रायपुर. चार रुपए का सामान हो या सत्रह का
लोगों को चिल्हर पैसे वापस नहीं हो रहे हैं। व्यापारियों की मानें तो
बैकों से चिल्हर की सप्लाई नहीं हो रही है इस वजह से बाजार में चिल्हर की
कमी हो गई है। चिल्हर न मिलने से लोगों को मन मारकर उतने पैसे का सामान
लेना होता है या चॉकलेट, गुटखा आदि से काम चलाना पड़ता है।
इससे सर्वाधिक फायदा दुकानदारों को ही हो रहा है।
टोकन तक चल रहे: शहर की कई दुकानें खासतौर पर चाय-पान की दुकानों पर लोगों
को चिल्हर के टोकन तक दिए जा रहे हैं। कागज पर बाकी पैसे नोट कर दिए जाते
हैं या फिर एक और दो रुपए लिखकर उसे टोकन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
बिना किसी अनुमति छोटे दुकानदार इस तरह का उपयोग बेखौफ कर रहे हैं।
गलाने का काम ज्यादा फायदेमंद: जानकारों के अनुसार १क्क् किलो सिक्के
एक साथ गलाए जाएं तो उस मैटल की कीमत सिक्कों की वास्तविक कीमत से कहीं
ज्यादा होती है। इसका उपयोग स्टेनलेस स्टील बनाने में भी होता है। इससे
ब्लेड जैसे कई सामान बनाए जाते हैं। राजधानी में ऐसे गिरोह भी सक्रिय हैं
जो बाजार से सिक्के उठाने का काम करते हैं। राजधानी पुलिस की कार्रवाई में
कई बार अवैध रूप से जमा की गई सिक्कों की बड़ी खेप भी जब्त हो चुकी है।
हर माह २५ लाख रुपए के सिक्कों की जरूरत: छत्तीसगढ़ चैंबर ऑफ कॉमर्स
एंड इंडस्ट्रीज के पदाधिकारियों के अनुसार राजधानी समेत प्रदेश में हर
महीने २५ लाख रुपए के चिल्हर की जरूरत होती है, लेकिन आरबीआई की ओर से
केवल तीन माह में १क् से १५ लाख रुपए के सिक्के ही दिए जाते हैं। डिमांड
ज्यादा और सप्लाई कम होने की वजह से सभी जगह चिल्हर की कमी हो रही है।
परेशान हैं लोग: इंद्रावती कॉलोनी निवासी राजकुमार वर्मा ने
बताया कि पेट्रोल पंप में १५, २५ या ३५ रुपए का पेट्रोल डलवाने पर कभी
बाकी पैसे वापस नहीं होते, मजबूरी में राउंड फिगर में ही पेट्रोल डलवाना
पड़ता है। कुशालपुर निवासी संजय दुबे के अनुसार मेडिकल हो या चिल्हर दुकान
में कभी चिल्हर पैसे वापस नहीं किए जाते। मेडिकल वाले विक्स, हाजमोला आदि
दे देते हैं तो दुकान वाले गुटखा देने में भी परहेज नहीं करते हैं।
नयापारा निवासी शादाब सिद्दीकी के अनुसार बाजार हो या मोहल्ले की किराना
दुकान हमेशा राउंड फिगर में ही सामान लेना पड़ता है क्योंकि पैसे बचते हैं
तो दुकानदार खुद ही कुछ और ले लेने का आग्रह जरूर करता है।