कोलकाता
[जागरण ब्यूरो]। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका महाश्वेता देवी
केंद्र सरकार व माओवादियों के बीच मध्यस्थता करने पर विचार कर सकती हैं।
उनके करीबी लोगों का कहना है कि माओवादी नेता किशनजी ने मीडिया के
माध्यम से यह संदेश लेखिका तक पहुंचाया है, लेकिन जब तक दोनों ओर से सारी
स्थितियां स्पष्ट नहीं होंगी, महाश्वेता बीच में नहीं पड़ेंगी। इस बीच दमदम
एयरपोर्ट पर वर्धा के लिए रवाना होने से पूर्व महाश्वेता देवी ने रविवार
को पत्रकारों से कहा कि उन्हें खबर मिली है कि माओवादी नेता ने इस तरह की
अपील की है लेकिन जब तक वस्तुस्थिति की जानकारी नहीं हो तब तक टिप्पणी ठीक
नहीं है।
एक अन्य मीडिया माध्यम के अनुसार बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका
अरुंधती राय, तृणमूल सांसद सुमन कबीर और मानवाधिकार कार्यकर्ता बीडी शर्मा
पर भी माओवादियों ने भरोसा जताया है।
महाश्वेता देवी ने कहा कि इसके पहले उन्हें इस तरह का प्रस्ताव नहीं
मिला है, इसलिए सोच-समझ कर ही कोई कदम उठाएंगी। वर्धा से चार दिन बाद
कोलकाता लौटने पर इस प्रस्ताव पर विचार कर कुछ बोलेंगी। सूत्रों के अनुसार
तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के साथ महाश्वेता देवी के बेहतर संबंध को
देखकर माओवादियों ने वार्ता के लिए बुद्धिजीवियों से जमीन तैयार करने की
अपील की है।
इसके पहले ममता ने झाड़ग्राम में माओवादियों को हिंसा छोड़कर वार्ता के
लिए आगे आने का प्रस्ताव दिया था। केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी
माओवादियों को वार्ता के लिए पहल करने को कहा था।
इधर पश्चिम मेदिनीपुर जिले के लालगढ़ में माओवादियों पर नियंत्रण के
लिए महीनों से चल रहे सुरक्षा बलों के संयुक्त अभियान को तत्काल बंद करने
के लिए बुद्धिजीवियों ने केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम को पत्र भेजा है।
वरिष्ठ रंगकर्मी विभाष चक्रवर्ती, कवि जय गोस्वामी, तरुण सान्याल, देवव्रत
बंद्योपाध्याय, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका महाश्वेता देवी व
व्रात्या बसु का कहना है कि लालगढ़ में निर्दोष लोगों की हत्या की जा रही
है।
पुलिस संत्रास प्रतिरोध जन साधारण समिति के नेता लालमोहन टुडू की हाल
में हुई हत्या इसका उदाहरण है। अब तक उनका शव भी परिवारवालों को नहीं दिया
गया है। विभाष चक्रवर्ती के अनुसार पिछले चुनाव के दौरान चुनाव आयोग के
साथ हुई बैठक में लालमोहन टुडू ने आदिवासियों का प्रतिनिधित्व किया था
लेकिन उन्हें माओवादी समर्थक बताकर हत्या कर दी गई। उन्होंने कहा कि
केन्द्र व राज्य सरकार आदिवासी बहुल जिलों के विकास पर ध्यान नहीं दे रही
है जिसके चलते अशांति व्याप्त है। यदि जंगह महल का विकास हुआ होता तो इतनी
नाराजगी नहीं बढ़ती। इसके पहले भी केन्द्र सरकार को आपरेशन रोकने के लिए
पत्र भेजा गया था पर उसका कोई जवाब नहीं आया। कवि जय गोस्वामी ने कहा कि
संयुक्त अभियान से किसी समस्या का समाधान नहीं है।