नालंदा यदि जिले में चलायी जा रही स्वच्छता अभियानों की गति यही रही तो
वर्ष 2012 तक सभी घरों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराना नामुमकिन होगा।
खुले में शौच को रोकने के लिए सालभर पहले मुख्यमंत्री ने राजगीर से जिस
तामझाम के साथ लोहिया स्वच्छता योजना की शुरूआत की थी, उसका भी यहां हश्र
अच्छा नहीं दिख रहा है। कहीं-कहीं जागरूकता के अभाव में लोग खुले में शौच
की प्रवृत्ति को नहीं त्याग रहे हैं।
इस योजना के सफल क्रियान्वयन में सरकारी नीतियां भी बाधक साबित हो रही
हैं। शौचालय के लिए अनुदान का मापदंड ऐसा है कि इस महंगाई में इतनी कम
राशि में गुणवत्तापूर्ण शौचालय बनाना मुश्किल है। यही वजह रही कि इस जिले
में शौचालय निर्माण के लिए हाथ बढ़ाये कई गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने
शुरूआत में ही पूंजी के अभाव में अपने हाथ खिंच लिये। शौचालय निर्माण के
बदले विपत्र भुगतान के तरीके व लेटलतीफी अधिकतर एनजीओ को रास नहीं आये।
बता दें कि संपूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत बनने वाले शौचालय की लागत
पूंजी दो हजार पांच सौ रुपये है, जिसमें 15 सौ रुपये केन्द्र सरकार एवं 7
सौ रुपये बिहार सरकार तथा शेष 3 सौ रुपये का योगदान लाभार्थी को करना है।
यह सुविधा बीपीएल वालों के लिए है। बिहार सरकार के लोहिया स्वच्छता अभियान
में एपीएल एवं बीपीएल के फर्क मिटा दिया गया है। अब सबके लिए शौचालय बनाना
है। लागत राशि करीब उतनी ही है। इधर महादलित विकास निगम के गठन के बाद
निगम ने महादलित लाभुक के 3 सौ रुपये का भुगतान करने का निर्णय किया है।
इस तरह महादलितों के लिए मुफ्त शौचालय बनने हैं। शौचालय के मापदंड के
मुताबिक तीन-तीन फुट गोलाई व गहराई वाले गढ्डें का निर्माण कर इसे बनाना
है। शीट और कमरे की व्यवस्था शर्मसार करने वाली है लेकिन किसी तरह पर्दा
लगाने की कोशिश की जाती है तथा इस पर लोहे की चादर भी डाली जाती है।
इसके अलावा शौचालय निर्माण में महादलितों को प्राथमिकता तो दी जा रही
है लेकिन यहां भी एक बड़ा ‘लोचा’ है। बीपीएल सूची और कल्याण विभाग द्वारा
उपलब्ध करायी गयी महादलितों की सूची में बड़ा अंतर है। इससे भी नई परेशानी
खड़ी हो गयी है। सड़क किनारे बसे गांवों को प्राथमिकता न मिलने से स्वच्छता
अभियान की गतिविधि का लोगों को नहीं पता चलता। सड़क पर शौच करने की
महिला-पुरुष की विवशता या प्रवृत्ति में कोई कमी नहीं दिख रही। इस कारण
नालंदा में आने वाले पर्यटकों के साथ-साथ बाहरी लोग इस स्थिति को देख
अविकसित एवं अपसंस्कृति की इमेज लेकर लौटते हैं। सड़क पर शौच की प्रवृत्ति
के कारण सुबह-शाम दुर्घटनाएं भी अधिक घटती है।
इधर पीएचईडी के कार्यपालक अभियंता रामचन्द्र प्रसाद ने कहा कि जिले में
वर्ष 2012 तक 3 लाख 91 हजार 1 सौ 48 शौचालयों का निर्माण करने का लक्ष्य
है लेकिन अब तक मात्र 30 हजार शौचालय का ही निर्माण कराया जा सका है। वह
कम लक्ष्य प्राप्ति का ठीकरा स्वयंसेवी संस्थाओं के सिर फोड़ते हैं। कहते
हैं, प्रखण्डवारएक की बजाए तीन-तीन एनजीओ को लगाया गया लेकिन उनकी
कार्यप्रणाली संतोषप्रद नहीं रही। इनके खिलाफ विभाग कार्रवाई करने के मूड
में है। अभियंता श्री प्रसाद ने बताया कि शौचालय निर्माण में स्वयंसेवी
संस्थाओं की इसी शिथिलता को देखते हुए सरकार ने निर्णय किया है कि अब
शौचालय बनाने के इच्छुक लोगों को ही शौचालय बनाने की पूरी जिम्मेवारी
सौंपी जाये। अब लोग अपने घरों में स्वयं शौचालय का निर्माण करायेंगे और
सरकारी अनुदान का लाभ उठायेंगे। जबकि अभी तक शौचालय निर्माण के बाद स्वयं
सेवी संस्थाओं के मार्फत ही भुगतान होता था। अभियंता ने बताया कि पीएचईडी
ने सड़क किनारे शौच को रोकने के लिए सड़क किनारे बसे गांवों का सर्वेक्षण
तथा इन गांवों में शौचालय बनाने के प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया है। इन
गांवों को यूनिसेफ के हवाले करने की तैयारी है। विभाग इनफारमेशन, एडुकेशन
एवं कम्यूनिकेशन यानी आईसी तकनीक अपनाकर इन गांवों में जागरूकता फैलायेगी।
साथ ही प्रोजेक्टर के माध्यम से स्वच्छता पर केन्द्रित फिल्में शाम ढलते
ही गांवों में दिखाये जाने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने कहा कि सड़क
पर शौच को रोकने के लिए ग्राम पंचायतों को पहल करनी चाहिए। सुबह-शाम इसके
लिए सीटी आदि बजाकर या किसी अन्य तरीके से रोकने के सामाजिक प्रयास किये
जा सकते हैं।