विधायक निधि का सिर्फ 12 फीसदी खर्च

देहरादून। उत्तराखंड के विधायक विकास के
मामले में कंजूस साबित हो रहे हैं। चालू वित्त वर्ष का तीन माह से भी कम
समय रह गया है और 71 विधायकों की 106.50 करोड़ की निधि से मात्रा 12.74
करोड़ ही खर्च हो पाए हैं। दस विधायक ऐसे हैं, जिनकी विधायक निधि में से नौ
महीनों में एक भी प्रस्ताव डीआरडीए को नहीं गया, जबकि कुल मिलाकर 17
विधायकों की निधि में से धेला भी खर्च नहीं हुआ है।

चालू वित्त वर्ष में दिसंबर माह तक विधायक किशोर उपाध्याय, विजय सिंह
पंवार, प्रीतम सिंह, प्रेम चंद्र अग्रवाल, सुरेंद्र राकेश, गोविंद लाल
शाह, गोविंद सिंह कुंजवाल, पुष्पेश त्रिपाठी, गोविंद सिंह बिष्ट, हरभजन
सिंह चीमा ने डीआरडीए को अपनी विधायक निधि खर्च करने के लिए कोई प्रस्ताव
ही नहीं भेजा। उधर, बलवीर सिंह नेगी, दिवाकर भटट, ओम गोपाल रावत, बृजमोहन
कोटवाल, बीसी खंडूड़ी, शेर सिंह गड़िया और नारायण पाल ने डीआरडीए को
प्रस्ताव तो भेजे हैं लेकिन इनकी निधि से खर्च शून्य है। खास बात यह है कि
जिन सात विधायकों की निधि से खर्च शून्य दर्शाया गया है, इनमें से कई
विधायकों ने अच्छे खासे प्रस्ताव डीआडीए को भेजे हैं। जैसे ओम गोपाल रावत
ने 71.15 लाख, दिवाकर भटट ने 48 लाख, बृजमोहन कोटवाल ने 80 लाख, बीसी
खंडूड़ी ने 102 लाख, शेर सिंह गड़िया ने 92.50 लाख, नारायण पाल ने 132 लाख
के प्रस्ताव डीआडीए को भेजे हैं, लेकिन इन विधायकों की निधि से कोई धनराशि
खर्च नहीं हो पाई है। काफी कम धनराशि के प्रस्ताव भेजने वालों में राज्य
मंत्री खजानदास, मनोज तिवारी और पूर्व मंत्री अजय टम्टा भी हैं। खजान दास
ने नौ महीने में मात्र 7.10 लाख के प्रस्ताव भेजे हैं, मनोज तिवारी ने
4.10 लाख और अजय टम्टा ने 7.30 लाख के प्रस्ताव डीआडीए को भेजे हैं। कुछ
विधायकों ने तो निर्धारित निधि से अधिक के प्रस्ताव भेजे हैं। जैसे हरिदास
ने 156 लाख के प्रस्ताव भेज दिए, लेकिन उनकी निधि से सिर्फ 60.29 लाख ही
व्यय हो पाए हैं।

महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कई मामलों में विधायकों ने भी डीआरडीए को
प्रस्ताव भेजने में कंजूसी दिखाई है, लेकिन कुछ विधायकों ने अच्छे खासे
प्रस्ताव भेजे हैं। जहां तक सवाल निधि के व्यय का है, प्रशासकीय व्यवस्था
पर भी गंभीर सवाल उठते हैं। यदि 150 लाख की निधि में से 132 लाख के
प्रस्ताव करने वाले विधायक की निधि से व्यय शून्य दर्शाया गया है, तो इस
व्यवस्था के लिए जिम्मेदार कौन है।

हाल ही में उत्तराखंड के विधायकों की निधि डेढ़ करोड़ से बढ़ाकर सालाना
दो करोड़ कर दी गई है। इसके लिए विधायकों की तरफ से सरकार पर अच्छा खास
दबाव था। यदि विधायक अपनी डेढ़ करोड़ की निधि को ही खर्च करने में कंजूसी
बरत रहे हैं, ऊपर से प्रशासकीय व्यवस्था और भी बदतर है, तो उनकी निधि को
बढ़ाने पर सवाल उठ रहे हैं।

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