भोपाल। वन माफिया या अन्य व्यक्तियों द्वारा
अवैध कटाई अथवा उत्खनन से जंगल को होने वाले नुकसान की भरपाई वन महकमा
अपने निचले स्तर के कर्मचारियों से हर्जाना वसूल कर करने की तैयारी कर रहा
है। यह प्रस्ताव अमल में आया तो पांच से सात हजार रुपया मासिक वेतन पाने
वाले बीट गार्ड और नाकेदार जैसे छोटे कर्मचारियों को अपनी तनख्वाह से अधिक
राशि का हर्जाना भुगतना पड़ सकता है।
बहुत कम वेतन पर गुजारा कर रहे छोटे कर्मचारियों के लिए खतरनाक साबित
होने वाले इस विचार का जनक वन विभाग ही है। विभाग में नीचे से उच्च स्तर
तक हुए मंथन के दौरान हानि की वसूली बीट गार्ड और चौकी अमले से करने के
विचार पर सुझाव लिए गए हैं। बीते सप्ताह राजधानी में हुए मुख्यालय स्तरीय
मंथन में अधिकारियों ने छोटे कर्मचारियों पर उत्तरदायित्व निर्धारण पर
सहमति जताई है। इस दौरान तय हुआ कि इस प्रस्ताव को विभागीय स्तर पर विचार
के बाद लागू किया जाएगा। छोटे कर्मचारियों पर नुकसान की जिम्मेदारी डालने
के मामले में अधिकारियों के बीच ऐसी होड़ रही कि बैतूल वन वृत्त ने बीट
गार्ड से 50 प्रतिशत और चौकी अमले से 50 प्रतिशत हानि वसूली का सुझाव दिया
है तो होशंगाबाद से सुझाव आया है कि बीट गार्ड से 70 प्रतिशत तथा चौकी
अमले से 30 प्रतिशत नुकसान की भरपाई कराई जाए। सूत्रों के अनुसार कुछ वन
वृत्तों ने नुकसान की वसूली के इस प्रस्ताव पर सहमति जताने के बजाए बीट
सिस्टम को ही समाप्त करने का सुझाव दिया है। निचले स्तर पर मंथन के दौरान
भी बीट गार्ड से नुकसान की भरपाई की इस कोशिश का तगड़ा विरोध हुआ था। इसके
बावजूद यह प्रस्ताव मुख्यालय स्तरीय मंथन में शामिल हुआ और इसे अमल के लिए
विचारार्थ स्वीकार भी कर लिया गया। प्रांतीय वन सेवा संघ के अध्यक्ष आमोद
तिवारी कहते हैं कि रेंज में हुए मंथन के दौरान इस सुझाव का पुरजोर विरोध
किया गया था। तिवारी के अनुसार वन विहार में बाघ या अन्य संरक्षित जानवर
की मौत होने पर तो किसी अधिकारी पर कार्रवाई नहीं होती। दूसरी ओर बिना
साजो सामान के जंगल के बड़े क्षेत्र की रखवाली के लिए तैनात गार्ड से
हर्जाना लेने का विचार अधिकारियों को आ रहा है। तिवारी कहते हैं कि निचले
स्तर के कर्मचारी इस सुझाव को लागू करने की कोशिशों का विरोध करेंगे।
विभाग को यदि कार्रवाई करनी ही है तो वह संबंधित क्षेत्र के अधिकारियों पर
भी करे, जंगल की सुरक्षा के लिए वे भी उतने ही जवाबदार हैं जितने कि बीट
पर तैनात कर्मचारी। वहीं सीसीएफ समन्वय एसके श्रीवास्तव के अनुसार मंथन के
सुझावों में से लागू किए जाने वाले सुझाव और उनकी समयसीमा को लेकर अभी
रोडमैप तैयार किया जाना है। इस रोडमैप के आधार पर ही उपयोगी सुझावों पर
अमल किया जाएगा।