूं। – सीमा, आठवीं कक्षा, राउप्रावि दंडनाडी

पोषाहार को बंद करना चाहिए। इससे अच्छा खाना तो घर में बनता है। टीचर
डांटते हैं, इसलिए पोषाहार खाना पड़ता है। – अशोक, सातवीं कक्षा,
राउप्रावि दंडनाडी

स्कूल में अभी पढ़ाई होती नहीं। ऐसे में खाने के लिए पापा स्कूल नहीं भेजते। – लीला, सातवीं कक्षा, राउप्रावि झंवर

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