दावोस (स्विटजरलैंड ) : जलवायु
परिवर्तन की बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले शीर्ष
अधिकारी श्याम शरण ने कहा है कि इस मुद्दे पर दुनिया के देशों के बीच आम
सहमति बन पाना संभव नहीं है. श्री शरण ने यहां व्यापार एवं नीतियों को
लेकर हो रहे सम्मेलन में कहा कि यदि आर्थिक मंदी का दौर जारी रहता है या
फ़िर आने वाले वषाब में स्थिति और खराब हुयी तो फ़िर ऐसी स्थिति में जलवायु
परिवर्तन को लेकर दुनिया के देशों के बीच सहमति नहीं बन सकती. हालांकि
उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि यदि मंदी का दौर हो गया. देशों की सरकार पर
उन देशों की जनता द्वारा जलवायु परिवर्तन को लेकर दबाव बनाया जाए तो फ़िर
संभव है कि सहमति बन जाए. उन्होंने कहा कि पिछले माह कोपेनहेगन में हुयी
बैठक में दुनिया के देशों के बीच आमसहमति नहीं बन पाने का एक बड़ा कारण
आर्थिक मंदी रहा. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मसले पर आम सहमति
बनने के बाद रोजगार के अवसरों में कमी आएगी जिसका दुष्प्रभाव विकासशील
देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. उन्होंने कोपेनहेगन में आम सहमति न बन
पाने के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यदि अमेरिका अपने
वादे के मुताबिक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने को लेकर राजी
हो जाता है, तो फ़िर आम सहमति बनाने की राह आसान हो जाएगी. गौरतलब है कि
अमेरिका ने क्योटो प्रोटोकॉल को भी मान्यता नहीं दी है. यह 2012 में
समाप्त हो जाएगा. श्री शरण ने कहा कि क्योटो प्रोटोकॉल की अवधि समाप्त
होने की स्थिति में एक नये समझौते की जरूरत है जबकि इस मसले पर अमेरिका का
कहना है कि वह क्योटो प्रोटोकॉल को आगे ले जाने वाली किसी संधि पर
हस्ताक्षर नहीं करेगा. अमेरिका ने एक नये संधि की पैरवी की है.
परिवर्तन की बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले शीर्ष
अधिकारी श्याम शरण ने कहा है कि इस मुद्दे पर दुनिया के देशों के बीच आम
सहमति बन पाना संभव नहीं है. श्री शरण ने यहां व्यापार एवं नीतियों को
लेकर हो रहे सम्मेलन में कहा कि यदि आर्थिक मंदी का दौर जारी रहता है या
फ़िर आने वाले वषाब में स्थिति और खराब हुयी तो फ़िर ऐसी स्थिति में जलवायु
परिवर्तन को लेकर दुनिया के देशों के बीच सहमति नहीं बन सकती. हालांकि
उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि यदि मंदी का दौर हो गया. देशों की सरकार पर
उन देशों की जनता द्वारा जलवायु परिवर्तन को लेकर दबाव बनाया जाए तो फ़िर
संभव है कि सहमति बन जाए. उन्होंने कहा कि पिछले माह कोपेनहेगन में हुयी
बैठक में दुनिया के देशों के बीच आमसहमति नहीं बन पाने का एक बड़ा कारण
आर्थिक मंदी रहा. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के मसले पर आम सहमति
बनने के बाद रोजगार के अवसरों में कमी आएगी जिसका दुष्प्रभाव विकासशील
देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. उन्होंने कोपेनहेगन में आम सहमति न बन
पाने के लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि यदि अमेरिका अपने
वादे के मुताबिक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी करने को लेकर राजी
हो जाता है, तो फ़िर आम सहमति बनाने की राह आसान हो जाएगी. गौरतलब है कि
अमेरिका ने क्योटो प्रोटोकॉल को भी मान्यता नहीं दी है. यह 2012 में
समाप्त हो जाएगा. श्री शरण ने कहा कि क्योटो प्रोटोकॉल की अवधि समाप्त
होने की स्थिति में एक नये समझौते की जरूरत है जबकि इस मसले पर अमेरिका का
कहना है कि वह क्योटो प्रोटोकॉल को आगे ले जाने वाली किसी संधि पर
हस्ताक्षर नहीं करेगा. अमेरिका ने एक नये संधि की पैरवी की है.