नई दिल्ली। धरती के आवरण यानी ओजोन परत को लाफिंग गैस या नाइट्रस ऑक्साइड से सबसे ज्यादा खतरा है। एक ताजा अध्ययन में खुलासा हुआ है।
पृथ्वी के ऊपरी पर्यावरण का अभिन्न अंग यह परत मानव, जानवरों, पेड़-पौधों समेत सभी चीजों को सूर्य की नुकसानदेह पराबैंगनी किरणों से बचाती है, लेकिन इस आवरण को हो रहे लगातार नुकसान की भविष्य में पृथ्वी पर रहने वाले जीवों को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाली क्लोरो फ्लोरो कार्बन [सीएफसी] गैस के उत्सर्जन को रोकने के लिए 16 सितंबर 1987 को दुनिया के विभिन्न देश एकमत हुए थे।
आमतौर पर रेफ्रीजरेटर और एयर कंडीशनर में इस्तेमाल होने वाली इस गैस से ओजोन की परत को गंभीर नुकसान होना शुरू हो चुका था। वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल आर्गनाइजेशन के मुताबिक सीएफसी पर पाबंदी लगने के बाद इसके उत्सर्जन में खासी कमी आई थी और ओजोन की परत में सुधार हुआ था, लेकिन हर साल एक करोड़ टन नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन होने से हालात फिर खराब हो सकते हैं।
हालत यह है कि यह गैस इस वक्त ओजोन के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई है। ‘साइंस’ मैगजीन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन दल के अगुवा ए. आर. रविशंकर ने कहा कि ओजोन की परत की स्वत: मरम्मत के काम में बाधा उत्पन्न होने की आशंका है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि नाइट्रस ऑक्साइड प्रतिबंधित सीएफसी के मुकाबले ओजोने के लिए कहीं ज्यादा नुकसानदेह है।
रविशंकर ने कहा कि उत्सर्जित हो रही नाइट्रस ऑक्साइड का बाद में खासा असर पड़ेगा। इस गैस का असर कई बार उत्सर्जित सीएफसी के मुकाबले काफी ज्यादा अवधि तक होता है। पर्यावरण में अब भी मौजूद सीएफसी से ओजोन को नुकसान जारी है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 21वीं सदी में इस गैस से होने वाले ओजोन क्षय के चलते त्वचा के कैंसर के लाखों मामले सामने आने की आशंका है।
सोलह सितंबर 1987 में विभिन्न देशों ने मांट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए थे। मांट्रियल प्रोटोकॉल के तहत उन तत्वों का उत्सर्जन रोकने संबंधी समझौता किया गया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा में 23 जनवरी 1995 के दिन 16 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय ओजोन संरक्षण दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।