प्रधानों की शैक्षिक योग्यता अनिवार्य करने का निर्णय नहीं

लखनऊ। राज्य सरकार ने इससे साफ इनकार किया
है कि ग्राम प्रधान और पंचायत सदस्य का का चुनाव लड़ने के लिए किसी प्रकार
की शैक्षिक योग्यता अनिवार्य की जा रही है। सरकार का कहना है इस तरह का
कोई निर्णय ही नहीं हुआ है।

निदेशक पंचायती राज एमएम खान ने ‘दैनिक जागरण’ को बताया कि तृतीय
राज्य वित्ता आयोग ने संस्तुति में ग्राम पंचायत सदस्यों के लिए न्यूनतम
शैक्षिक योग्यता कक्षा आठ पास और प्रधानों के लिए कक्षा 10 पास करने की
सिफारिश की है। किसी भी सिफारिश को लागू करने से पहले उसके व्यावहारिक
पहलू को भी परखना जरूरी होता है। यह जरूरी नहीं होता कि उसकी सभी
सिफारिशें मान ही ली जाएं। उन्होंने बताया कि सरकार ने न तो इस बारे में
अभी तक कोई फैसला किया है और न भविष्य में करने का प्रस्ताव है। ज्ञातव्य
हो कि तृतीय राज्य वित्ता आयोग का गठन दिसम्बर 2004 में पंचायतों और
स्थानीय नगर निकायों की वित्ताीय व्यवस्था में सुधार का उपाय सुझाने के
लिए हुआ था। इसके अध्यक्ष बनाये गये थे भारत सरकार के सेवानिवृत्ता सचिव
एसएटी रिजवी। आयोग ने 28 अगस्त 2008 को अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपी
थी।

यह रिपोर्ट पिछले महीने विधानमंडल के बजट सत्र के दौरान विधानसभा के
पटल पर रखी गयी थी। निदेशक के अनुसार अभी तो रिपेार्ट का परीक्षण चल रहा
है। परीक्षण के बाद ही यह तय किया जाएगा कि किन सिफारिशों को लागू की जाए
और किसे नामंजूर किया जाए। मालूम हो कि पहले और दूसरे राज्य वित्ता आयोग
की दर्जनों सिफारिशें भी ऐसी हैं जिन्हें आजतक नहीं लागू किया जा सका।
निदेशक ने इस पर आश्चर्य व्यक्त किया कि कुछ लोग रिपोर्ट को लेकर भ्रामक
प्रचार करा रहे हैं। प्रधानी का चुनाव लड़ने के लिए जो अर्हताएं पहले थीं
वहीं अब भी हैं। इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन प्रस्तावित नहीं है।

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