चित्रकूट। एक ही जगह और लाभार्थियों के लिये
दो-दो योजनायें, जी हां चौकिये नही यह गांव है पहाड़ी ब्लाक का जमौली
गांव। जहां पिछले साल डाकू नान केवट को मारने के चक्कर में पुलिस ने पूरे
गांव को ही जला डाला था। जले हुये मकानों को बनाने के लिये जब सरकार से
राहत की बात देने का मामला आया तो केवल एक योजना से यहां पर भरपाई नही हो
पाई। महामाया योजना और इंदिरा आवास दोनो ही योजनाओं से यहां पर मकानों का
निर्माण कराया गया। 45 मकानों को महामाया आवास से बनवाया गया जिनकी अभी
केवल एक ही किस्त जारी की गई है। जबकि इंद्रा आवास योजना से लगभग डेढ़
दर्जन लोगों को मकान बनाने के लिये पैसा दिया गया है।
महामाया आवासों को बनाने के लिये इस साल जिले में 2234 लाभार्थियों के
मकानों को बनाने का लक्ष्य था। जिसमें 1237 मकानों के काम पूरे हो गये
हैं। 998 में अभी काम चल रहा है। योजना में सात करोड़ सत्तर लाख अस्सी
हजार पांच सौ रुपये रुपये दिये जा चुके हैं। विकास खंडवार लक्ष्य निर्धारण
की बात करें तो कर्वी में 804, पहाड़ी में 834, मानिकपुर में 368, मऊ में
126 व राम नगर में 58 था। इसके साथ ही पहाड़ी ब्लाक के जमौली गांव के 45
अग्निपीडि़तों के लिये अलग लक्ष्य था।
इधर, इंदिरा आवास योजना की बात करें तो इस योजना में गडबडि़यों की
शिकायतें तो अक्सर प्राप्त होती ही रहती है। विभागीय अभिलेखों के अनुसार
जिले के 864 आवासों के लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है।
कर्वी में 230, पहाड़ी में 115, मऊ में 225, मानिकपुर में 130 व राम नगर
में 164 का लक्ष्य इस साल का था। इनमें 580 की पहली किस्त जारी करने के
साथ ही 468 की दूसरी किस्त भी जारी कर दी गई है। वैसे दूसरी किस्त को पाने
वालों में पिछले साल के 127 लाभार्थी भी हैं।
वास्तव में क्या है योजना
35 हजार रुपयों की लागत में बनने वाले अवास में 20 वर्ग मीटर में एक
कमरा और एक दलान वह भी पक्का ईट और सीमेन्ट से बना हुआ। लाभार्थियों का
कहना है कि इस मंहगाई में काफी मुश्किल होता है काम पूरा कराना। अब जब सौ
रुपये एक मजदूर का भाव हो और कारीगर दो सौ रुपये से कम का न मिले तो फिर
ऐसे में निर्माण पूरा कराना काफी कठिन होता है।
क्या कहते हैं अधिकारी
महामाया आवास को पूरा करने की जिम्मेदारी उठाने का काम करने वाले जिला
विकास अधिकारी कहते हैं कि यह तो सच्चाई है कि इतने पैसे में निर्माण होना
काफी मुश्किल है पर योजना में स्वीकृत धनराशि के हिसाब से ही धन दिया जाता
है और ग्रामीण निर्माण करा ही लेते हैं।