नैनो टेक्नोलॉजी तकनीक के क्षेत्र में एक क्रांति लाने वाली है। ऐसा अनुमान है कि नैनो के दम पर इस सदी के मध्य तक पूरी दुनिया का कायाकल्प हो जाएगा। अब तो बड़े से बड़े काम भी बेहद छोटे उपकरण कर देंगे। दरअसल, सूक्ष्म से सूक्ष्मतर की खोज ही नैनो टेक्नोलॉजी है। एक नैनो एक मीटर का अरबवां भाग होता है। मोटे तौर पर कहें तो मानव के बाल का अस्सी हजारवां भाग। अभी तक परमाणु को सबसे छोटा कण माना जाता रहा है, मगर नैनो उससे भी सूक्ष्म है। इसी सूक्ष्मतम भाग को लेकर हल्की मगर मजबूत वस्तुओं का निर्माण किया जाएगा। इससे चमत्कारिक उपकरण तैयार होंगे, जो आश्चर्यजनक होंगे। अब ऐसे नैनो रोबोट तैयार होंगे जो हृदय के लिए खतरा बनी हुई धमनियों को खोलते चले जाएंगे। ऐसी मिनी माइक्रोचिप, जो बड़ी मात्रा में सूचनाएं भंडारित करेंगी- कंप्यूटर, मोबाइल, टीवी की दुनिया बदल जाएगी।
दरअसल, नैनो तकनीक जो दिन-दूनी रात-चौगुनी विकसित हो रही है, कोई बहुत नई तकनीक नहीं है। पचास के दशक से ही इसकी सैद्धांतिक चर्चा होती रही है। लेकिन पिछले दशक से ही इसमें कुछ वैज्ञानिक प्रगति हुई। वास्तव में जब हम नैनो तकनीक के बारे में कल्पना करते हैं तो हमें स्टार ट्रैक की याद आती है जिसमें छोटे-छोटे रोबोट शरीर में प्रवेश करते हैं, जहां कोई अन्य नहीं पहुंच सकता। हालांकि यह कुछ हद तक सच है लेकिन अब यह मात्र छोटे-छोटे रोबोटों तक ही सीमित नहीं रहेगा। अब तो यह मुख्यधारा से जुड़ने वाली तकनीक नैनो से जुड़ जाएगा। शैक्षणिक संस्थाओं में भी इसके अनुप्रयोग होने लगेंगे।
वह दिन दूर नहीं, जब नैनो टेक्नोलॉजी की सहायता से अधिक खाद्य पदार्थ तैयार किए जा सकेंगे, अधिक स्वच्छ जल उपलब्ध किया जा सकेगा और बेहतर जीवनयापन किया जा सकेगा। जापान में यह तैयारी कर ली गई है कि अगर भूकम्प आता है तो परमाणु बिजलीघरों के पिघलने के पहले ही नैनाइट्स की सहायता से ढांचे का पुनर्निर्माण कर विकिरण को रोका जा सकेगा। ध्यान रहे, जापान भूकम्प की दृष्टि से अतिशय संवेदनशील देश है। सेना के लिए भी नैनो तकनीक बड़े काम की साबित होगी। इसकी सहायता से सीमा पर घायल किसी सैनिक के घाव शीघ्र भरे जा सकेंगे। इलाज में भी तेजी होगी। यही नहीं, सैनिक अपने शस्त्रों को बेहतर बना सकेंगे। भविष्य में नैनाइट्स दुश्मनों के ठिकानों और भंडारों को भी तेजी से तबाह कर सकेंगे। इससे युद्ध को भी जल्दी जीता सकेगा। नए और बेहतर सुरक्षित सैन्यढांचे शीघ्र बनाए जा सकेंगे।
एक समय था जब हथेली पर आ सकने वाले कंप्यूटर के बारे सोचा भी नहीं गया था। इसे एक वैज्ञानिक परीकथा समझा जाता था, जो मात्र टीवी पर ‘स्टार ट्रैक’ आदि में दिखाया जाता था। लेकिन आज हमारे पास आइ-पैड, निजी पीडी, आइफोन हैं। नैनो तकनीक, जो पचास साल पहले मात्र एक सिद्धांत हुआ करती थी, अब चिकित्सा विज्ञान और अन्य वैज्ञानिक क्षेत्रों में कमाल कर रही है। अगले कुछ दशकों में नैनो तकनीक विभिन्न क्षेत्रों में अपने झंडे गाड़ देगी, ऐसा वैज्ञानिक बता रहे हैं। कहा जा रहा है कि कुछ ही सालों में इस तकनीक द्वारा तैयार उत्पाद विश्वकी अर्थव्यवस्था में दस खरब डॉलर का योगदान करेंगे। यानी इस नैनो उद्योग में बीस लाख लोगों के लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे और इससे तीन गुना लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार मिलेगा।
अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी नैनो टेक्नोलॉजी की बहुत संभावनाएं हैं। इसकी सहायता से चंद्रमा पर बेस बनेंगे, जिसकी स्वयं मरम्मत करने की क्षमता रखने वाले अंतरिक्ष स्टेशन और उपगृह भी बनेंगे। इससे स्पेस शटल के साथ दुर्घटनाएं रोकी जा सकेंगी और किसी खराबी की स्थिति का आभास होते ही नैनो तकनीक खुद दुर्घटनाओं की रोकथाम कर सकेगी। नैनो तकनीक के इस्तेमाल के ये मात्र कुछ उदाहरण हैं, जो देखने-सुनने में कपोल-कल्पना जैसे लगते हैं। जैसे, कुछ सौ वर्ष पहले आज की उपलब्ध आधुनिक दूरसंचार और मोबाइल तकनीक भी ऐसी ही लगती रही होगी। लेकिन विज्ञान ने तमाम परीकथाओं और कपोल-कल्पनाओं को जमीन पर उतार दिया है।
वैज्ञानिक बता रहे हैं कि जल्द ही नैनो मोबाइल भी बनेगा। नैनो तकनीक आधारित मोबाइल अत्यंत संवेदी, सूचना से भरपूर, अनेक फीचरों वाले तो होंगे ही, साथ ही इनकी कीमत भी बहुत कम होगी। इस दिशा में शोध जारी है। हाल ही में, कुछ वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने उत्तरी ब्रिटेन में दो ऐसे पर्यटन स्थल बनाए हैं, जो कोरी आंखों से दिखाई भी नहीं देते। वैज्ञानिकों के इस दल ने रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान और मैकेनिकल इंजीनियरिंग का प्रयोग करते हुए ‘द एंजल आॅफ द नॉर्थ’ और ‘द टाइन ब्रिज’ नामक दो नन्हे ढांचे बनाए हैं। दोनों ही सिलिकॉन के बने हुए हैं और लगभग चार सौ माइक्रॉन चौड़े हैं। इन मॉडलों को बनाने में जिस टेक्नोलॉजी का प्रयोग हुआ है, उससे अगली पीढ़ी के मोबाइल फोन के सूक्ष्म एंटीना निर्मित किए जा सकते हैं। चिकित्सा और दवाइयों के क्षेत्र में भी नैनो पद्धति से क्रांतिकारी बदलाव आने की संभावना है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक मात्र एक परमाणु की मोटाई का ऐसा नैनो रोबो तैयार कर लिया गया है, जो स्टील की तरह मजबूत है और रबड़ की तरह एकदम लचीला। शोधकर्ता प्रोफेसर डेन पीयर के अनुसार यह ‘मिनी सबमैरिन’ शरीर के कोने-कोने की खबर लेने में सक्षम है। इसके द्वारा धमनियों-शिराओं की रुकावट को खोल पाना संभव है तो वहीं पूरे प्रतिरोधक तंत्र (इम्यून सिस्टम) में यह दवा भी ठिकाने पर पहुंचा देता है। आज चिकित्सा जगत में इलाज के लिए ‘हिट ऐंड ट्रायल’ पद्धति है अर्थात अनुमान के आधार पर रोग की दवा दी जाती है। लेकिन नैनो कणों में उसके आकार के अनुरूप रंग प्रदर्शित करने की क्षमता है। अत: इसके द्वारा कैंसर कोशिकाओं की पकड़ भी संभव हो चली है। दो नैनो मीटर आकार के कण चमकीले हरे होते हैं, तो वहीं पांच नैनोमीटर आकार के कण गहरा लाल रंग प्रदर्शित करते हैं।
लंबे समय से यह आवश्यकता महसूस की जा रही थी कि कोई इतना सूक्ष्म उपकरण मिल जाए, जो कोशिकाओं में प्रवेश कर वहां उपस्थित डीएनए और प्रोटीन से संपर्क कर पाए। नैनो कण ने यह सपना साकार कर दिखाया है। इसके आधार पर कैंसर प्रभावित कोशिकाओं को एकदम प्रारंभिक अवस्था में पकड़ पाना संभव होगा। इसके बाद नैनो कणों के सहारे हीकैंसरकोशिका तक दवा पहुंचाना संभव हो जाएगा। इससे अन्य कोशिकाएं प्रभावित नहीं होंगी।
हमारे देश में भी बहुत सी नैनो परियोजनाएं चल रही हैं। वर्ष 2003 के अंत में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा कोलकाता में ‘इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस आॅन नैनो साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी’ का आयोजन किया गया था। बेंगलुरु स्थित जवाहरलाल नेहरूसेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च में नैनो विज्ञान पर उल्लेखनीय कार्य किए जा रहे हैं। यहां से 1.5 नैनोमीटर व्यास की नैनो ट्यूब तैयार की गई। पुणे स्थित राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला ने नैनो कणों की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। यहां नीम आधारित क्रायोजनिक मेटल और बायोमेटलिक नैनो कणों का निर्माण किया गया है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग संस्थान, नई दिल्ली स्थित केंद्रीय प्रयोगशाला जैसे देश के विभिन्न संस्थान व कई विश्वविद्यालय भी नैनो तकनीक की दिशा में शोधरत हैं। अमेरिका और जापान जैसे विकसित देशों में नैनो तकनीक में तेजी से हुई प्रगति के मद््देनजर भारत को विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए इस तकनीक पर भी काफी निवेश करने की जरूरत है।