सरकारी व्यवस्था पर ख्यालीबाई नि:शब्द, दो साल से फाइल में दबा ‘आवास’

रमन बोरखड़े, सेंधवा (बड़वानी)। 31 अक्टूबर…ठीक इसी दिन सेंधवा के सोलवन गांव के किसान भीम सिंह ने कर्ज, सूखा और तंगहाली से लाचार होकर अपने ही खेत में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। खुदकुशी की इस भयावह तस्वीर ने पूरे प्रदेश को नि:शब्द कर दिया था।


दो साल बाद जो बातें सामने आ रही हैं, वो भी स्तब्ध करने वाली हैं। घटना के बाद जिला प्रशासन ने भीमसिंह के परिवार को सहारा देने के लिए ताबड़तोड़ चार घोषणाएं की थीं-परिवार सहायता, विधवा पेंशन, आवास योजना, कपिल धारा कुआं और पत्नी ख्यालीबाई को नौकरी। इनमें से 20 हजार रुपए की परिवार-सहायता छोड़ दें तो बाकी किसी भी योजना का लाभ उन तक नहीं पहुंच पाया है।


दो साल में भीम सिंह की बेवा ख्यालीबाई को आवास योजना का लाभ इसलिए नहीं मिल पाया क्योंकि बड़वानी स्थित जिला पंचायत कार्यालय में पहुंची फाइल को किसी अफसर-कर्मचारी ने खोलकर ही नहीं देखा। विशेष स्वीकृति के लिए जिला पंचायत कमेटी के अध्यक्ष, कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ की मौजूदगी में जो बैठक होनी थी, दो साल से नहीं हुई।


इस बीच कलेक्टर, जिला पंचायत सीईओ, जनपद पंचायत सीईओ, ग्राम पंचायत सीईओ सभी बदल गए। सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक विधवा पेंशन एक साल दस महीने बाद शुरू हुई, लेकिन इसकी सूचना भी 31 अक्टूबर 2017 तक ख्यालीबाई को नहीं मिली थी।


कपिलधारा योजना के तहत खेतों में कुआं खोदना शुरू तो कर दिया गया, लेकिन पानी नहीं निकला। 1000 रुपए प्रति माह रसोइयन की नौकरी से वो खुद और दोनों बच्चों का पेट नहीं पाल सकती थी, इसलिए दूसरे के खेतों में मजदूरी करना ही बेहतर लगा। इन सबके बीच बस इतना हुआ कि ख्याली बाई का बड़ा बेटा कोलकी सरकारी छात्रावास में रहकर कक्षा एक में पढ़ रहा है। छोटा बेटा अभी भी उसके साथ ही रह रहा है।


इनका कहना है


योजना में कहां देरी हुई। मामले की जांच एसडीएम शिवम वर्मा को सौंप दी है।


तेजस्वनी नायक, कलेक्टर


जिम्मेदार कौन

– बी. कार्तिकेयन, सीईओ, जिला पंचायत और पूर्व सीईओ मालसिंह भड़लाय: सभी चार योजनाओं को दिलवाने की जिम्मेदारी थी, लेकिन सुध ही नहीं ली।

– केएस भिड़े,सीईओ, तत्कालीन जनपद, सेंधवा : विधवा पेंशन के लिए कागज 7 नवंबर 2015 को जमा हो गए थे, लेकिन चालू करवाने में इतना समय लग गया।

– अनीता मंडलोई, एपीओ, जनपद पंचायत: कपिलधारा कुएं से पानी नहीं निकला और काम भी बंद हो गया, फिर भी हल नहीं तलाशा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *