मीरजापुर। पत्थर खदानों, ईट भट्ठों, खतरनाक उद्योगों में दिन रात मेहनत करने वाले मजदूरों को भर पेट भोजन भी नसीब नहीं हो पा रहा है। कुपोषण की वजह से जनपद में टी बी मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। अप्रैल से सितंबर तक करीब 1555 टी बी के मरीज चिह्नित किये गये। उन्हे डाट्स कार्यक्रम के तहत दवा खिलाई जा रही है। डाक्टरों का कहना है कि टी बी माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु से होने वाला रोग है। जिले में दस हजार से ज्यादा टी बी के मरीजों का इलाज चल रहा है। डाक्टरों का कहना है कि टी बी का सही इलाज न होने पर फेफड़े में संक्रमण हो जाता है। भारत सरकार द्वारा डाट्स कार्यक्रम शुरू किया गया है। यहां पर प्रत्येक प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर बलगम जांच केंद्र खोले जाने का दावा किया गया है। इसके अलावा पांच जांच केंद्र लालगंज, हलिया, राजगढ़, चुनार व जिला अस्पताल में खोला गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि तीन सप्ताह या उससे अधिक समय से लगातार खांसी आने, उसके बाद बलगम आने, विशेष रूप से शाम को बुखार आने पर तत्काल बलगम का इलाज कराना चाहिए। टी बी के मरीज का वजन घटता जाता है। भूख नहीं लगती है। सीने में दर्द होता है। बलगम के साथ खून आने पर यह माना जाता है कि टी बी के लक्षण माने जाते है। बलगम के नमूने की दो बार जांच की जाती है। एक बार में यदि लक्षण समझ में नहीं आता है तो दूसरी बार जांच की जाती है। रोग के निदान के लिए 6 से आठ महीने तक दवा लेनी जरूरी होती है। चेताया गया है कि बीच में दवा छोड़ने पर दवाईयों का असर खत्म हो जाता है। रोग लाइलाज हो जाता है। ऐसा रोगी दूसरे व्यक्ति को भी टी बी का शिकार बना सकता है। डाक्टर अमरेश बहादुर सिंह कहते है कि डाट्स कार्यक्रम के तहत टी बी मरीजों के इलाज का प्रापर व्यवस्था है। मरीज यदि लगातार दवा का सेवन करे तो रोग से निजात मिल सकती है। आमतौर पर थोड़ा आराम मिलने के बाद मरीज बीच में दवा बंद कर देते है संक्रमण बढ़ने पर दोबारा इलाज शुरू करते है उस स्थिति में टी बी का ठीक होना मुश्किल हो जाता है। प्रयास किया जा रहा है कि मरीजों को लगातार दवा के सेवन के लिए जागरूक किया जाय।
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