नरेगा- बदले बदले से सरकार नजर आते हैं..


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पक्का भरोसा है कि नरेगा  के आगे इस साल का सूखा पानी भरता नजर आएगा लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने वाले बहुत से कार्यकर्ता नरेगा की कामयाबी को लेकर अब आशंकित हो उठे हैं, खासकर नरेगा के प्रावधानों में हालिया फेरबदल के बाद। इधर सूखे ने कुल २४६ जिलों को अपनी चपेट में ले लिया है उधर बहस इस बात पर सरगर्म हो रही है कि नरेगा के जरिए गरीब जनता के हाथ कानूनी तौर पर मजबूत किए जायें या फिर जोर गांवों में ऐसे संसाधन गढ़ने पर दिया जाय जो आगे चलकर गरीबों की जीविका का आसरा साबित हों।हालांकि ये दोनों बातें परस्पर पूरक हैं लेकिन नरेगा समर्थक  इसके स्वरुप को लेकर  दो खेमों में बंट गए हैं।
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यूपीए सरकार जिस तरह से नरेगा का कायाकल्प करने पर जुटी है उसे देखकर देश के १४ संगठनों ने असहमति में अपनी मुठ्ठियां भींच ली हैं। इन संगठनों का कहना है कि नरेगा में किए जा रहे बदलाव इस अधिनियम की मूल भावना के खिलाफ हैं और इन बदलावों से गरीबों और दलितों के सशक्तीकरण की राह में रोड़े अटकाये जा रहे हैं। नरेगा में किये जा रहे बदलावों के मुखर विरोधियों में अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, मजदूर किसान शक्तिसंगठन की अरुणा राय, साझामंच के दुनू राय, जनआंदलनों के राष्ट्रीय गठबंधन एनएपीएम की अरुंधति धुरु और नेशनल फेडरेशन फॉर इंडियन विमेन की एनी रजा जैसी शख्सियतें शामिल हैं।

अभी तक नरेगा के अन्तर्गत किए जाने वाले कामों में दलित और आदिवासी किसानों की निजी जमीन को एक कार्यस्थल मानकर स्वीकार किया गया था लेकिन अब सरकार ने इसका दायरा बढ़ाते हुए इसमें पांच एकड़ तक की मिल्कीयत वाले सभी किसानों को शामिल कर लिया है(देखें नीचे की लिंक) नरेगा के मौजूदा स्वरुप में बदलाव की मुखालफत में खड़े लोगों कहना है कि नरेगा के स्वरुप में बदलाव करके उसकी बुनियादी प्राथमिकताओं में बदलाव किया जा रहा है जबकि नरेगा की प्राथमिकता अब तक अनिसूचित जाति-जनजाति के गरीब परिवार रहे हैं। नरेगा के प्रावधानों में बदलाव के हामी लोगों का मानना है कि नरेगा के कामों के दायरे में अगर छोटे और सीमांत किसानों की जमीन को शामिल किया जाय तो उत्पादकता के मामले में देश में खेती की तस्वीर बेहतर हो सकती है। 
 
यह बहस ठीक उस वक्त खड़ी हुई है जब नरेगा को लेकर वाहवाही भरा उत्साह मजदूरी के भुगतान में देरी, सरकारी धन की हेराफेरी, नौकरशाही की सुस्ती, पंजियों में आंकड़ों की लीपापोती और बेकार रहने की सूरत में मुआवजा ना मिल पाने जैसी खबरों के बीच धीमे-धीमें मंद पड़ रहा है। १०० दिन के काम के प्रावधान के बावजूद पिछले वित्तीय वर्ष में औसतन एक परिवार को ४८ दिनों का ही काम मिल सका जबकि काम की मांग जबर्दस्त बनी रही।
 
नरेगा के स्वरुप में बदलाव की मुखालफत करने वालों का तर्क है-

1. देश के ग्रामीण इलाकों में सबसे गरीब अनिसूचित जाति-जनजाति के लोग हैं और बदलावों से नरेगा का जोर इस समूह की जरुरतों से हट जाएगा।.
2.बड़े किसानजमीन के दस्तावेजों में गड़बड़झाला मचाकर भूमिहीन मजदूर, दलित और गरीबों को हासिल फायदों को हड़प लेंगे।
3. नरेगा के अन्तर्गत निजी जमीन पर किए जाने वाले काम को शामिल करने का मतलब है धनी किसानों को सरकारी इमदाद पहुंचाना क्योंकि उन्हें अपनी जमीन पर काम करवाने के लिए पहले भुगतान करना पड़ता था जबकि बदली सूरत में उनकी जमीन पर होने वाले काम के लिए भुगतान सरकारी कोष से होगा। 
4. नागरिक संगठनों का तर्क है कि सरकार नरेगा को पूंजी-प्रधान बनाना चाहती है ताकि इससे मजदूरी के पक्ष को गौण किया जा सके और ठेकेदारों का नरेगा में प्रवेश हो सके।

दूसरी तरफ सरकार है जो ग्रामीण अंचलों में आजीविका के आधार तैयार तैयार करने के लिए मौजूदा कई योजनाओं में तालमेल बैठाकर उन्हें एक छतरी के नीचे करना चाहती है। सरकार द्वारा नरेगा में प्रस्तावित बदलावों में शामिल है-

1. छोटे और सीमांत किसानों की निजी जमीनों को कार्यस्थल के रुप में नरेगा में जगह देना और प्रत्येक ग्राम पंचायत में राजीव गांधी के नाम पर एक छोटा सा सचिवालय खोलना।
2. निजी सचिवालय के निर्माण में नरेगा के अन्तर्गत काम पाने मजदूरों को बहाल किया जाएगा और लागत खर्च केंद्र सरकार द्वारा चलायी जा रही अन्य योजना मसलन पिछड़े इलाकों के विकास के लिए दिए जाने वाले अनुदानराशि से दिया जाएगा।
3. लोकसेवकों की स्थायी बहाली का प्रस्ताव किया गया है जो मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करेगा और पंचायतों पर नरेगा के अन्तर्गत नियमानुसार काम करने के लिए जोर डालेगा।स्थायी लोकसेवकों के बहाली की जिम्मेदारी राज्यों की होगी।
4. मंत्रालय द्वारा गठित कार्यसमिति ने नरेगा के अन्तर्गत कराये जा रहे कामों के दायरे में विस्तार का सुझाव देते हुए कहा है कि काम के दायरे को दो हलकों-आधारभूत ढांचा और सामाजिक सेवा- में बढ़ाया जा सकता है। इस तरह १० नये किस्म के काम नरेगा में जुड़ेंगे जबकि अभी तक जोर हाथ से कराये जाने वाले कामों पर था।
5. आधारभूत ढांचे के अन्तर्गत कराये जाने वाले कामों में कार्यसमिति ने सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए बनाये जाने वाले शौचालय, इंदिरा आवास योजना के अन्तर्गत बनाये जाने वाले पक्के मकान सहित खेल के छोटे मैदान और आंगनवाड़ी को शामिल किया है।
6. सामाजिक सेवा के अन्तर्गत कार्यसमिति ने नरेगा के अन्तर्गत मिड डे मील योजना में खाना पकाने, आंगनवाड़ी में पांच से कम उम्र के बच्चों के लिए खाना पकाने और क्रेच चलाने जैसे कामों को शामिल करने का सुझाव दिया है।
7. बदलाव के प्रस्तावों में १० एकड़ की मिल्कियत वाले किसानों की जमीन पर नरेगा के काम करवाने का प्रावधान जोड़ना भी शामिल है।
 
(नरेगा के प्रावधानों में बदलाव पर केंद्रित बहस को विस्तार से जानने के लिए नीचे दी गई लिंकस् को खोलें)
 
http://nrega.nic.in/circular/Convergance_Guidelines.pdf

http://www.hindu.com/2009/08/28/stories/2009082850950900.htm
 
http://www.hindu.com/2009/08/14/stories/2009081460860800.htm
 
http://www.indianexpress.com/news/rajiv-sewa-kendras-for-nregs-soon/501062/1
 
http://www.business-standard.com/india/news/govt-to-modify-nrega-to-plug-loopholes/362589/
 
http://www.dnaindia.com/india/interview_i-m-a-little-nervous-about-nrega-2_1282928

http://www.righttofoodindia.org/rtowork/nrega2_back_to_basics.html

http://www.righttofoodindia.org/data/people_action_for_nrega2_essential_demands_10aug09.pdf

align="justify"> href="http://www.pib.nic.in/release/rel_print_page1.asp?relid=52061">http://www.pib.nic.in/release/rel_print_page1.asp?relid=52061       

http://www.thehindu.com/2009/08/11/stories/2009081160881100.htm

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