नई
दिल्ली, जागरण ब्यूरो। आबादी में पिछड़ी जातियों के अनुपात को लेकर कोई
ताजा आंकड़ा नहीं होने के बावजूद जनगणना में यह सवाल शामिल करने से इन्कार
करना गृह मंत्रालय के लिए भारी पड़ता जा रहा है। गुरुवार को लोकसभा में इस
विषय पर चर्चा के दौरान लगभग सभी दलों ने जाति आधारित गणना की वकालत की।
यहां तक कि कांग्रेस के भी कुछ सदस्यों ने अन्य पिछड़ा वर्ग के संबंध में
आंकड़े जुटाने को बेहद जरूरी बताया।
समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने गृह मंत्री पी. चिदंबरम
पर हमला करते हुए कहा, ‘आप ताल-तलैया, पेड़-पौधे और नदी-नाले सब गिन रहे
हैं। लेकिन इसके लिए क्यों बहाने बना रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि सुप्रीम
कोर्ट तक मान चुका है कि जाति आधारित आंकड़ों के बिना इस संबंध में योजनाएं
लागू करवाना मुश्किल है। सपा नेता ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि सरकार
जनगणना के फार्म में सिर्फ एक खाना बढ़ाने में इतनी आना-कानी क्यों कर रही
है। इसी तरह जनता दल यू नेता शरद यादव ने कहा कि जाति हिंदुस्तान की हकीकत
है। इससे मुंह नहीं चुराया जा सकता। निचली जातियों को आर्थिक और सामाजिक
शोषण से बाहर निकालना है तो इसके लिए उनकी संख्या का हिसाब तो लगाना ही
होगा।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने अपने खास अंदाज में गृह मंत्री पर कटाक्ष
करते हुए कहा, ‘बहाना करते हैं कि जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अगर
फार्म छप गए हैं तो उसे फाड़ कर फेंक दीजिए। बहाना नहीं चलेगा।’ यहां तक कि
नियम 193 के तहत हो रही चर्चा के दौरान लोकसभा में कांग्रेस के भी कुछ
सदस्यों ने जाति आधारित गणना का समर्थन किया। कांग्रेस के सांसद बेनी
प्रसाद वर्मा ने तो जाति आधारित जनगणना का विरोध करने वालों को
‘निष्पक्षता का विरोधी’ तक ठहरा दिया। वामपंथी दलों की ओर से भाकपा सांसद
गुरुदास गुप्ता ने कहा कि मंत्री की ओर से कहा जा रहा है कि जनगणना की
प्रक्रिया शुरू हो गई है, इसलिए इसे शामिल नहीं किया जा सकता। लेकिन इस
व्यवस्था में सुधार तो किया जा सकता है।
लोकसभा में चर्चा के दौरान शिव सेना, शिरोमणि अकाली दल, बीजू जनता दल,
जनता दल एस और तेलुगुदेसम पार्टी सहित अधिकांश दलों के सदस्यों ने जनगणना
के दौरान जाति संबंधी आंकड़े जुटाने की खुल कर वकालत की। चर्चा पर मंत्री
का जवाब अब शुक्रवार को होगा।
सरकार पर बढ़ा जाति आधारित जनगणना का दबाव
नई दिल्ली [राजकिशोर]। केंद्र सरकार पर जाति आधारित जनगणना का दबाव
बढ़ता जा रहा है। संप्रग के सहयोगी और विपक्षी दल ही नहीं, बल्कि कांग्रेस
और सरकार के भीतर भी बड़ा वर्ग पिछड़े वर्ग की गिनती इसी जनगणना के साथ कराए
जाने के पक्ष में खड़ा दिख रहा है। राजनीतिक रूप बेहद संवेदनशील इस मसले पर
गृह मंत्री पी. चिदंबरम का धर्मसंकट भी खासा बढ़ गया है। पहले जाति आधारित
जनगणना से साफ इन्कार कर चुके गृह मंत्री के अब शुक्रवार को लोकसभा में
बयान पर सबकी नजरें रहेंगी।
पिछड़े वर्ग की जनगणनाको गृह मंत्रालय पहले ही असंभव बता चुका है।
उसके अधिकारियों का तर्क है कि सभी राज्यों में पिछड़े वर्ग के मानक अलग
हैं। उत्तर प्रदेश में जो सामान्य वर्ग में है वह बिहार में पिछड़ी जाति
में शामिल हैं। पूरे देश में पिछड़े वर्ग का कोई एक मानक न होने से यह गणना
संभव नहीं है। वहीं, संप्रग के सहयोगी दलों से लेकर भाजपा तक सभी ने पिछड़े
वर्ग की जनगणना के पक्ष में आवाज बुलंद कर दी है। कांग्रेस के घोषणापत्र
में पिछड़े वर्ग के उत्थान का वादा है। इसे आधार बनाते हुए संगठन के नेता
जाति आधारित जनगणना का जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि जब असली आंकड़ा ही
नहीं होगा तो हम उनका उत्थान कैसे करेंगे?
सूत्रों के मुताबिक, संगठन ही नहीं, दो दिन पहले मंगलवार को हुई
कैबिनेट की बैठक में भी प्रणब मुखर्जी समेत कई वरिष्ठ मंत्री जाति आधारित
जनगणना के पक्ष में थे। जाति आधारित जनगणना की व्यवहारिक दिक्कतों के
मद्देनजर गृह मंत्री पी. चिदंबरम के साथ आनंद शर्मा ही अभी मौजूदा
व्यवस्था के तहत ही जनगणना के पक्ष में थे। इनके अलावा कानून मंत्री
वीरप्पा मोइली से लेकर टी. आर. बालू तक सभी मंत्री जाति आधारित जनगणना के
पक्ष में रहे। उनका कहना था कि 25 लाख लोगों को झोंकने और इतनी बड़ी रकम
खर्च करने के बाद भी जातीय जनगणना बाद में कराने का औचित्य नहीं है।
कांग्रेस भी इस मसले पर गृह मंत्रालय के रुख के साथ खुलकर नहीं खड़ी हो
रही। कांग्रेस प्रवक्ता डा. शकील अहमद ने इस मुद्दे पर बीच का रुख अपनाए
रखा। उन्होंने बार-बार पूछे जाने पर यही कहा कि ‘सभी दलों की सहमति के
आधार पर ही कोई अंतिम फैसला लिया जाना चाहिए।’ कांग्रेस का रुख बताने से
उन्होंने साफ इन्कार कर दिया। सूत्रों का कहना है कि मौजूदा राजनीतिक
परिदृश्य के मद्देनजर जाति आधारित जनगणना से साफ इन्कार कर पाना अब गृह
मंत्री के लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है। माना जा रहा है कि वे इस मामले
में कोई बीच का रास्ता निकालेंगे।