नई
दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। कुछ राज्यों में बीजों के मूल्य पर नियंत्रण कानून
लागू करने से बीज कंपनियों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।
इन कंपनियों ने सरकार से संसद में विचाराधीन ‘बीज विधेयक-2004’ में किसी
तरह का संशोधन न करने की गुजारिश की है। जबकि गुजरात, आंध्र प्रदेश और
महाराष्ट्र जैसे राज्य बीज मूल्य पर नियंत्रण बनाए रखने के हिमायती हैं।
इस संबंध में राष्ट्रीय बीज संघ के एक प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को
केंद्रीय कृषि सचिव से मुलाकात कर अपनी समस्या से उन्हें अवगत कराया।
बीज कंपनियों का रोना यह है कि इन राज्यों में उच्च उत्पादकता वाले
हाइब्रिड और बीटी बीजों के जो मूल्य वर्ष 2006 में निर्धारित किये गए थे,
वे आज भी जारी हैं। जबकि बाकी बीजों के मूल्य 41 से 120 फीसदी तक बढ़े
हैं। इसके बावजूद संकर प्रजाति के बीजों के मूल्य 13 से 43 फीसदी तक घटाए
गए हैं। इन कंपनियों के संघ का कहना है कि बीज उद्योग को स्वतंत्र छोड़
दिया जाए। उनके बीजों के मूल्य बाजार में मांग व आपूर्ति के आधार पर तय
हों। ऐसा न होने से बीज उत्पादन करने वाले किसानों की उदासीनता से यह
उद्योग बर्बाद हो जाएगा।
इन कंपनियों के प्रतिनिधियों ने आशंका जताई कि मूल्य नियंत्रण में यह
दखलअंदाजी बीजों की भारी कमी और क्षमता के उपयोग में रुकावट की वजह भी बन
सकती है। बीज उद्योग ने पिछले 20 वर्षो में छह हजार करोड़ रुपये का भारी
निवेश किया है। इसमें 4 हजार 500 करोड़ रुपये अनुसंधान और 1500 करोड़ रुपये
बुनियादी सुविधाओं में लगाए गए हैं।