हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री जयराम ठाकुर ने
राजस्थान एवं हिमाचल प्रदेश को समान भौगोलिक कठिनाइयों वाले प्रदेश बताते
हुए कहा कि नरेगा योजना ग्रामीण विकास की एक महत्वपूर्ण योजना के रूप में
सामने आई है। उन्होंने कहा कि ग्रामवासियों के जीवन स्तर में सुधार एवं
गांवों के विकास के लिए यह योजना वरदान साबित हुई है। उन्होंने कहा कि
हिमाचल प्रदेश में जहां दुर्गम पहाड़िया हैं वहां राजस्थान में कहीं
मरूस्थल तो कहीं पहाड़ी क्षेत्र होने से विकास योजना का लाभ आम आदमी तक
पहुंचाने पर अधिक धनराशि खर्च करनी पड़ती है। उन्होंने राजस्थान में नरेगा
कार्यो की सराहना की। ठाकुर बृहस्पतिवार को यहां इन्दिरा गांधी पंचायती
राज संस्थान में नरेगा राजस्थान की ओर से आयोजित ‘पीयर लर्निग’ वर्कशाप
में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि राजस्थान में नरेगा में बहुत अच्छा कार्य
चल रहा है, जो भी नरेगा के कार्य चल रहे हैं उनमें पारदर्शिता एवं
गुणवत्ता का विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जो इस बात को सिद्ध करता है कि
राजस्थान के विकास कार्यो में किसी तरह की कमी नहीं रहेगी। उन्होंने कहा
कि राजस्थान में नरेगा कार्यो के अनुभवों का लाभ प्राप्त करने के लिए ही
हिमाचल प्रदेश सरकार का यह दल राजस्थान के दौर पर आया है। उन्होंने कहा कि
मैंने और मेरे साथ आए सात सदस्यीय दल ने राज्य में हो रहे नरेगा कार्यो का
अवलोकन किया है जो काबिले तारीफ है। मुझे खुशी है कि नरेगा कार्यो में 80
प्रतिशत महिला श्रमिकों की भागीदारी है।
इस अवसर पर राजस्थान सरकार के प्रमुख शासन सचिव, ग्रामीण विकास एवं
पंचायती राज विभाग सी.एस. राजन ने बताया कि राजस्थान में हाल ही में सरकार
ने एक निर्णय लेकर ग्राम पंचायत में नरेगा कार्यो की गुणवत्ता और
पारदर्शिता को बनाये रखने के लिए पांच सदस्यीय नरेगा स्थायी समिति का गठन
किया है। सरपंच का इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है, प्रत्येक माह में दो
बार इस समिति की बैठक होगी। जिसमें गांव के नरेगा कार्यो की समीक्षा की
जाएगी। उन्होंने बताया कि राजस्थान में इस वर्ष 9500 करोड़ रुपये नरेगा
कार्यो पर व्यय किए जाएंगे। राज्य में नरेगा के श्रमिकों को 100 रुपये
प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी निर्धारित है। उन्होंने बताया कि 50 प्रतिशत
से भी अधिक अनुसूचित जाति एवं जनजाति के श्रमिक कार्य करते हैं। आयुक्त
नरेगा तन्मय कुमार ने बताया कि राज्य में नरेगा कार्यो की सबसे सशक्त कड़ी
मेट है, जिन्हें हाल ही में प्रशिक्षण देकर सशक्त बनाया गया है। इस अवसर
पर नरेगा के अधिशाषी अभियन्ता मुकेश विजय ने विभाग की ओर से पावर पाइंट
प्रजेन्टेशन प्रस्तुत किया। प्रजेन्टेशन में बताया गया कि राष्ट्रीय औसत
के अनुसार प्रति जिला प्रतिवर्ष नरेगा में लगभग 49 करोड़ रुपया खर्च हो रहा
है वहीं राजस्थान में यह खर्च लगभग तीन गुना अर्थात 150 करोड़ रुपया सालाना
खर्च किया जा रहा है। इसी प्रकार नरेगा श्रमिक राज्य में औसतन 65 दिन का
कार्य करता है जबकि राष्ट्रीय औसत 48 दिन का है।