अकोढ़ीगोला
[रोहतास, कमलेश कुमार]। रेल पटरी के पास पड़ी एक नवजात बच्ची। फुलवा की उस
पर नजर पड़ी और घर ले आई। उसे जीने का मकसद और नवजात को नयी जिंदगी मिल गई।
फुलवा ने उसका नाम ‘भारत’ की भारती रखा। उसका सपना कि वह पढ़ लिखकर टीचर
बने और समाज को शिक्षित बनाए।
फुलवा तो अब नहीं है, लेकिन उसकी बेटी अपने मां के मकसद को जरूर साकार
कर रही है। वह टोले के बच्चों को घूम-घूम कर पढ़ाती है। उन्हें अपने साथ
स्कूल ले जाती है। यही कारण है कि गांव वालों ने उसे टीचर मान लिया है। वह
सभी की चहेती है। कोई उसे खाना खिला देता है तो कोई उसे पहनने के लिए कपड़े
दे देता है। पांचवी की छात्रा भारती के पढ़ने और पढ़ाने के जज्बे को देख
प्रशासन ने भी एक पखवारे के अंदर उसकी मदद का आश्वासन दिया है।
कुसुम्हरा भुईयां टोली की 13 वर्षीया भारती का जीवन संघर्ष के साये
में गुजर रहा है। जन्म किसने दिया, उसे पता नहीं। डेहरी रेलवे स्टेशन के
पास रेल पटरी पर मिली नवजात बच्ची को कुसुम्हरा भुईया टोली की फुलवा देवी
ने पाला।
फुलवा का सपना था कि उसकी ‘भारती’ पढ़-लिखकर गांव की टीचर बने। पर
क्या पता था कि भारती को एक बार फिर अनाथ होना पड़ेगा। जून 2009 में हुए
अग्निकांड में टोले के सारे घर जलकर राख हो गए। उसमें झुसलकर फुलवा की
मृत्यु हो गई।
पालनहार की मौत से उसकी खुशियां फिर छिन गईं। चंद दिनों बाद उसने खुद
को संभालते हुए मां के सपनों को साकार करने के लिए प्रतिदिन विद्यालय जाना
शुरू कर दिया। वह सुबह गांव में घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल जाने के लिए
प्रेरित करती है। बच्चों में पढ़ाई के प्रति बढ़ते रुझान को को देख गांव
वाले भारती को प्रेरणास्रोत मानते हैं। अग्निकांड के समय दोबारा अनाथ हुई
भारती को कई लोगों ने मदद का आश्वासन दिया था पर सब कोरे साबित हुए।
ग्रामीण ललन पासवान कहते हैं कि गांव के बच्चे तो अभी से ही भारती को
अपनी मैडम मानते हैं। शिक्षिका मीना गुप्ता की मानें तो भारती के प्रयास
से इस टोले में शिक्षा का दीप जल उठा है। यह बच्ची अनुकरणीय है। एसडीओ
मोबिन अली अंसारी का कहना है कि बीडीओ से जांच कर भारती की रिपोर्ट मांगी
गई है। एक पखवारे के अंदर भारती को आर्थिक व शैक्षणिक मदद दी जाएगी।