दिन के 6 घंटे खप जाते हैं पानी लाने में

सासाराम
[ब्रजेश कुमार]। बिहार के रोहतास जिले के कैमूर पहाड़ी क्षेत्र में स्वच्छ
पेयजल की व्यवस्था आसमान से तारे तोड़ने जैसी है। उग्रवाद प्रभावित इस
क्षेत्र में महिलायें 5 से 15 किलोमीटर दूर पानी लाने जाती हैं। सुबह घर
से निकली महिलाएं शाम को वापस लौट पातीं हैं। दशकों से जारी जल संकट के
कारण लोगों की जीवन शैली बदल गई है। जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासन के
आश्वासनों के बीच समस्या बरकरार है।

उग्रवाद प्रभावित रोहतास और नौहट्टा प्रखंड के नागा टोली, बभनतालाब,
भवनवा, कपरफुट्टी, धनसा, भुलना टोला, रानी बाग, ब्रह्मा देवता, छोटका
बुधवा समेत दो दर्जन से अधिक गांव दशकों से जल संकट झेल रहे हैं। गर्मी
में हालत ज्याद ही खराब हो जाते हैं।

महिलाएं और किशोरियों समूह बनाकर 5-15 किलोमीटर दूर से पीने का पानी
लाती हैं। माछी देवी [70] और बेलछी देवी [80] कहती हैं पहले उन्होंने पानी
ढोया, फिर बेटी-बहुओं ने अब पोती-नातिन पानी ढो रहीं हैं, किसी के दिन
नहीं बदले। यूएनडीपी के अध्ययन के अनुसार, जल संकट वाले इलाकों में
महिलाओं के छह घंटे पानी लाने में नष्ट हो जाते हैं। गर्मी में धूप से
बचने के लिये महिलाएं और किशोरियां पूरी रात पानी लाने में बिता देती हैं।
लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती या ड्राप आउट का शिकार हो जाती हैं।

14 वर्षीय सुनीता बताती है कि वे और उसकी सहेलियां कभी स्कूल नहीं गई, पूरा दिन तो पानी भरने में बीत जाता है।

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